Thursday, April 23, 2009

जीने की वजह


दुःख ...
आतंक ...
पीड़ा ...
और सब तरफ़
फैले हैं .............
न जाने कितने अवसाद ,
कितने तनाव ...
जिनसे मुक्ति पाना
सहज नही हैं
पर ,यूँ ही ऐसे में
जब कोई...
नन्हीं ज़िन्दगी
खोलती है अपने आखें
लबों पर मीठी सी मुस्कान लिए
तो लगता है कि
अभी भी एक है उम्मीद
जो कहीं टूटी नहीं है
एक आशा ...
जो बनती है ..
जीने की वजह
वह हमसे अभी रूठी नही है !!

रंजना ( रंजू) भाटिया
चित्र गूगल से

42 comments:

अनिल कान्त said...

haan ye bilkul sach baat kahi ....bahut pyari panktiyaan hain

अविनाश वाचस्पति said...

एक और उम्‍मीद

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कुश said...

समुन्दर बह गया है इस बार तो.. कम शब्दों में गहरी बात कहने का हुनर आपको मालूम है..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जिन्दगी रूपी परी नई-नई दुनिया में आई है।
काश! दुनिया इसी की जैसी निश्छल होती।
आशा की किरण शायद अभी बाकी है।
सन्देश देते सुन्दर शब्दों के लिए बधाई।

Ashish Khandelwal said...

बहुत सुंदर लिखा है आपने.. उम्मीद पर ही तो दुनिया टिकी है.. आभार

अभिषेक मिश्र said...

Vakai ummedein abhi kaayam hain.

seema gupta said...

पर ,यूँ ही ऐसे में
जब कोई...
नन्हीं ज़िन्दगी
खोलती है अपने आखें
लबों पर मीठी सी मुस्कान लिए
" mn ko bha gyi ye panktiyan sundr.."

regards

शोभा said...

एक आशा ...
जो बनती है ..
जीने की वजह
वह हमसे अभी रूठी नही है !!
वाह! बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।

Mohinder56 said...

कम शब्दों में बडी गहरी बात कह दी आपने... जीवन दर्शन लिख डाला

मोना परसाई said...

नन्हीं ज़िन्दगी
खोलती है अपने आखें
लबों पर मीठी सी मुस्कान लिए
तो लगता है कि
अभी भी एक है उम्मीद
जो कहीं टूटी नहीं है
.....नन्ही मुस्कान की उजास फैलते ही हमारे सारे कलुष -तम तिरोहित हो जाते है .सुंदर भाव सशक्त सम्प्रेष्ण .

मोना परसाई said...

नन्हीं ज़िन्दगी
खोलती है अपने आखें
लबों पर मीठी सी मुस्कान लिए
तो लगता है कि
अभी भी एक है उम्मीद
जो कहीं टूटी नहीं है
.....नन्ही मुस्कान की उजास फैलते ही हमारे सारे कलुष -तम तिरोहित हो जाते है .सुंदर भाव सशक्त सम्प्रेष्ण .

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

बहुत ही खूब। उस नन्ही सी जिंदगी में इंसान तो इंसान शैतान भी कभी-कभी अपनी शैतानियत भूल जाता है।

प्रिया said...

wah ranju mam, kam shabdo mein phir kah di aapne gahri baat.... ye to dil ko chu gai....... sahi hai ..... ummed par hi to jeetey hain hum sab

डॉ .अनुराग said...

डूब जाती है मेरी सारी परेशानिया उसके खेलो के समंदर में........
ये तो मेरा आजमाया हुआ नुस्खा है रंजना जी......

शेफाली पाण्डे said...

तभी तो जिदगी चलती रहती है ....

शेफाली पाण्डे said...

तभी तो जिदगी चलती रहती है ....

निर्मला कपिला said...

yahi ashanchal to jeene ke liye utsah deta hai bahut sunder abhivyakti hai

Alpana Verma said...

अभी भी एक है उम्मीद
जो कहीं टूटी नहीं है
एक आशा ...
जो बनती है ..
जीने की वजह
वह हमसे अभी रूठी नही है !!

सच है उसी नन्हीं सी मुस्कान का उजाला हम में नयी आशा का संचार करता है.
खूबसूरत कविता..और चित्र चयन भी सुन्दर है.

