Tuesday, April 28, 2009

मिलन ....



कैसे बांधे...मन से मन की डोर
मैं एक दरिया की लहर ,चली मिलने सागर की ओर

दिल में बसे हैं जाने, कितने सपने सलोने
आंखो की लाली में दिखे ,प्यार की भोर
महके मेरा तन -मन जैसे केसर
जब दिल में जगे ,यादों का छोर

मैं एक दरिया की लहर ,चली मिलने सागर की ओर

खिले हुए हैं अरमानों के पंख सुहाने
मनवा बस खींचे तेरी ही ओर
कैसे पार लगाऊं अब यह रास्ता
कठिन बहुत है प्यार का हर मोड़
मैं एक दरिया की लहर , चली मिलने सागर की ओर ....

पीछे बीता सप्ताहांत ऋषिकेश ,गंगा नदी के साथ बीता ..चलती ठंडी हवा और बहती नदी की लहरें ......अदभुत लगता है बीतता हर लम्हा ...और दे जाता है दिल की बहती उथल पुथल में कई विचार ,कई सोच ओर कई नए लफ्ज़ ...उन्ही विचारों से एक विचार ,कुछ इस तरह से कागज पर बिखरे ...

रंजना
( रंजू ) भाटिया ,ऋषिकेश ..२६ अप्रैल २००९

26 comments:

PN Subramanian said...

बड़ी सुन्दर लगी गंगा मैय्या से प्रेरित आपकी कविता. आभार

सुशील छौक्कर said...

मुझे थोडा आईडिया हो गया था।
ठंडी हवा और लहरों ने एक अच्छी खूबसूरत रचना दे दी। पढकर आनंद आ गया।

मैं एक दरिया की लहर , चली मिलने सागर की ओर

वाह।

Ashish Khandelwal said...

मैं एक दरिया की लहर , चली मिलने सागर की ओर . बहुत अच्छा लिखा है आपने... तो आजकल आप छुट्टियां मना रही हैं .. :)

संगीता पुरी said...

अच्‍छा .. तो छुट्टियां मना रही हैं आप .. और साथ में सुंदर रचनाएं भी .. बहुत अच्‍छी लगी यह रचना भी।

मुकेश कुमार तिवारी said...

रंजना जी,

गंगा मईया में एकाध डुबकी हम ब्लॉगर्स के नाम के भी लगा लीजियेगा, यदि कोई पाप एकाउंट मेम चढा होगा तो उतर जायेगा।

सुखद सप्ताहांत के लिये, मंगल कामनायें।

हर प्रवास अपने साथ, नये विचार लाता है, नया नज़रिया बनाता है, यह चरितार्थ करती आपकी कविता लहरों का सफर कराती हैं।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

डॉ .अनुराग said...

फोटो देखकर ही हम ईष्याया रहे है.....क्या कहे ?इधर सूरज से जंग जारी है....

mehek said...

दिल में बसे हैं जाने, कितने सपने सलोने
आंखो की लाली में दिखे ,प्यार की भोर
महके मेरा तन -मन जैसे केसर
जब दिल में जगे ,यादों का छोर
behad khubsurat manmohit kare bhav,sunder chitra bhi.

"अर्श" said...

AAPKI YE DIL KO AHLAADIT KARDENE WAALI RACHANAA HAI AHLAADIT KA ARTH BHAV SE HAI ... BAHOT HI KHUBSURAT RACHANAA HAI.. ITNI KHUBSURAT KAVITA KE LIYE AAPKO DHERO BADHAAYEE..


ARSH

डॉ. मनोज मिश्र said...

मैं एक दरिया की लहर ,चली मिलने सागर की ओर ...
वाह ,कितनी गहन भावों से भरी लाइनें हैं .

रश्मि प्रभा... said...

गाती,मचलती,खिलखिलाती-सी रचना

Shikha Deepak said...

कैसे बांधे...मन से मन की डोर................................
मैं एक दरिया की लहर ,चली मिलने सागर की ओर
बहुत सुंदर लिखा है...........मैं आँख बंद करती हूँ तो आपकी एक एक पंक्ति को हृदय से महसूस कर रही हूँ।

गौतम राजऋषि said...

