लगता है कभी कभी
मेरे भीतर
एक लावा सा
बहता है
खून नहीं
तब ओढती हूँ बर्फ ,
और
सो जाती हूँ
एक ठण्ड का
एहसास दे कर
अपने दिल को बहलाती हूँ
पर ज्वाला मुखी सा लावा ,
जैसे धधकता ही रहता है
बर्फ होते हुए सीने में ,
बहता ही रहता है
और फिर टूटते हुए
बाँध की तरह
बह जाने को होता है
तब मैं उस बाँध पर
अपनी ख़ामोशी की
रोक लगा देती हूँ
और मुस्कराते हुए
हर लावे को
अपने भीतर समेट लेती हूँ .............??
यह लिखी गयी पंक्तियाँ कुछ अधूरी सी है ...........आप सब अपनी राय इस पर आगे लिख कर दे सकते हैं ....
36 comments:
यह अधूरी कहाँ है .....सब समेट तो लिया ..फिर कुछ बिखरने को बचा कहाँ ?
अच्छी प्रस्तुति
अधूरा कहाँ पूरी तो हो गयी .......ये लावा ऐसे ही बहता है
लावे को बर्फ की मोटी से मोटी परत भी नहीं रोक पाती है. वह तो बहता ही रहेगा जब तक स्वयं शांत न हो जाए.
बहुत मर्मस्पर्शी रचना -
भाव विभोर कर गयी .
पर कहाँ रुकता है लावा ?
ख़ामोशी मुखर
मुस्कान बेबस
बर्फ पिघलता जाता है ...
wah kya baat hai...
fir aati hoo...kuch kahne..
बढ़िया रचना!
सच है...इसमें अधूरापन कहाँ है...
यही तो है पूरी कहानी...
man ke bhaav ..aise hi umadte hai
बर्फ ओढ़ लिया है मैंने
जो बूंद बूंद बह चला है
इस लावे का मैं क्या करूँ
यह तो बुझता ही नहीं
हमेशा बहुत कुछ कहने के बाद बहुत कुछ रह जाता है....लिखने वाले को हमेशा ऐसा लगता है..वरना हमें तो बढ़िया अभिव्यक्ति लगी...
बहुत खूब ...सुन्दर अभिव्यक्ति ।
मुझे यह अधूरी तो नहीं लगी थी ....फिर भी कुछ लिखा है आगे तो फिर से आ गयी ...
इस समेटने में
अंदर कितना
कुछ जलता है
कभी कोई चिंगारी
छिटक आती है
बाहर तक
और हो जाता है
सब स्वाहा
मेरे सारे प्रयास
हो जाते हैं व्यर्थ ,
बर्फ भी जाती है पिघल
और बन जाती है
अंश लावा का ,
फिर भी मैं निरंतर
प्रयत्नरत हूँ कि
हिमशिखा बन सकूँ ...
अति सुन्दर अभिव्यक्ति...
kaavi emotional lines hain and sab kuch aa gaya in lines main
its been a long itme aap mere blog par nahi aaye ..meri kuch rachnao ko jara padh kar bataiye kaha galat hu main
taki sudhar saku
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
is blog main MY POEM tab par ja kar meri kavitaye aap padh sakti hain
इस समेटने में
अंदर कितना
कुछ जलता है
कभी कोई चिंगारी
छिटक आती है
बाहर तक
और हो जाता है
सब स्वाहा
मेरे सारे प्रयास
हो जाते हैं व्यर्थ ,
बर्फ भी जाती है पिघल
और बन जाती है
अंश लावा का ,
फिर भी मैं निरंतर
प्रयत्नरत हूँ कि
हिमशिखा बन सकूँ ...
@ वाह संगीता जी बहुत बढ़िया लिखा है आपने ..कोशिश वाकई जारी रहती है हिमशिखा बनने की ,पर .....बेहतरीन शुक्रिया
अपनी भावनाओं को सलीके से बयां करना कोई आपसे सीखे।
---------
मोबाइल चार्ज करने की लाजवाब ट्रिक्स।
रंजना जी ! एक तो आपकी कविता कमाल उस पर संगीता जी का पूरा करना डबल कमाल ..