सुशील छौक्कर said...

सच्चे सुन्दर शब्दों से एक सच्ची बात कह दी। अद्भुत।

संगीता पुरी said...

बहुत खूब !!

P.N. Subramanian said...

वो छोटी छोटी मुस्कुराहटें जो जीवन में शहद घोलती हैं. आपकी रचना वाकई सुन्दर है.

mehek said...

bilkul sach kaha,ek nahi si muskan zindagi ke mayane hi badal deti hai.aashawadisunder rachana badhai.

मीनाक्षी said...

यही नन्ही सी आशा जीने का सबब बन जाती है...रचना में अध्यात्मवाद आकर्षित करता है...

मीनाक्षी said...

यही नन्ही सी आशा जीने का सबब बन जाती है...रचना में अध्यात्मवाद आकर्षित करता है...

Shikha Deepak said...

बहुत सुंदर.............जाने कितनी जिंदगियों का आधार है या आशा........यह उम्मीद।

दिनेशराय द्विवेदी said...

आशा कभी नहीं रूठती
हम ही उस से कतराते रहते हैं।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

सही कहा है किसी ने उम्मीद पर दुनिया कायम है . बहुत सुंदर कविता

Abhishek Ojha said...

बहुत पसंद आई जीने की वजह !

admin said...

बहुत खूब, आशा की यह किरण ही जीवन को जीने लायक बनाती है।

-----------
मॉं की गरिमा का सवाल है
प्रकाश का रहस्‍य खोजने वाला वैज्ञानिक

vandana gupta said...

ummeed par hi to duniya kayam hai............aur wo hi jeene ki wajah ban jati hai.

Unknown said...

बहुत सही लिखा है आपने. जीना इसी का नाम है .

रश्मि प्रभा... said...

भावपूर्ण रचना.....

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर और भावपुर्ण कविता.

रामराम.

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत सुंदरकविता,तारीफ के काबिल सदैव .

सतीश पंचम said...

जब चारों ओर दौ लगी हो...विनाश मचा हो तो ऐसे में किसी नन्हीं कली का आँख खोलना ही सपंदन है।

इस स्पंदन को आपने बखूबी शब्दों में पिरोया है।

गौतम राजऋषि said...

आपने रूला दिया रंजना जी...कविता को मेल कर दिया संजीता को पढ़ने के लिये...
"अभी भी एक है उम्मीद/जो कहीं टूटी नहीं है
एक आशा / जो बनती है / जीने की वजह
वह हमसे अभी रूठी नही है"

मेरे होने का संपूर्ण सच...

Prasun Kulshrestha said...

awesome blog hai ranjana ji...if u remember me, prasun.
pls visit my blog www.loveprasun.blogspot.com

दिगम्बर नासवा said...

नन्हीं ज़िन्दगी
खोलती है अपने आखें
लबों पर मीठी सी मुस्कान लिए
तो लगता है कि
अभी भी एक है उम्मीद
जो कहीं टूटी नहीं है

बहुत सुन्दर रचना है..........आशाओं से भरी............जीवन की ललक लिए .............

अमिताभ श्रीवास्तव said...

nanhi muskaan ki tarah hi aapko saadhuvaad..
saral shbdo me gahree baat karnaa bhi saral nahi hota kintu aap isme mahaarthi he...
ummid aour aashaa, jivan ke stambh he.. aour is roop me jisme aapne likhaa sachmuch pasand aayaa...

अर्चना said...

yah sach hai, ek nanhi si muskaan na jaane kitane awasaad, kitane tanaawon se mukti de jaati hai.bahut achchhi lagi.

अभिषेक आर्जव said...

...लेकिन शायद यही उम्मीद तो हमें बार बार उस क्रूर थथार्थ से एक क्षणिक पलायन का अवसर दे देती है अंततः जिसका प्रत्यक्षीकरण मनुष्य की अटल नियती है !

PREETI BARTHWAL said...

कहते हैं उम्मीद पे दुनियां कायम है। छोटी-सी एक उम्मीद,एक आशा हमारे जीने का कारण बन जाती है। और हम उसकी डोर को थामे जीवन जीते चले जाते हैं। बहुत सुन्दर लिखा आपने रंजना जी।