Monday, November 23, 2009

जाने लोग यहाँ क्या-क्या तलाश करते हैं...


जाने लोग यहाँ क्या-क्या तलाश करते हैं
पतझड़ों में हम सावन की राह तक़ते हैं
अनसुनी चीखों का शोर हैं यहाँ हर तरफ़
गूंगे स्वरों से नगमे सुनने की बात करते हैं

जाने लोग यहाँ क्या-क्या तलाश करते हैं .....

बाँट गयी है यह ज़िंदगी यहाँ कई टुकड़ों में
टूटते सपनों में,अनचाहे से रिश्तों में
अजनबी लगते हैं सब चेहरे यहाँ पर
हम इन में अपनों की तलाश करते हैं

जाने लोग यहाँ क्या-क्या तलाश करते हैं .....

हर गली हर शहर में डर है यहाँ फैला हुआ
सहमा-सहमा सा माहौल हर तरफ़ यहाँ बिखरा हुआ
संगदिल हो गयी है यहाँ अब हर दिल की धड़कन
बंद दरवाज़ो में हम रोशनी तलाश करते हैं

जाने लोग यहाँ क्या-क्या तलाश करते हैं ...........

सब की ज़ुबान पर है यहाँ अपने दर्द की दास्तान
फैली हुई हर तरफ़ नाकाम मोहब्बत की कहानियाँ
टूटा आईना लगता है हर शख़्स का वज़ूद यहाँ
हम अपने गीतों में फिर भी खुशी की बात रखते हैं

जाने लोग यहाँ क्या क्या तलाश करते हैं .....

ख़ुद को ख़ुद में पाने की एक चाह है यहाँ
प्यार का एक पल मिलता है यहाँ धोखे की तरह
बरसती इन चँद बूंदों में सागर तलाश करते हैं
घायल रूहों में अब भी जीने की आस रखते हैं

जाने लोग यहाँ क्या-क्या तलाश करते हैं .....

रंजना (रंजू ) भाटिया मई २००७

28 comments:

vandana gupta said...

जाने लोग यहाँ क्या-क्या तलाश करते हैं
पतझड़ों में हम सावन की राह तक़ते हैं
अनसुनी चीखों का शोर हैं यहाँ हर तरफ़
गूंगे स्वरों से नगमे सुनने की बात करते हैं

bahut hi sundar baat kahi.

rashmi ravija said...

अजनबी लगते हैं सब चेहरे यहाँ पर
हम इन में अपनों की तलाश करते हैं
इसी अनवरत तलाश में ज़िन्दगी गुजरती रहती है....सुन्दर कविता

मुकेश कुमार तिवारी said...

रंजना जी,

यदि किसी को जीवन के उतार-चढ़ाव को देखना हो करीब से तो आपकी नज़्मों को गुनगुनाकर देख सकता है।

कुछ अपना सा लगता है यह दर्द :-

सब की ज़ुबान पर है यहाँ अपने दर्द की दास्तान
फैली हुई हर तरफ़ नाकाम मोहब्बत की कहानियाँ
टूटा आईना लगता है हर शख़्स का वज़ूद यहाँ

और यहाँ तो बात अंदर तक उतर आती है कि भले ही शख्शियत आईने सी बिखरी हो किरचों में फिर भी चाहत खुद को तलाशती है :-

ख़ुद को ख़ुद में पाने की एक चाह है यहाँ

यथार्थ के साथ बहती हुई रचना बहुत अच्छी लगी।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

Anonymous said...

'घायल रूहों में अब भी जीने की आस रखते हैं'
यही क्या काफ़ी नहीं कि इतने ग़मगीन माहौल में भी जीने की हिम्मत बाक़ी है। बढ़िया।

अनिल कान्त said...

ये रचना मुझे बहुत अच्छी लगी
जीवन से जुडी हुई

Dr. Shreesh K. Pathak said...

हर गली हर शहर में डर है यहाँ फैला हुआ
सहमा-सहमा सा माहौल हर तरफ़ यहाँ बिखरा हुआ
संगदिल हो गयी है यहाँ अब हर दिल की धड़कन
बंद दरवाज़ो में हम रोशनी तलाश करते हैं

ये पंक्तियाँ..भई हम तो इन्ही की तलाश करते है..

दिनेशराय द्विवेदी said...

जीवन की सचाई को उकेरती सुंदर नज्म!

अजय कुमार said...

सच है कि जिन्दगी भर तलाश जारी रहती है

Unknown said...

"प्यार का एक पल मिलता है यहाँ धोखे की तरह"

बहुत सुन्दर!

रश्मि प्रभा... said...

बहुत ही गहन भावनाओं का प्रारूप है ये तलाश.......अनजानी तलाश !

Himanshu Pandey said...

"टूटा आईना लगता है हर शख़्स का वज़ूद यहाँ
हम अपने गीतों में फिर भी खुशी की बात रखते हैं"

कविता ने प्रभावित किया । आभार ।

नीरज गोस्वामी said...

