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Monday, December 28, 2009
कुछ बिखरे लफ्ज़ (क्षणिकाएँ...)
वक़्त.
क्यों तुम्हारे साथ बिताई
हर शाम मुझे
आखिरी-सी लगती है
जैसे वक़्त काँच के घर
को पत्थर दिखाता है !!
हरसिंगार
लरजते अमलतास ने
खिलते हरसिंगार से
ना जाने क्या कह दिया
बिखर गया है ज़मीन पर
उसका एक-एक फूल
जैसे किसी गोरी का
मुखड़ा सफ़ेद हो के
गुलाबी-सा हो गया !!
तस्वीर
तेरी आँखो में
चमकते हुए
अपने ही चेहरे के अक़्स॥
नदी का पानी
एक बहता हुआ सन्नाटा
धीरे धीरे तेरी यादो का
समझौता
तू सही
मैं ग़लत ,
मैं सही
तू ग़लत ,
कब तक लड़े
यूँ ज़िंदगी से
चलो यूं ही
बेवजह जीने का
एक समझौता कर लेते हैं !!
रंजना (रंजू ) भाटिया
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30 comments:
क्यों तुम्हारे साथ बिताई
हर शाम मुझे
आखिरी-सी लगती है
जैसे वक़्त काँच के घर
को पत्थर दिखाता है !!
... कहीं पढ़ा था हर प्रेमी चाहता है की वो प्रेमिका का पहला प्यार हो औ' हर प्रेमिका प्रेमी की आखिरी प्रेमिका... Hence , proved
तेरी आँखो में
चमकते हुए
अपने ही चेहरे के अक़्स॥
well said!!!
तू सही
मैं ग़लत ,
मैं सही
तू ग़लत ,
कब तक लड़े
यूँ ज़िंदगी से
चलो यूं ही
बेवजह जीने का
एक समझौता कर लेते हैं ...
थके हुवे कदमों की चहल कदमी सी रचना है आपकी ........
सब की सब लाजवाब .......
हरसिंगार
लरजते अमलतास ने
खिलते हरसिंगार से
ना जाने क्या कह दिया
बिखर गया है ज़मीन पर
उसका एक-एक फूल
जैसे किसी गोरी का
मुखड़ा सफ़ेद हो के
गुलाबी-सा हो गया !!
---सभी क्षणिकाएँ अच्छी हैं मगर मैं इसके अदांज-ए-बयां पर फिदा हूँ।
--बधाई।
गहन भाव लिए हुए बढ़िया क्षणिकाएँ!
सारी क्षणिकाएं बहुत कुछ कहती हुई सी पर तस्वीर और नदी का पानी....बहुत पसंद आयीं....बधाई
क्षणिकाएँ पढ़कर मन प्रसन्न हो गया. आपका लिखा दिल में उतर जाता है.
तस्वीर, नदी का पानी, वक़्त.....नए नज़रों से देखने का अंदाज़ बहुत अलहदा है...बहुत खूब
बहुत सुंदर क्षणिकाएं....
नदी का पानी
एक बहता हुआ सन्नाटा
धीरे धीरे तेरी यादो का
-बहुत उम्दा!!
हर क्षणिका अपने आप में पूरी है, बधाई.
भावपूर्ण क्षणिकाएं
बढ़िया क्षणिकाएँ!
जब ऐसे ही लड़ाइयों में जिंदगी चल रही हो तो समझौता ज़रूरी है यह भी एक अस्त्र है जिससे जीवन और सुखमय बन जाता है..बढ़िया भाव..बढ़िया रचना..बधाई रंजना जी!!
अति सुंदर है आप की यह सुंदर सी क्षणिकाएं.
धन्यवाद
बेवजह जीना अपने आप मे समझौता है ...गौर से देखा कई वजहें मिल गई जीने की ...
लारजते अमलतास और खिलता हरसिंगार ...गोरी का मुख गुलाबी क्यू ना हो ...
बहता हुआ नदी का पाने यादों का सन्नाटा ....
वाकई हर क्षणिका मे एक अलग रंग है ...!!
"बेवजह जीने का
एक समझौता कर लेते हैं!!"
