Monday, November 02, 2009

बदली हुई फ़िज़ा


बदली हुई रुत ..
बदली हुई फिजा ..
जाग रही है ...
दो रूहों की
एक ही हलचल
मद्धम मद्धम ..

रात की गहरी चुनरी ओढे
चाँद भी मुस्कराया ..
और .............
लबों पर तैरता
चाँदनी के मुख पर
वो हल्का सा तब्बसुम
या फ़िर रुकी हुई है
कोई शबनम की बूंद ..

परियों के अफ़साने हैं
या फ़िर से कोई सपना
उतर आया है ..
मेरी आँखों में ..
वह खामोशी ...
अब फ़िर से
जागने लगी है
जिसे बरसों पहले
थपकी दे के सुलाया था !!

रंजना (रंजू ) भाटिया

39 comments:

नीरज गोस्वामी said...

ग़ज़ब के शब्द ग़ज़ब के भाव और ग़ज़ब की रचना...वाह...रंजू जी वाह...
नीरज

M VERMA said...

परियों के अफ़साने हैं
या फ़िर से कोई सपना
रूहों की हलचल है फिर यह सपना कैसे?
बहुत ही करीबी एहसास और भाव

दिनेशराय द्विवेदी said...

बदलते मौसम पर सुंदर भावाभिव्यक्ति!

ओम आर्य said...

बहुत ही सुन्दर है.......

बदलती फिज़ाओ की ताराना.....
दिल के तारो को इसने छुआ मद्धम मद्धम ........

के सी said...

मौसम को बुनती हुई एक अंगडाई की कविता. स्वप्न से जगने के ठीक पहले और बाद का सुंदर चित्रण. खामोशी के जागने का बिम्ब सिरमोर है. सुंदर कविता !

अनिल कान्त said...

आपकी रचना तो होती ही है बेहतरीन
हमें तो टिपण्णी के लिए शब्द कम पढ़ जाते हैं

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

bahut khoobsoorat abhivyakti saath ek khoobsoorat rachna.....


Regards.....

Satish Saxena said...

आशाएं भावुक मन से निकली नहीं जा सकतीं ....बहुत बढ़िया !

समयचक्र said...

मौसम बदलने के साथ फिजां भी बदल जाती है . बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति . आभार . काफी दिनों बाद आपकी प्रस्तुति पढ़ने मिली .

Udan Tashtari said...

सुन्दरतम कोमल भाव!! वाह रंजू मैडेम..बेहतरीन!

Crazy Codes said...

चाँदनी के मुख पर वो हल्का सा तब्बसुम
या फ़िर रुकी हुई है कोई शबनम की बूंद...

shabdvihin hun is kavita ke aage... bhojpuri cinema ke actor hai, unke style mein kahun to... adbhutaas...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बदली हुई रुत ..
बदली हुई फिजा ..
जाग रही है ...
दो रूहों की
एक ही हलचल
मद्धम मद्धम ..

सुन्दर अभिव्यक्ति!
बधाई!

रश्मि प्रभा... said...

परियों के अफ़साने हैं
या फ़िर से कोई सपना
उतर आया है ...
तब तो निःसंदेह कोई नज़्म उतरेगी

सुशील छौक्कर said...

बहुत ही खूबसूरत अहसास को सुन्दर शब्दों से कह दिया।
फ़िर से कोई सपना
उतर आया है ..
मेरी आँखों में ..
वह खामोशी ...
अब फ़िर से
जागने लगी है
जिसे बरसों पहले
थपकी दे के सुलाया था

वाह। कमाल का लेखन।

Abhishek Ojha said...

वाह क्या अहसास है !

Abhishek Ojha said...

*एहसास :)

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगी आप की यह कविता.
धन्यवाद

Alpana Verma said...

रूमानी अंदाज़..सपनो की हलचल से टूट गयी खामोशियों की नींद ..... अब उन्हें यूँ ही जागे रहने दिजीये...
बहुत ही खूबसूरत भाव अभिव्यक्ति है..

Asha Joglekar said...

