Saturday, January 23, 2010

अनचाहा सा सवाल

(इसको बड़ा कर के पढ़े )

बहुत सोचता है मेरा दिल तुम्हारे लिए
बहुत सी बातें कह कर भी
कुछ अनकहा सा रह जाता है
मेरे दिल में तुम्हारे लिए
एक प्यार का सागर लहरता है
फिर भी ना जाने यह दिल
अनचाहा सा सवाल क्यों कर जाता है


पूछता है दिल मेरा अक्सर ......
क्या मेरे प्यार का गहरा सागर
प्यास बुझा सकता है तुम्हारी???
मेरा प्यार तुम्हारे आँगन में बंध कर
क्या गीत ख़ुशी के गा सकता है???
छाया रहता है तुम्हारे जहन पर भी
मेरे प्यार का गहरा क़ाला बादल...........
पर क्या यह मुझ पर बरस सकता है ???
क्या यह मुझको भीगो सकता है ???

अक्सर बेबस से कर जाते हैं यह सवाल मुझको..
दिल में एक अनजानी सी चुभन दे जाते हैं मुझको......


फिर ना जाने क्या सोच कर........
यह दिल खिल सा जाता है
जब कभी तुम्हारी दिल की लहरो से उठता प्यार ......
मेरे दिल की लहरो से टकरा जाता है
तुम्हारा बस यही एक पल का प्यार ..........
जैसे मेरी दुनिया ही बदल जाता है
और मेरे सारे सवालो को ......
जैसे एक नयी राहा दिखा जाता है !!

Tuesday, January 19, 2010

तलाश


बसंती ब्यार सा,
खिले पुष्प सा,
उस अनदेखे साए ने..
भरा दिल को..
प्रीत की गहराई से,

खाली सा मेरा मन,
गुम हुआ हर पल उस में
और झूठे भ्रम को
सच समझता रहा ..

मृगतृष्णा बना यह जीवन
भटकता रहा जाने किन राहों पर
ह्रदय में लिए झरना अपार स्नेह का
यूं ही निर्झर बहता रहा,

प्यास बुझ सकी दिल की
जाने ....
किस थाह को
पाने की विकलता में
गहराई में उतरता रहा,

प्यासा मनवा खिंचता रहा
उस और ही...
जिस ओर मरीचका
पुकारती रही,
पानी के छदम वेश में
किया भरोसा जिस भ्रम पर
वही जीवन को छलती रही
फ़िर भी पागल मनवा
लिए खाली पात्र अपना
प्रेम के उस अखंड सच को
सदियों तक ........
ढूढता रहा !! ढूढता रहा !!

Tuesday, January 12, 2010

धोखा


एक साँस .....
जाने किस आस पर
दिन गुजारती है..
निरीह सी आंखो से
अपने ही दिए जीवन को,
पल -पल निहारती है
पुचकारती है, दुलारती है

अपने अंतिम लम्हे तक
उसी को ...
जीने का सहारा मानती है

सच है ...
जीने की वजह
कोई बनाने के लिए
इस तरह ..
एक धोखा होना जरुरी है
और दिल के किसी कोने को
यूं ही....
सच से परे होना भी जरुरी है॥

रंजना (रंजू) भाटिया

Monday, January 04, 2010

एहसास (कुछ यूँ ही )



सर्दी का ...
घना
कोहरा..
उसमें..
डूबा हुआ मन..
एक अनदेखी सी
चादर में लिपटा हुआ
और तेरी याद उस में
आहिस्ता से ,धीरे से
उस कोहरे को चीरती
यूँ मन पर छा रही है
जैसे कोई कंवल
खिलने लगा है धीरे धीरे
और आँखों में
एक चाँद...
मुस्कराने लगा है ...

रंजना (रंजू )भाटिया


"सन्डे विदआउट सन शाइन "..इंडिया गेट का नजारा ३ जनवरी २०१० को मेरे कैमरे की नजर से ..दिल्ली की सर्दी ....

रंजना (रंजू )भाटिया
३ जनवरी २०१०