बहुत सुन्दर!
be-wajah..jeene ka samjhauta kar lete hain...
wah wah ranju ji...
bahut gehri baat keh di aapne..
जैसे वक़्त काँच के घर
को पत्थर दिखाता है !!
वाह .....सुभानाल्लाह ......क्या गज़ब कह दिया रंजू जी .......!!
लरजते अमलतास ने
खिलते हरसिंगार से
ना जाने क्या कह दिया
बिखर गया है ज़मीन पर
उसका एक-एक फूल
जैसे किसी गोरी का
मुखड़ा सफ़ेद हो के
गुलाबी-सा हो गया !!
बहुत khoob .....!!
एक बहता हुआ सन्नाटा
धीरे धीरे तेरी यादो का
आ....ha.....!!
तू सही
मैं ग़लत ,
मैं सही
तू ग़लत ,
कब तक लड़े
यूँ ज़िंदगी से
चलो यूं ही
बेवजह जीने का
एक समझौता कर लेते हैं !!
ranjana जी samjhouton के साथ zindagi जी नहीं जाती kati जाती है sirf ......!!
सारी क्षणिकाएं बहुत कुछ कहती हुई सी पर तस्वीर और नदी का पानी....बहुत पसंद आयीं....बधाई
तस्वीर
तेरी आँखो में
चमकते हुए
अपने ही चेहरे के अक़्स॥
waah........bahut hi sundar kshanikayein.
पहली क्षणिका ही अपने पाश में ले लेती है सोचता हूँ कि आगे क्या पढ़ा जायेगा ?
बेहद सुंदर और बहुत ओरिजनल, आज कल मन से कम ही शब्द मिलते हैं. आपने रिक्तता को भर दिया, आभार.
'क्यों तुम्हारे साथ बिताई
हर शाम मुझे
आखिरी-सी लगती है
जैसे वक़्त काँच के घर
को पत्थर दिखाता है !!'
दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ!
बहुत ही सुंदर!
सभी क्षणिकाएँ भावपूर्ण हैं,अच्छी लगीं.
समझोता जिन्दगी बिताने के लिये आसान है
shukriya ranju ji apne mere blog per rev.diya jis se me aap tak pahuch paayii.
aapki saari ki sari kshanikaaye bahut bahut acchhi hai.
badhayi.
सुन्दर लघु कवितायें (क्षणिकायें)..मन के भावों को खूबसूरती से बांधा है आपने.
सबसे छोटी क्षणिका सबसे ख़ूबसूरत लगी |
"एक बहता हुआ सन्नाटा
धीरे धीरे तेरी यादो का"|
आप की प्रविष्टियों में तैरता है मन बहुत देर तक | सहज भावनाएं अभिव्यक्त हैं यहाँ | आभार |
हरसिंगार
लरजते अमलतास ने
खिलते हरसिंगार से
ना जाने क्या कह दिया
बिखर गया है ज़मीन पर
उसका एक-एक फूल
जैसे किसी गोरी का
मुखड़ा सफ़ेद हो के
गुलाबी-सा हो गया !!
ati sundar
sabhi kshnikaye apne aap me purn hai.
क्यों तुम्हारे साथ बिताई
हर शाम मुझे
आखिरी-सी लगती है
जैसे वक़्त काँच के घर
को पत्थर दिखाता है !!'
रंजना जी मुझे तो सभी ़ाणिकायें एक से बढ कर एक लगी
तू सही
मैं ग़लत ,
मैं सही
तू ग़लत ,
कब तक लड़े
यूँ ज़िंदगी से
चलो यूं ही
बेवजह जीने का
एक समझौता कर लेते हैं ...
सही कहा ज़िन्दगी एक समझौता ही तो है । यही तो वजह है जीने की। बहुत सुन्दर बधाई और नये साल की शुभकामनायें
बहुत खूबसूरत क्षणिकाएं पढ कर आनंद आ गया ।
पिछले कई दिनों से आपका ब्लौग-पृष्ठ इंटरनेट एक्सप्लोरर में खुल ही नहीं रहा था। फिर किसी ने सलाह दी कि गुगल क्रोम में खोल कर देखो...अब खुला ये पन्ना...
कमाल की क्षणिकायें, मैम!
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