बेहतरीन हैं दोनों भाग .मजा आ गया.
ek soch ye bhi ..
him shikha to banna he sabhi ko
lekin kya yahi ban jana
zindgi hai ?
kyu na aao chalo
ham apne vikaro ko mitaye
kyu na antas ki jwala ko
pyar ki chaashni me duboye
tabhi to hoga is kupit jeewan
ka ant
tabhi to hoga ek naye path ka srijan.
बहुत सुंदर जी.
बहुत अच्छी रचना।
जितना है अच्छा है (मैं तो यूं भी इसमें कोई दखल नहीं रखता सिवाय इसके कि हां कविता पढ़कर मन को अच्छा लगता है)
deep creation.
कतई अधूरी नहीं ,आपने बल्कि अधूरे होने को पूर्णता दे दी है यहाँ!
संगीता स्वरुप से सहमत हूँ ! बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति .....
शुभकामनायें !
आप तो बहुत अच्छा लिखती हैं. ज़बरदस्त भाव पिरोये हैं आपने .बधाई
''एक आस की तरह''
आदरणीया रंजू भाटिया रंजना जी
नमस्कार !
कविता लावा मुझे तो पूर्ण ही लगी… जितनी मेरी समझ है
जब, मिले हुए को स्वीकार कर लिया … अपनी तो ये आदत है कि हम कुछ नहीं कहते की तर्ज़ पर, … और विरोध की आदत और असंतुष्टि की प्रवृति नहीं ; फिर आगे और क्या हो ?!
आदरणीया संगीता स्वरूप जी ने आगे इसी संतुष्टिपूर्ण समर्पण को ही तो विस्तार दिया है
अच्छी भावपूर्ण रचना है , अभार स्वीकर करें !
नव वर्ष ज़्यादा दूर नहीं …
~*~नव वर्ष 2011 के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
लावा ने अगर राह पा ली तो फिर रुकने वाला नही ! यह कवि है जो उसे धारण करता है ! बधाई !
laazwaab bhut bhi sundar.....
ये लावा ऐसे ही बहता है| अति सुन्दर अभिव्यक्ति|
तब मैं उस बाँध पर
अपनी ख़ामोशी की
रोक लगा देती हूँ
और मुस्कराते हुए
हर लावे को
अपने भीतर समेट लेती हूँ...
-बेहद भावपूर्ण पंक्तियाँ.
कविता तो अधूरी कहीं नहीं बल्कि पूर्ण ही लगी..
अंतिम पंक्तियाँ ही तो पूर्णता दे रही हैं इस कविता को और उसके अर्थ को.
मन को गहरे छूने जाने वाले अहसासों को बड़ी ही कुशलता से आप ने कविता में बाँधा हैं. बहुत अच्छी रचना.
LAVA RAH MIL JAYE TO DEKHNE MAIN SUNDAR LAGTA HAI
RAH NA MILE TO KAHAR DHA JATA HAI
AAPKO AAPKIE RAH MILE WO ITNI SUNDAR HO KI HAR VYKTI US PAR CHALNE KO CHAHE AUR CHALE
JAI HIND
KAMAL SINGH BISHT
इंसान जीता जागता लावा ही तो है ... यादों का ... टूटे हुवे सपनों का ... निरंतर प्यास का ... बहुत ही अच्छा लिखा है ...
आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष मंगलमय हो ...
speechless.. so amazing ‘n pure !!
मै गुजराती हु..पर हिन्दी पढ़ना लीखना बहूत पसन्द है..हां गलतियाँ करती हु..पर कोशीश भी करती हु..ठीक करके पढिएगा..
बहोत कुछ सिमटे हुवे थे हम पहेले ही, चलो और थोडा भार बढ़ गया..
लावा हो, बर्फ हो, चाहे गम का हो दरिया..
रखना तो हमें ही है खुद में..
तो वो आखिर हमारा ही हुवा..
नीता कोटेचा ..
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