Tuesday, January 19, 2010

तलाश


बसंती ब्यार सा,
खिले पुष्प सा,
उस अनदेखे साए ने..
भरा दिल को..
प्रीत की गहराई से,

खाली सा मेरा मन,
गुम हुआ हर पल उस में
और झूठे भ्रम को
सच समझता रहा ..

मृगतृष्णा बना यह जीवन
भटकता रहा जाने किन राहों पर
ह्रदय में लिए झरना अपार स्नेह का
यूं ही निर्झर बहता रहा,

प्यास बुझ सकी दिल की
जाने ....
किस थाह को
पाने की विकलता में
गहराई में उतरता रहा,

प्यासा मनवा खिंचता रहा
उस और ही...
जिस ओर मरीचका
पुकारती रही,
पानी के छदम वेश में
किया भरोसा जिस भ्रम पर
वही जीवन को छलती रही
फ़िर भी पागल मनवा
लिए खाली पात्र अपना
प्रेम के उस अखंड सच को
सदियों तक ........
ढूढता रहा !! ढूढता रहा !!

40 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मन के भटकाव को बहुत सटीक ढंग से उतारा है .
मन वही चाहता है जो मिल नहीं सकता और मरीचिका के पीछे भागता है....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....

बसंतपंचमी की शुभकामनायें

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

सुंदर पंक्तियों व भावाभिव्यक्ति के साथ .... बहुत सुंदर रचना.....

Alpana Verma said...

प्रेम की खोज में मृगतृष्णा छलती रही जीवन भर!
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

Anonymous said...

"मृगतृष्णा बना यह जीवन
भटकता रहा न जाने किन राहों पर
ह्रदय में लिए झरना अपार स्नेह का
यूं ही निर्झर बहता रहा"
जो होता है उससे संतुष्टि नहीं होती, चाह रहती है जो नहीं होता उसे पाने की. शाश्वत सच को रचना में पिरोने के लिए आभार और बधाई.

अजय कुमार said...

मन के भटकाव का सुंदर चित्रण

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

i wish ye talaash khatm ho....

सदा said...

"मृगतृष्णा बना यह जीवन
भटकता रहा न जाने किन राहों पर
ह्रदय में लिए झरना अपार स्नेह का
यूं ही निर्झर बहता रहा"

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

दिगम्बर नासवा said...

फ़िर भी पागल मनवा
लिए खाली पात्र अपना
प्रेम के उस अखंड सच को
सदियों तक ........
ढूढता रहा !! ढूढता रहा ....

ये मन का भटकाव है ........ या प्रेम को पाने की अनंत ललक ......... उन्मादी मान भागता रहता है मरीचिका के पीछे पर रुकना भी नही चाहता ........... बहुत ही अनुपम रचना ....... भाव प्रधान ..........

निर्मला कपिला said...

उस अनदेखे साए ने..
भरा दिल को..
प्रीत की गहराई से,

और
फ़िर भी पागल मनवा
लिए खाली पात्र अपना
प्रेम के उस अखंड सच को
सदियों तक ........
ढूढता रहा !! ढूढता रहा ....
वाह अन्तर मन की उथल पुथल और मृगत्रिश्णा का सजीव चित्र बहुत सुन्दर है रचना बधाई ,शुभकामनायें

अनिल कान्त said...

ये मृगतृष्णा की स्थिति की बात आपने खूब कही

रचना दीक्षित said...

कैसा मन का भटकाव है.जो ढूंढते हो वो मिल भी जाए फिर भी हम उसकी ही तलाश करते है.मरीचिकाओं में घिर कर खुद भी इक मरीचिका हो जाते हैं हम

सुशील छौक्कर said...

हम तो अभी तक तलाश पर कुछ नही लिख पाए पर आपने बेहतरीन रुप से तलाश को लिख डाला। हम तो यही कहते है जी कि अपनी अपनी तलाशों के लिए भटकना ही जीवन है। और आपने उस भटकाव का सुंदर चित्रण कर दिया। सुन्दर।

डॉ .अनुराग said...

aor man ..uski chalang kitni unchi hai....

Kusum Thakur said...

"मृगतृष्णा बना यह जीवन
भटकता रहा न जाने किन राहों पर
ह्रदय में लिए झरना अपार स्नेह का
यूं ही निर्झर बहता रहा"

सच यह जीवन मृगतृष्णा ही तो है . बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति !!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

किया भरोसा जिस भ्रम पर
वही जीवन को छलती रही
फ़िर भी पागल मनवा
लिए खाली पात्र अपना
प्रेम के उस अखंड सच को
सदियों तक ........
ढूढता रहा !! ढूढता रहा !!

यही तो विडम्बना है
जो न जीने देती है और न मरने!

shikha varshney said...

man ka bhatkav bahut sundarta se chitrit kia hai aapne.

Amrendra Nath Tripathi said...

यहाँ 'मनवा' कितना सटीक बैठ रहा है ---
'' प्यासा मनवा खिंचता रहा ......... ''
अच्छा लगा पढ़कर ... आभार,,,

alka mishra said...

रंजना जी ,
भावनाएं काबिले तारीफ़ हैं और शब्दों का संयोजन जैसे चित्रकारी ........
प्यासा मनवा खिंचता रहा..........