गंगा-तीरे रचे इस गीत को गुनता टिप्पणी पर आया तो डाक्टर अनुराग साब की टिप्पणी पढ़ कर रोक नहीं और हँसे जा रहा हूँ....सूरज से जारी इस जंग सचमुच ही तो आपसे ईर्ष्या तो होगी ही जो आप यूं खुले आम छुट्टी की बात करेंगी...

एक और कमाल की रचना रंजु की कलम से

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही खूबसूरत भाव उकेर दिये हैं आपने. एकदम गंगा किनारे की ताजगी उतर आई है शब्दों में.

रामराम.

Anonymous said...

दिल में बसे हैं जाने, कितने सपने सलोने
आंखो की लाली में दिखे ,प्यार की भोर
महके मेरा तन -मन जैसे केसर
जब दिल में जगे ,यादों का छोर
bahut sundar aur bhaav pradhaan abhivyakti hai.
-vijay

हरकीरत ' हीर' said...

कैसे बांधे...मन से मन की डोर
मैं एक दरिया की लहर ,चली मिलने सागर की ओर

बहुत सुंदर .......!!

और ....सपने सलोने, प्यार की भोर,यादों का छोर....मुबारक.....!!

Abhishek Ojha said...

आपके मनोरम ऋषिकेश प्रवास से ऐसी रचना स्वाभाविक ही है ! ऋषिकेश के बारे में भी कुछ लिखिए.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"......अदभुत लगता है बीतता हर लम्हा ...और दे जाता है दिल की बहती उथल पुथल में कई विचार ,कई सोच ओर कई नए लफ्ज़ ...उन्ही विचारों से एक विचार ,कुछ इस तरह से कागज पर बिखरे ..."
सुन्दर चित्र,
सुन्दर चित्रण।
बधाई।

Arvind Mishra said...

बेकरार है सागर भी इधर !

Alpana Verma said...

'आंखो की लाली में दिखे ,प्यार की भोर'

इस पंक्ति ने मोह लिया...

खूबसूरत कविता .

बेशक़ ऋषिकेश की प्राकृतिक सुंदरता ने आप को यह सुंदर कविता लिखने को प्रेरित किया होगा उत्तरांचल पूरा है ही इतना सुंदर..

मोना परसाई said...

कैसे बांधे...मन से मन की डोर
मैं एक दरिया की लहर ,चली मिलने सागर की ओर
दरिया की व्याकुलता सागर में एकाकार होकर ही शांत होती है ,जैसे आत्माकी परमात्मा में लीन होकर .ताजगी से भरी हुई यह रचना खुबसूरतहै .

मोना परसाई said...

कैसे बांधे...मन से मन की डोर
मैं एक दरिया की लहर ,चली मिलने सागर की ओर
दरिया की व्याकुलता सागर में एकाकार होकर ही शांत होती है ,जैसे आत्माकी परमात्मा में लीन होकर .ताजगी से भरी हुई यह रचना खुबसूरतहै .

अनिल कान्त said...

पढ़कर ठंडक मिली ....बहुत ही प्यारी कविता ...

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Mohinder56 said...

पर्यटन और रचनाधर्मिता दोनों एक साथ निभा दी आपने...और हम हैं कि कोल्हू के बैल की तरह घर और आफ़िस के खूंटे से ही अटके हुये हैं :)

प्रिया said...

मैं एक दरिया की लहर , चली मिलने सागर की ओर ....bahut sunder ranju mam, kavita kaise banti hain ye to bas aapse seekhne wala hain :-)

दिगम्बर नासवा said...

कैसे बांधे...मन से मन की डोर
मैं एक दरिया की लहर ,चली मिलने सागर की ओर

beeta huva समय...........manmohak prkriti के beech और भी sajeev हो जाता है फिर kavo मन से कविता नहीं.........lahron का saagar umadta है .........sundar rachna है

Asha Joglekar said...

Sunder saloni kawita.