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Tuesday, December 15, 2009
क्षणिकाएँ...
१)उलझन
बनो तुम चाहे
मेरी कविता
चाहे बनो अर्थ
चाहे बनो संवाद,
पर मत बनो
ऐसी उलझन
जिसे में कभी
सुलझा न सकूं!
२)तन्हा
चाँद भी तन्हा
तारे भी हैं अकेले
और हम भी उदास से
उनकी राह तकते हैं
तीनो हैं तन्हा एक साथ
फ़िर भी क्यों इस कदर
अकेले से दिखते हैं ?
३)चुपके से
आओ बेठो ,
मेरे पास
और कुछ चुपके
से कह जाओ
पर न जगाना
उन उलझनों को
जिनको थपथपा
के मैंने सुलाया है अभी !
४)दर्द
यह दर्द भी अजीब शै है
जिद्दी मेहमान सा..
दिल में बस जाता है
फ़िर चाहे इसको
पुचकारो ,संभालो जितना
यह उतना ही नयनों से
छलक जाता है!
५)समय
यूँ फिसला जैसे
हाथ धोते वक़्त
साबुन बेसिन में ॥
६)स्पर्श
कांपती साँसें
लरजते होंठ
आँखों में है
एक दबी सी ख़ामोशी
क्या वो तुम नहीं थे?
जिसने अभी छुआ था
मुझे संग बहती हवा के !!
७)अस्तित्व
रिश्तों से बंधी
पर कई खंडों में खंडित
""हाय ओ रब्बा!""
कहीं तो मुझे मेरे
अस्तित्व के साथ जीने दे!!
कुछ पुरानी क्षणिकाएँ रंजना (रंजू ) भाटिया
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41 comments:
यह दर्द भी अजीब शै है
जिद्दी मेहमान सा..
दिल में बस जाता है
फ़िर चाहे इसको
पुचकारो ,संभालो जितना
यह उतना ही नयनों से
छलक जाता है!
बहुत सुंदर लगीं यह क्षणिकाएं.... खूबसूरत शब्दों के साथ बेहतरीन रचना.....
komal
soumya
rochak
___baanch kar aanand mila
abhinandan !
"समय
यूँ फिसला जैसे
हाथ धोते वक़्त
साबुन बेसिन में॥"
जो बीत गई सो बात गई।
जीवन में एक सितारा था,
माना, यह बेहद प्यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया,
अम्बर के आनन को देखो,
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गये वे फिर कहाँ मिले?
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है?
जो बीत गई सो बात गई।
हरिवंशराय ‘बच्चन’
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएँ हैं।
घुघूती बासूती
uff ranjana ji
har kshanika ek se badhkar ek..........kis kis ki tarif karun?
dil ko choo gayin.
ख़ूबसूरत रचनाएं...एक से बढ़ कर एक....
चाँद भी तन्हा
तारे भी हैं अकेले
और हम भी उदास से
उनकी राह तकते हैं
तीनो हैं तन्हा एक साथ
फ़िर भी क्यों इस कदर
अकेले से दिखते हैं ....
शायद ये समक के क्रूर हाथों का कसूर है ....... सब तन्हा हैं पर पिघल रहे हैं अपनी अपनी तन्हाई में ..........
समय
यूँ फिसला जैसे
हाथ धोते वक़्त
साबुन बेसिन में ....
बहुत ही कमाल का लिखा ...... सच है जब तक इंसान जागता है बहुत देर हो जाती है ........
कैसे लिख लेती हैं आप .. कमाल की रचनाएं हैं .. शुभकामनाएं !!
पर मत बनो
ऐसी उलझन
जिसे में कभी
सुलझा न सकूं!
" bhut sundar ek dam sach ke kareeb"
regards
क्षणिकाओं के मध्य यह एहसास बहुत अच्छा लगा ....
यह दर्द भी अजीब शै है
जिद्दी मेहमान सा..
दिल में बस जाता है
फ़िर चाहे इसको
पुचकारो ,संभालो जितना
यह उतना ही नयनों से
छलक जाता है!
गागर में सागर जैसा एहसास।
इन क्षणिकाओं में है कुछ खास।
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छोटी सी गल्ती, जो बड़े-बड़े ब्लॉगर करते हैं।
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।
फ़िर भी क्यों इस कदर
अकेले से दिखते हैं ?
हर एक क्षणिका अपने आप में जाने कितना कुछ समेटे हुये, सभी एक से बढ़कर एक बहुत-बहुत बधाई इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिये ।
तन्हा
चाँद भी तन्हा
तारे भी हैं अकेले
और हम भी उदास से
उनकी राह तकते हैं
तीनो हैं तन्हा एक साथ
फ़िर भी क्यों इस कदर
अकेले से दिखते हैं ?
चाँद तनहा है आसमा तनहा... मीना कुमारी की मकबूल ग़ज़ल याद आ गयी... इस ब्लॉग को पढना कभी फुर्सत से... बहुत दिन से यह मंज़र कैद है आँखों में...
एक साथ तनहा रहने का अंदाज खूब भाया !
एक से एक बेहतरीन क्षणिकाएं अलग अलग रंग की। दर्द वाली तो गजब की है जी।
नए विम्बो से पुरानी तेज धार ! बहुत प्रभावित किया इन क्षणिकाओं ने ..साबुन की तरह फिसल गया समय और हम अचकचा बस देखते भर रह गए ..कुछ करने का वक्त ही न मिला ! वाह !
सातो शब्द-चित्र बहुत बढ़िया है जी!
