Thursday, February 19, 2009

यह मूर्ति तो मेरे आस्कर अंकल से बहुत मिलती जुलती है..


ऑस्कर नाम आज कल रोज़ सुनाई देता है स्लमडॉग मिलेनियर के सिलसिले में ....यह बहुत ही प्रसिद्ध पुरस्कार है जो सिनेमा में दिया जाता है ..इस पुरस्कार का नाम ऑस्कर कैसे पड़ा क्या आप जानना चाहेंगे ...

४ मई १९२७ को जब चलचित्र कला और विज्ञान अकादमी की स्थापना की तो इसकी संख्या सिर्फ़ ३६ थी ..और आज इस संस्था के सदस्यों की संख्या पाँच हजार से भी अधिक है ..

इस संस्था का पहला समारोह १६ मई १९२९ को रूसवेल्ट होटल में हुआ ,जो की हालीवुड में है ..तब केवल इस में ११ इनाम बांटे गए .अब तो इन पारितोषिकों की संख्या बहुत बड़ी है ..इस संख्या के पहले कला निर्देशक थे सेड्रिक गिब्बज उसी ने एक कलामूर्ति बनाई जिसका नाम आज ऑस्कर है ..तब यह नाम नहीं था इसका ..

सन १९३१ का एक दिन ..इसी संस्था की लाइब्रेरी खुली थी ....मार्गेट हेरिक बैठी काम कर रहीं थी ..वहां पर यह कलामूर्ति लायी गई ...इसको जब इस को लाइब्रिरी में काम करने वाली एक महिला ने देखा तो देखती रह गई ..उसको यूँ हैरान देख कर उसकी एक मित्र ने पूछा कि क्या हुआ यूँ हैरान क्यों हो ...?

वह बोली कि यह मूर्ति तो मेरे ऑस्कर अंकल से बहुत मिलती जुलती है ..कमाल है ..

अच्छा ऐसा है ...मित्र ने तो कह दिया पर वहां बैठे एक पत्रकार ने भी यह सुना और अगले दिन ऑस्कर अंकल अखबार में छा गए ...
बस तब से यह मूर्ति ,यह कार्यक्रम अकदामी का समारोह ऑस्कर के नाम से जाना जाने लगा ....इसका कोई विधिवत नामकरण संस्कार भी नहीं हुआ ..फ़िर भी नाम हो गया ..अब यह नाम कानूनी रूप से प्रसिद्ध है ...

भारत में ऑस्कर सम्मान केवल दो बार मिला है ..एक बार भानु अत्थेया को १९८२ में गांधी वेशभूषा के लिए मिला था और फ़िर सत्यजीत राय को ....अब देखते हैं है कि यह २२ फरवरी को किस फ़िल्म की झोली में जाता है

किसी अनजान आदमी के नाम पर रखा ऑस्कर नाम आज बहुत बिश्व प्रसिद्ध तथा एक बहुत बड़े सम्मान का सूचक है |

33 comments:

seema gupta said...

किसी अनजान आदमी के नाम पर रखा आस्कर नाम आज बहुत बिश्व प्रसिद्ध तथा एक बहुत बड़े सम्मान का सूचक है |

" is award pr likha gya sundr lekh"

regards

Mishra Pankaj said...

really good knowledge.

राजीव तनेजा said...

बढिया आलेख...जानकारी के लिए शुक्रिया

Alpana Verma said...

'किसी अनजान आदमी के नाम पर रखा आस्कर नाम '

वाह ! यह भी खूब रही!
यह तो 'ओस्कर 'मूर्ति के बारे में बहुत ही रोचक जानकारी मिली.

रश्मि प्रभा... said...

वाह........इस बात से मैं अनजान थी

कंचन सिंह चौहान said...

waah bahut achchhi aan kaari, is ke liye shukriya

अविनाश said...

पता नही ऑस्कर का इतना हाव्वा क्यू है? जब की ज़्यादा तार अवॉर्ड पश्चिमी देशो को मिलता आया है. क्या एशिया ई ओए अफरीसी मुल्को मे अच्छे सिनेमा नही बनते?