सुंदर और भाव भीनी ।

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

मेरी आँखों में ..
वह खामोशी ...
अब फ़िर से
जागने लगी है
जिसे बरसों पहले
थपकी दे के सुलाया था !!

ufff!! kya ending ki hai aapne...ultimate mam..just superb

Sudhir (सुधीर) said...

मेरी आँखों में ..
वह खामोशी ...
अब फ़िर से
जागने लगी है
जिसे बरसों पहले
थपकी दे के सुलाया था !!


क्या गहरी बात कह दी आपने...सुन्दर अति सुन्दर ....साधू!!

Sudhir (सुधीर) said...

मेरी आँखों में ..
वह खामोशी ...
अब फ़िर से
जागने लगी है
जिसे बरसों पहले
थपकी दे के सुलाया था !!


क्या गहरी बात कह दी आपने...सुन्दर अति सुन्दर ....साधू!!

Unknown said...

बहुत कम कवितओं की तरीफ कर् पाता हुं, पर ये कविता मुझे दोबारा पढ़्ने के योग्य लगी.

Arvind Mishra said...

इत्तीं जल्दी ख़त्म हो गयी कविता
यूं ही पढ़ते हुए
मद्धम मद्धम
!

vandana gupta said...

वह खामोशी ...
अब फ़िर से
जागने लगी है
जिसे बरसों पहले
थपकी दे के सुलाया था !!

sab kuch kah diya inhi panktiyon ne...........bahut hi khoobsoorat bhavavyakti.

दिगम्बर नासवा said...

वह खामोशी ...
अब फ़िर से
जागने लगी है
जिसे बरसों पहले
थपकी दे के सुलाया था .....

bhaav और शब्द poorak हो गए हैं आपकी रचना के ........ कुछ soye huve khwaab pariyon के देश से ........ या chaandni के mukh पर halka सा tabbasum या shabnam की boond ......... कमाल के शब्द और उनकी abhivyakti ..... बहुत ही sundar रचना है ..........

रंजन said...

बहुत सुन्दर..

neera said...

वह खामोशी ...
अब फ़िर से
जागने लगी है
जिसे बरसों पहले
थपकी दे के सुलाया था !!

वाह!

neera said...

वह खामोशी ...
अब फ़िर से
जागने लगी है
जिसे बरसों पहले
थपकी दे के सुलाया था !!

वाह! अति सुंदर!

Mohinder56 said...

रितु, फ़िजा, रूह, तब्बसुम, चांदनी जहां हो ... वहां परियों के अफ़साने तो खुदबखुद बन जायेंगे.. सुन्दर प्रेम कविता

Himanshu Pandey said...

"दो रूहों की
एक ही हलचल
मद्धम मद्धम .."

गजब की सांगीतिक प्रतीति । तराने जैसा स्वाद । कविता तो खैर शक्ल से । आभार ।

Manav Mehta 'मन' said...

बहुत ही खूबसूरत अहसास है.......टिपण्णी के लिए शब्द कम है.......

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) said...

Nice thoughts

happy blogging

ज्योति सिंह said...

परियों के अफ़साने हैं
या फ़िर से कोई सपना
उतर आया है ..
मेरी आँखों में ..
वह खामोशी ...
अब फ़िर से
जागने लगी है
जिसे बरसों पहले
थपकी दे के सुलाया था !!
umda ,bahut hi shaandar .

पुनीत ओमर said...

सुन्दर.. लगा की शब्द कुछ और होते भाव कुछ और निखरते.. तो जरा सकूँ मिलता

Arshia Ali said...

रातों की खामोशी को जगाने का उपमान कितना सार्थक है।
इस नवीन प्रयोग के लिए बधाई।
------------------
और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।

आलोक साहिल said...

fiza vaastav mein badal si gayi hai.......
Alok Sahil

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्या भाव व्यक्त किये हैं रंजना जी.......वाह वाह.

!!अक्षय-मन!! said...

एक सुरीली रचना संजीवनी सी जो मन मे एक अलग ही उत्साह जगती है आपकी ये रचना बहुत ही अच्छी लगी...........



माफ़ी चाहूंगा स्वास्थ्य ठीक ना रहने के कारण काफी समय से आपसे अलग रहा

अक्षय-मन "मन दर्पण" से