लाजवाब रचना...आप की हर रचना कमाल की होती हैं...
नीरज

Abhishek Ojha said...

इन अजनबियों में तलाश करने पर कभी अपने मिल भी जाते हैं ! वैसे इस तलाश को गुनगुनाने का मन हो रहा है.

रंजन said...

संगदिल हो गयी है यहाँ अब हर दिल की धड़कन
बंद दरवाज़ो में हम रोशनी तलाश करते हैं

जाने लोग यहाँ क्या-क्या तलाश करते हैं ...........

क्या बात है..

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

सब की ज़ुबान पर है यहाँ अपने दर्द की दास्तान
फैली हुई हर तरफ़ नाकाम मोहब्बत की कहानियाँ
टूटा आईना लगता है हर शख़्स का वज़ूद यहाँ
हम अपने गीतों में फिर भी खुशी की बात रखते हैं

bilkul sachchi baat kahi aapne....

bahut achchi lagi yeh kavita...

Arvind Mishra said...

बरसती इन चँद बूंदों में सागर तलाश करते हैं
घायल रूहों में अब भी जीने की आस रखते हैं

ओह !

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बाँट गयी है यह ज़िंदगी यहाँ कई टुकड़ों में
टूटते सपनों में,अनचाहे से रिश्तों में
अजनबी लगते हैं सब चेहरे यहाँ पर
हम इन में अपनों की तलाश करते हैं।।

बहुत बढिया!
शायद अपनों की तलाश के बहाने इन्सान ताउम्र खुद की ही तलाश मे लगा रहता है...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

wah wah wah....

रवि कुमार, रावतभाटा said...

बेहतर...
आप भावों की दुनिया में रहते हुए भी जमीनी हक़ीकतों पर दृष्टि ड़ाल ही लेती हैं...

दिगम्बर नासवा said...

बाँट गयी है यह ज़िंदगी यहाँ कई टुकड़ों में
टूटते सपनों में,अनचाहे से रिश्तों में
अजनबी लगते हैं सब चेहरे यहाँ पर
हम इन में अपनों की तलाश करते हैं ....

आपने इस नज़्म में बिखरे हुवे दर्द को सिमेता है .............. जिंदगी के गहरे अनुभव का सार नज़र आता है इस लाजवाब रचना में .............

Alpana Verma said...

प्यार का एक पल मिलता है यहाँ धोखे की तरह
बरसती इन चँद बूंदों में सागर तलाश करते हैं

जाने लोग यहाँ क्या-क्या तलाश करते हैं .....

-बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति.
हर पंक्ति अपनी सी aur बोलती सी लगती है.
-जीवन का सच खोलती यह कविता बेहद पसन्द आई.

Udan Tashtari said...

कितना सच है जिन्दगी है...अति सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है. बधाई...अच्छा लगा!१

निर्मला कपिला said...

बाँट गयी है यह ज़िंदगी यहाँ कई टुकड़ों में
टूटते सपनों में,अनचाहे से रिश्तों में
अजनबी लगते हैं सब चेहरे यहाँ पर
हम इन में अपनों की तलाश करते हैं
ये ज़िन्दगी की तलाश करते करते उ7म्र बीत जाती है मगर तलाश खत्म नहीं होती । इस पर दो लाईने मेरी भी---
मुझे खुद पता नहीं कि मैं क्या हूँ
कभी जर्रा तो लगता कभी खुदा हूँ
फुर्सत मिली ही नहीं अपनी तलाश की
पतझड बसंतों का सिलसिला हूँ
आपकी रचना बहुत सुन्दर है बधाई और शुभकामनायें

Murari Pareek said...

हर गली हर शहर में डर है यहाँ फैला हुआ
सहमा-सहमा सा माहौल हर तरफ़ यहाँ बिखरा हुआ
संगदिल हो गयी है यहाँ अब हर दिल की धड़कन
बंद दरवाज़ो में हम रोशनी तलाश करते हैं!!

सच !!!आज की स्थिति से अवगत कराती है आपकी रचना !!!

Ashish Khandelwal said...

वाह... हम तो आपके ब्लॉग पर ऐसी ही अद्भुत रचनाओं की तलाश करते हैं..

हैपी ब्लॉगिंग

Poonam Misra said...

आस है तो तलाश है .सुन्दर रचना

Arshia Ali said...

बहुत ही सुन्दर भाव।
शायद लोग खुद ही इतने कन्फयूज रहते है कि वे कुछ समझ ही नहीं पाते।
बहरहाल इस सुंदर कविता के लिए बधाई स्वीकारें।
और हाँ, अगर आप साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन अवार्ड वाली सूचना पोस्ट के उपर लगा दें, तो ज्यादा बेहतर होगा।


------------------
क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?
पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।

सुशील छौक्कर said...

ना जाने कैसे आपकी इतनी बेहतरीन रचना पढे बगैर छूट रही थी हमसे। लोगो के जीवन की परतों को एक एक करके खोल दिया आपने। बहुत ही बेहतरीन रचना।