उफ्फ!! बड़ी कातिल हैं यें क्षणिकायें तो..ऐसे गजब भाव!!
पर न जगाना
उन उलझनों को
जिनको थपथपा
के मैंने सुलाया है अभी !
क्या बात है..हमें तो हमारे विल्स कार्ड याद हो आये...बहुत सुन्दर. और लाईये!!!
atyant sundar abhivyakti ranju ji...
मन को अपने जादू के गिरफ़्त में लेती हुईं
बहुत सुंदर क्षणिकांए
एक से एक उम्दा क्षणिकायें । बहुत सुन्दर । मुग्ध हो गया ।
सभी क्षणिकाएं कोमल अहसासों से भरी हुई स्वयं का परिचय खामोशी से दे रही है....
अपने अस्तित्व को समझकर खूब कहा है....
रिश्तों से बंधी
पर कई खंडों में खंडित
""हाय ओ रब्बा!""
कहीं तो मुझे मेरे
अस्तित्व के साथ जीने दे!!
कुछ क्षणिकाएं मैंने सतरंगी परिभाषा में भी गढ़ने का प्रयास किया है.
छोटे -छोटे अनुभव-खण्डों को खूबसूरती के साथ
आपने रखा है | इसे कहते हैं सहजता जो इतने
आराम से शब्दों में उतार दी जाय |
जैसे यहाँ कहने का लहजा ही सुन्दर बन पड़ा है ;
(समय) '' यूँ फिसला जैसे
हाथ धोते वक़्त
साबुन बेसिन में ॥''
............. शुक्रिया ...
सुन्दर क्षणिकायें हैं।
बहुत खूबसूरत हैं आपकी ये क्षणिकाएं ।
इल्झन , चुपके से, समय सभी के से एक बढ कर क्षणिकायें हैं। हर शब्द दिल को छू कर रोम रोम मे बस जाता है बहुत गहरे उतर कर लिखती हैं आप बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
'उन उलझनों को
जिनको थपथपा
के मैंने सुलाया है अभी !'
वाह !वाह !!वाह !!!
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएँ!
Adardiya ranhu jee,
aapki rachna padte dil nahi bhar raha...dukh ki blog main derse read kiye..nadhai!
Ranju jee,
aapki rachna padte dil nahi bhar raha...!
रिश्तों से बंधी
पर कई खंडों में खंडित
""हाय ओ रब्बा!""
कहीं तो मुझे मेरे
अस्तित्व के साथ जीने दे!!
----वाह क्या बात है!
अपनी जड़ों का बिखरना किसे पसंद है!
रिश्तों से बंधी
पर कई खंडों में खंडित
""हाय ओ रब्बा!""
कहीं तो मुझे मेरे
अस्तित्व के साथ जीने दे!!
superb.............
sari kshanikayen bhaut achchi hain.
यह दर्द भी अजीब शै है
जिद्दी मेहमान सा..
दिल में बस जाता है
फ़िर चाहे इसको
पुचकारो ,संभालो जितना
यह उतना ही नयनों से
छलक जाता है!
Apka profile mein dard sarasvati ki tarah ret ke neeche bah raha hai..logon ke sparsh se door.
kahna ghalat nahin hai ki...
kaise kaise dard ke afsane hain,
dil ko bas diljale pahchhane hain.
गागर में सागर जैसे भाव भर लाईं है आप।
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जल में रह कर भी बेचारा प्यासा सा रह जाता है।
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
चाँद भी तन्हा
तारे भी हैं अकेले
और हम भी उदास से
उनकी राह तकते हैं
तीनो हैं तन्हा एक साथ
फ़िर भी क्यों इस कदर
अकेले से दिखते हैं ?
पर मत बनो
ऐसी उलझन
जिसे में कभी
सुलझा न सकूं!
बहुत सुन्दर क्षणिकायें.
बनो तुम चाहे
मेरी कविता
चाहे बनो अर्थ
चाहे बनो संवाद,
पर मत बनो
ऐसी उलझन
जिसे में कभी
सुलझा न सकूं!
यह दर्द भी अजीब शै है
जिद्दी मेहमान सा..
दिल में बस जाता है
फ़िर चाहे इसको
पुचकारो ,संभालो जितना
यह उतना ही नयनों से
छलक जाता है!
bahut hi khoob ,sadabahar bankar rahne wali ,
बहुत सशक्त क्षणिकायें मैम।
सबसे ऊपर वाली "उलझन" ने अपनी लिखी एक कविता याद दिला दी, लेकिन अब इतनी बेहतरीन आपका लिखा पढ़ लेने के बाद अपनी वो अदनी कविता तो किसी को न दिखा पाऊँगा।
दर्द
यह दर्द भी अजीब शै है
जिद्दी मेहमान सा..
दिल में बस जाता है
फ़िर चाहे इसको
पुचकारो ,संभालो जितना
यह उतना ही नयनों से
छलक जाता है!
बहुत सुन्दर
"तीनो हैं तन्हा एक साथ
फ़िर भी क्यों इस कदर
अकेले से दिखते हैं ?"
बेहतरीन लिखा है.. इतने सरल सुलझे शब्दों में इतने गहरे भाव कैसे पिरो लेती हैं आप.. अद्भुत है।
har sanika itni sunder hai ki kisi ek par baat karna glat hoga, bus itna hi kehna chhunga ki ranju ji aap itna sunder likhti hai ki aapka likha hua har sabd dil me utar sa jata hai
regards
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