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Monday, February 23, 2009
आभास
आकार नही ..
साकार नही..
बस ...
एक आभास ही तो है
और है ..
एक धीमी सी
लबों पर जमी हँसी
जो लफ्जों के पार से
हर सीमा से ..
छू लेती है रोम रोम
और फ़िर ...
चाहता है यह
बवारा मन
मोहक अनुभूति
के कुछ क्षण
जिस में रहे न कुछ शेष
न कुछ खोना
और न ही कुछ पाना
बस यूँ ही ...बहते बहते
कहीं एकाकार हो जाना ...........
(यह रचना कोशिश है एक ऐसी अनुभूति को पाने की ,जहाँ पहुँच कर सब कुछ जैसे एकाकार हो उठता है , मन में जो भाव रहते हैं ,वह शिव की शक्ति होने का प्रतीक भी रहते हैं और उसी में कहीं गुम हो कर ,प्रेम की वह उच्च अवस्था जहाँ सिर्फ़ प्रेम का मधुर मीठा एहसास है ...)
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43 comments:
बहुत खुब...
समर्पिता !
बहुत सही लिखा आपने... मन में उठते भावों का कोई आकार नहीं होता परन्तु यही जीवन के कर्णधार हैं.
बहुत सुंदर...
ईमानदार लेखनी से उपजी कविता है ये... बहुत ही सुंदर.. वाकई
bahut khoob.....ye to ishvariya anubhuti ko vyakt karti kavita hai.......aabhas hi to hai.
रूमानी .....
और फ़िर ...
चाहता है यह
बवारा मन
मोहक अनुभूति
के कुछ क्षण
जिस में रहे न कुछ शेष
न कुछ खोना
और न ही कुछ पाना
बस यूँ ही ...बहते बहते
कहीं एकाकार हो जाना ...........
अति सुन्दर अनुभूति की अभिव्यक्ति
न कुछ खोना
और न ही कुछ पाना
बस यूँ ही ...बहते बहते
कहीं एकाकार हो जाना ...
--बहुत उम्दा..वाह!
आहा क्या ज़ज्बात हैं. खूबसूरत. आभार.
bahut hi achhi rachna..........
भावपूर्ण रचना है. बधाई.
Shaandaar kavita..
एकाकार हो जाना ...........
शब्दों पर बारीक पकड़
बावरा मन,
कुछ सही नहीं है
यह रंग ढंग :-))
वैसे, बेहद प्यारी कविता।
कविता उथल-पुथल पैदा करती है मैने तो पहले भी कहा था कि ऐसा लगता है कि कविता कुछ और कहेगी। अच्छी कविता।
कविता उथल-पुथल पैदा करती है मैने तो पहले भी कहा था कि ऐसा लगता है कि कविता कुछ और कहेगी। अच्छी कविता।
बस यूँ ही ...बहते बहते
कहीं एकाकार हो जाना ...........
ek khubsurat anubhuti,waah sundar
क्या कहूँ रंजू जी नि:शब्द सा हो गया हूँ पढकर। बस एक शब्द कहूँगा। अद्भुत ।
खूबसूरत है ये बावरे मन की अनुभूति.
मनमोहक कविता, आत्मीय रचना.........
मन को छूते हुवे निकल गयी
bahut badhia likha hai aapane
अनुभूति के उन विशेष क्षणों में जो निःशेष कर दें, एक विचित्र-सा मुग्ध भाव रहा करता है, और कुछ ऐसा अहेतुक पाने की इच्छा जिसे आप आभास कह रही हैं।
पता नहीं क्यों मैं इस कविता की संवेदना से बहुत दूर तक अपने को जुड़ा हुआ महसूस कर रहा हँ ।
रचना के लिये आभार ।
मुझे तो आपकी इन्हीं पंक्तियों ने बांह थाम रोक लिया -
एक धीमी सी
लबों पर जमी हँसी
जो लफ्जों के पार से
हर सीमा से ..
छू लेती है रोम रोम
बहुंत-बहुत सुन्दर। इसे अनुभव ही किया जा सकता है, व्यक्त नहीं।
लफ़्ज़ो मे जैसे रूह उतर गई हो...बेहद खूबसूरत भाव... हमेशा की तरह दिल मे उतर जाने वाला भाव
रंजना जी...हमेशा की तरह अद्भुत रचना है ये आपकी...वाह..
नीरज
एक सुंदर रचना----शिव की तरह सच्ची और सुंदर रचना पढ़वाने के लिये शुक्रिया मैम
बहुत अच्छी लगी खास कर ये पंक्तियाँ-
"चाहता है यह
बवारा मन
मोहक अनुभूति
के कुछ क्षण
जिस में रहे न कुछ शेष
न कुछ खोना
और न ही कुछ पाना
बस यूँ ही ...बहते बहते
कहीं एकाकार हो जाना ...."
शुभ शिवरात्री
एक धीमी सी
लबों पर जमी हँसी
जो लफ्जों के पार से
हर सीमा से ..
छू लेती है रोम रोम
--सफल अभिव्यक्ति,
सुंदर रचना.
बहुत अच्छी कविता।
न कुछ खोना
और न ही कुछ पाना
बस यूँ ही ...बहते बहते
कहीं एकाकार हो जाना
bahut khub....
ye bhi padhe asha hai aapko pasand ayegi..
www.tapashwani.blogspot.com
और फ़िर ...
चाहता है यह
बवारा मन
मोहक अनुभूति
के कुछ क्षण
जिस में रहे न कुछ शेष
न कुछ खोना
और न ही कुछ पाना
बस यूँ ही ...बहते बहते
कहीं एकाकार हो जाना ...........
" behd aakrshk ..mnmohak...or sunder.."
Regards
bahut bahut sundar.........
बहुत सुन्दर कविता. मन प्रसन्न हो गया. आभार.
bahut se tippanikaaro ne bahut kuchh kahaa he..
mere liye kuchh baaki nahi rah gaya..
pr fir bhee kahoonga
jis uddeshya ke liye likhi gai he ye rachna us uddeshya par poori tarah kharee utarti he..
sunadar rachna...
sachmuch bahut umda...
और फ़िर ...
चाहता है यह
बवारा मन
मोहक अनुभूति
के कुछ क्षण
जिस में रहे न कुछ शेष
न कुछ खोना
और न ही कुछ पाना
बहुत खूब कहा है आपने, बधाई।
दिल से लिखा है आपने इसलिए दिल से बधाई
बहुत दिनों बाद फिर कविता पढ़ने को पाई
दिल से उठी आवाज़......
बहुत ही बढिया.....
और फ़िर ...
चाहता है यह
बवारा मन
मोहक अनुभूति
के कुछ क्षण
जिस में रहे न कुछ शेष
न कुछ खोना
और न ही कुछ पाना
बस यूँ ही ...बहते बहते
कहीं एकाकार हो जाना
dil ko choo gai aapki kavita
इस रचना को पढ़ रूमानी सा हो गया
और फ़िर ...
चाहता है यह
बवारा मन
मोहक अनुभूति
के कुछ क्षण
जिस में रहे न कुछ शेष
न कुछ खोना
और न ही कुछ पाना
बस यूँ ही ...बहते बहते
कहीं एकाकार हो जाना ...........
बहुत सुन्दर भाव, बधाई।
एकाकार हो जाना बहते बहते ।
वाह बहुत सुंदर ।
सुन्दर रचना,
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