Asha Joglekar said...

प्रेम की मृगतृष्णा पर खूबसूरत कविता ।
"मृगतृष्णा बना यह जीवन
भटकता रहा न जाने किन राहों पर
ह्रदय में लिए झरना अपार स्नेह का
यूं ही निर्झर बहता रहा"
वाह ।

रश्मि प्रभा... said...

प्यास दिल की बनी रहती है, कस्तूरी मृग सा भटकता रहता है
बहुत खूब

श्रद्धा जैन said...

प्यासा मनवा खिंचता रहा
उस और ही...
जिस ओर मरीचका
पुकारती रही,
पानी के छदम वेश में
किया भरोसा जिस भ्रम पर
वही जीवन को छलती रही
फ़िर भी पागल मनवा
लिए खाली पात्र अपना
प्रेम के उस अखंड सच को
सदियों तक ........
ढूढता रहा !! ढूढता रहा !!

bahut sateek lafzon mein man ka bhatkaav ko vayakt kiya hai

rashmi ravija said...

खाली सा मेरा मन,
गुम हुआ हर पल उस में
और झूठे भ्रम को
सच समझता रहा ..
सच..बहुत खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है ,इस ना ख़त्म होने वाली तलाश को..

Arvind Mishra said...

सुख तो छलना ही है -फिर याद दिलाई आपने !

राज भाटिय़ा said...

मन के चंचलता को झलकाती यह आप की सुंदर रचना

डॉ. मनोज मिश्र said...

मृगतृष्णा बना यह जीवन
भटकता रहा न जाने किन राहों पर
ह्रदय में लिए झरना अपार स्नेह का
यूं ही निर्झर बहता रहा,
बहुत ही सारगर्भित,गहन भाव.

हरकीरत ' हीर' said...

फ़िर भी पागल मनवा
लिए खाली पात्र अपना
प्रेम के उस अखंड सच को
सदियों तक ........
ढूढता रहा !! ढूढता रहा !!

मोको कहाँ कहाँ ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास रे ......

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वसन्त का अनुपम उपहार....अतिसुन्दर.
वसन्तपन्चमी की शुभकामनायें

Abhishek Ojha said...

ये तलाश और प्यास कहाँ ख़त्म होने वाली है !

Himanshu Pandey said...

"पानी के छदम वेश में
किया भरोसा जिस भ्रम पर
वही जीवन को छलती रही"
-
अच्छी बात तो यह है कि पता चला कि वह पानी का छद्म वेश है, मरीचिका है और छल रही थी जीवन को । यह पता भी कहाँ चल पाता है जीवन भर !

"फ़िर भी पागल मनवा
लिए खाली पात्र अपना
प्रेम के उस अखंड सच को
सदियों तक ........
ढूढता रहा !! ढूढता रहा !!"

- प्रेम ढूँढ़ रहे हैं, यह जानकर कि स्ब कुछ भ्रम ही था, शुभ ही है ! प्रेम की प्यास बनी रह जाय, इससे सुन्दर क्या ! और यदि वह सच अखंड है तो ....

बेहतरीन रचना ! आभार ।

vandana gupta said...

bahut hi sundar aur gahan rachna.

अरुण चन्द्र रॉय said...

aisa lagta hai mano man ki baat keh di ho ! vasant mein iss bhatkav ko mukam mile !

रंजना said...

प्यास बुझ न सकी दिल की
न जाने ....
किस थाह को
पाने की विकलता में
गहराई में उतरता रहा,


WAAH ! WAAH ! WAAH !!! KYA BAAT KAHI...WAAH !!!

MANAV MAN SE SAHAJ MRIGTRISHNA KA BADA HI SAHAJ VARNAN KIYA HAI AAPNE...HAMESHA KI TARAH NAAYAAB RACHNA...

अनामिका की सदायें ...... said...

insaan ki mrigmarichika wali fitrat ka acchha bayaan hai..lekin afsos ham ye sab jaante hue bhi aisi fitrat k adheen rehte hai.

bahut acchhi rachna. badhayi.

Razi Shahab said...

lajawaab bahut achchi lagi kavita

Mohinder56 said...

मन के भावों को बहुत सुन्दर ढंग से गूंथा है आपने इस रचना के रूप में.

एक शेर याद आ गया

"हम तो यूं अपनी जिन्दगी से मिले
अजनबी जैसे अजनबी से मिले
हर वफ़ा एक जुर्म हो गोया
दोस्त कुछ ऐसी बेरुखी से मिले"

लिखती रहिये

कविता रावत said...

Antarman ke bhatkate bhavon ki sundar prastuti.......
Shubhkamnayen..

Mithilesh dubey said...

बहुत ही उम्दा व लाजवाब रचना लगी। बधाई स्वीकार करें

sanjay vyas said...

प्रेम में भटकाव और भ्रम की मरीचिका के बावजूद उदात्त भाव बना रहता है.आपकी लेखनी का कायल हुआ हूँ.

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति !!

pinki vajpayee said...

बेहद सुन्दर पक्तियाँ लिखी है आपने.....
"मृगतृष्णा बना यह जीवन
भटकता रहा न जाने किन राहों पर.......

http://pinkivajpayee.blogspot.com/