यूँ ही बैठे बैठे
याद आए कुछ बीते पल
और कुछ ....
भूले बिसरे किस्से सुहाने
क्या दिन थे वो भी जब ....
छोटी छोटी बातों के पल
दे जाते थे सुख कई अनजाने
दरवाज़े पर बैठ कर
वो घंटो गपियाना
डाकिये की साईकल की ट्रिन ट्रिन सुन
बैचेन दिल का बेताब हो जाना
इन्तजार करते कितने चेहरों के
रंग पढ़ते ही खत को बदल जाते थे
किसी का जन्म किसी की शादी
तो किसे के आने का संदेशा
वो काग़ज़ के टुकड़े दे जाते
पढ़ के खतों की इबारतें
कई सपनों को सजाया जाता जाता था
सुख हो या दुख के पल
सब को सांझा अपनाया जाता था
कभी छिपा के उसको किताबों में
कभी कोने में लटकती तार की कुण्डी से
अटकाया जाता था
जब भी उदास होता दिल
वो पुराने खत
महका लहका जाते थे
डाकिये को आते ही
सब अपने खत की पुकार लगाते थे
पर अब ....
डाकिया बना एक कहानी
रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी
अब हर सुख दुख का संदेशा
घर पर लगा फोन बता जाता है
रिश्तों में जम गयी बर्फ को
हर पल और सर्द सा कर जाता है
अब ना दिल भागता है
लफ़ज़ो के सुंदर जहान में
बस हाय ! हेलो ! की ओपचारिकता निभा
कर लगा जाता है अपने काम में ...
रंजना (रंजू ) भाटिया
32 comments:
सही लिखा है..
अब ना दिल भागता है
लफ़ज़ो के सुंदर जहान में
बस हाय ! हेलो ! की ओपचारिकता निभा
कर लगा जाता है अपने काम में ...
छोटे छोटे पल तो अब भी जीवन में रंग भर जाते हैं।
डाकिया बना एक कहानी
रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी
जी हाँ बहुत बड़ा फर्क आ गया है
और आपने इस फर्क को बखूबी बयान किया है
सुन्दर रचना
हर पल और सर्द सा कर जाता है
अब ना दिल भागता है
लफ़ज़ो के सुंदर जहान में
बस हाय ! हेलो ! की ओपचारिकता निभा
कर लगा जाता है अपने काम में ...
क्या खूब लिखा आपने !!
डाकिया बना एक कहानी
रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी
सही है..सुन्दर लिखा है..
वक्त के सथ सब कुछ बदल जाता है ………अच्छी रचना।
ये दुनिया फानी है -चार दिन की जिंदगानी है -ये विचार बेमानी हैं -कविताओं में न आपकी सानी है !
सच!
बहुत सुन्दर रचना!!
bahut sunder rachna hai!
Sadhuwaad!!!
खट आने का एहसास ही कुछ और होता था...बहुत खूबसूरती से लिखा है...
बहुत बढ़िया रचना है!
नए ज़माने में सन्देश भेजने के तरीके भी नए हो गए है... देश विदेश मे बैठे भाई बहन वेबकैम पर ही जन्मदिन और सालगिरह मना कर खुश हो जाते हैं...लेकिन पुरानी यादों का चित्रण ऐसा सजीव है कि दिल बार बार पुराने समय मे लौटना चाहता है
बहुत सशक्त रचना।
वाह भई रंजना जी बहुत सुंदर.
बहुत सुन्दर... अब डाकिया केवल बिल लाता है...
वाह वाह
प्रस्तुति...प्रस्तुतिकरण के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
पढ़ के खतों की इबारतें
कई सपनों को सजाया जाता जाता था
सुख हो या दुख के पल
सब को सांझा अपनाया जाता था
सच लिखा है आप ने...
डाक से आते / बहुत इंतज़ार के बाद मिलते खतों की बात ही कुछ और थी..
**हाथ से लिखे खतों में बसा अपनापन अब ईमेल में कहाँ? जीवन यांत्रिक हो गया है.अच्छी कविता है.
डाकिया ,चिठ्ठी ,इन्तजार ,खुशबू,उसके साथ दुःख सुख राग विराग जाने क्या क्या ..लेकिन मेल के जमाने में अब वो सुख या दुख कहाँ
अच्छा लिखा है तुमने तुम्हारी भावनाओं की कद्र करती हूँ
बीते समय और आज की तेज़ रफ़्तार को बहुत करीब से महसूस कर ये रचना लिखी है आपने ...
इस रफ़्तार में हम संवेदनाएँ खोते जा रहे हैं ... छोटी छोटी इंसानी बातें .. खुशी के लम्हे कहीं खो गये हैं ...
बहुत अच्छा लिखा है आपने ...
wow! good one ma!
कितना सही कहा आपने....एक एक शब्द सही...
मन को छू गयी आपकी यह मनमोहक रचना...लगा जैसे अपने ही मन के भाव पढ़ रही हूँ...
सचमुच चिट्ठियों की बात ही कुछ और थी....
वक्त के साथ हर शै बदल जाती है।
सुंदर रचना।
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ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?
Hello,
This composition of yours is one of your best ones so far!
Keep writing!
Cheers!
वाह बहुत सुन्दर रचना....
डाकिया बना एक कहानी
रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी
सच में सही लिखा है आपने ....
अच्छी रचना।
मुझे यह सुख अभी तक प्राप्त है इसलिये कि कुछ मित्र ऐसे हैं जो अब भी चिठ्ठियाँ लिखते हैं । और कुछ नही तो पत्रिकायें देने के लिये तो डाकिया आता ही है ।
वैसे आपको बता दूँ मेरे पास चिठ्ठियों का एक बहुत बड़ा कलेक्शन है और मैने अपने पिता 0 माता और रिश्तेदारों की चिठ्ठियों की एक किताब भी छपवाई है ।
बहुत सुन्दर, बहुत ही ज्यादा सुन्दर रचना ....पुराने दिनों की याद आ गयी ...डाकिया के खतों का आनंद और इंतजार की मीठी वेदना सब कुछ सामने आ गया :)
डाकिया बना एक कहानी
रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी
अब हर सुख दुख का संदेशा
घर पर लगा फोन बता जाता है
रिश्तों में जम गयी बर्फ को
हर पल और सर्द सा कर जाता है
bahut sach kaha hai ......
शायद इसीलिए कहाजाता है कि वक्त के साथ हर शै बदल जाती है।
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क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
मैं देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ..... इतनी अच्छी रचना को देरी से पढ़ पाया.... बहत अच्छी और सशक्त रचना.....
अब ना दिल भागता है
लफ़ज़ो के सुंदर जहान में
बस हाय ! हेलो ! की ओपचारिकता निभा
कर लगा जाता है अपने काम में ...
रंजना जी बिलकुल सही बात है। बहुत दिन से आप से बात नही हो पाई और ब्लाग पर भी कम ही आ पाई हूँ अब ऐसा नही होगा। शुभकामनायें
सही है । E-mail और text message के इस युग में चिठ्ठी और डाकिया दोनो की अहमियत खत्म हो गई है ।
चिठ्ठी लिखने की कला भी कहां बच पायेगी ।
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