हिंदुस्तानी फिल्मों के लिए सबकुछ नहीं है ऑस्कर। हालांकि उसकी अपनी अहमियत है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि जिसे ऑस्कर मिल गया वो महान फिल्म हो गयी और जिसे नहीं मिला वो बेकार फिल्म है। ये अमिताभ के विचार हैं और मैं जानता हूं कि अब जो मैं कहने जा रहा हूं उसके बाद हो सकता है कि मुझे दकियानूसी और न जाने क्या-क्या कहा जाएगा।

लेकिन कुछ सवाल जो हमें खुद से पूछने चाहिए, वो ये कि अगर सदी के महानायक ने स्लमडॉग मिलेनियर के बारे में अपने ब्लॉग पर कुछ कमेंट डाले तो क्या उन्हें इसका हक नहीं है। अगर उनके ब्लॉग पर इस फिल्म के बारे में कुछ लिखा हुआ है तो इसमें गलत क्या है। हालांकि वो ये बात साफ कर चुके हैं कि वो लेख उनका नहीं था वो कुछ पाठकों के कमेंट थे जिन्हें उन्होंने अपने ब्लॉग पर डाल दिया था। उन्होंने ये भी कहा कि उनका इरादा एक बहस शुरू करने का था।

जिन लोगों को नहीं मालूम उन्हें मैं एक बात बताना चाहता हूं कि सबसे पहले ये फिल्म किसी ओर को नहीं खुद अमिताभ बच्चन को ऑफर की गई थी। बताया जाता है कि अमिताभ को फिल्म की कहानी पसंद नहीं आई और उन्होंने इसमें काम करने से मना कर दिया। ऐसा क्यों होना चाहिए कि अब अगर फिल्म को ऑस्कर में नामिनेशन मिल गए हैं तो अमिताभ अपने विचार बदल लें। ऐसा क्यों कि अमिताभ को अपने विचार व्यक्त करने से ही मना किया जा रहा है।


अपनी बात खत्म करने से पहले एक बात और, स्लमडॉग मिलेनियर ऑस्कर में नामांकित हुई है और इस बात की हमें खुशी है लेकिन याद रखिए अवॉर्ड मिलना, अवॉर्ड के लिए नामांकित होना न तो इस बात की गारंटी है कि वो सर्वश्रेष्ठ है और न ही ऐसा है कि जो इस दौड़ में चूक गया वो काबिल नहीं। अवॉर्ड या नामांकन विशुद्ध रूप से कुछ व्यक्तियों का फैसला होता है। और याद रखिए, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी यही कहा है। उनका इरादा एक बहस छेड़ने का है और बहस तो होनी ही चाहिए।

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) said...

ऑस्कर की बहुत रोचक और ज्ञानवर्द्धक जानकारी दी है आपने.. २२ फरवरी को यह तीसरी बार किसी हिंदुस्तानी को मिले यही दुआ है..

रंजू भाटिया said...

अविनाश जी आपने अपने विचार दिए अच्छा लगा ..मैंने इस लेख में सिर्फ़ इसके नामकरण के बारे में लिखा है ...कि यह नाम कैसे रखा गया

vandana gupta said...

pata nhi kyun log oscar ke liye itne deewane huye jate hain jabki ye bhi isrf ek award hi hai aur ismein bhi jyadatar partiality hoti hai. aaj hum hindustani na hoakr kisi aur mulk ke hote to ab tak na jaane kitne oscar hamari jholi mein hote. aaj agar slumdog movie oscar ke liye nominate huyi hai to wo bhi isliye ki uske producer british hain india ke nhi ise kya kahenge aap.....?
isliye baat ye badi nhi hai ki oscar milega ya nhi baat ye hai ki kise milta hai aur kyun.
ranjana ji oscar naam kaise pada .......itni rochak jankari ke liye shukriya.

कुश said...

इस पोस्ट के लिए तो आपको ऑस्कर मिलना चाहिए.. हालाँकि अविनाश जी क़ी बात से सहमत हू... बहुत सही कहा है उन्होने

mehek said...

bahut achhi jankari sach mein.

डॉ .अनुराग said...

ओस्कर के बारे में मालूम चला .वैसे मेरा भी यही मानना है जो अविनाश का है ,हम अभी भी गोरी चमड़ी की मानसिकता से उभरे नही है ओर अपनी किसी कारगुजारी का सरटिविकेट वहां से लेकर ज्यादा खुश होते है ...

Abhishek Ojha said...

ऑस्कर के लिए नामांकित इस वर्ष हर एक फ़िल्म जुगाड़ के रखी है. उनमें से लगभग आधी देख भी ली है. पर ये तो पता ही नहीं था :-)

Udan Tashtari said...

ये तो नई जानकारी मिली ऑस्कर के विषय में. आभार.

ghughutibasuti said...

बढ़िया जानकारी। नाम ऐसे ही पड़ जाते हैं। टैडी बिअर का नाम एक अमेरिकी राष्ट्रपति के नाप पर पड़ा।
घुघूती बासूती

संगीता पुरी said...

अच्‍छी जानकारी देता आलेख......

दिगम्बर नासवा said...

अच्छा लेख, अच्छी जानकारी, ओस्कर का इतिहास पढ़ कर अच्छा लगा

शोभा said...

ग्यान वर्धन करने के लिये आभार।

Arvind Mishra said...

यह आपकी आस्कर पोस्ट रही -इनाम लायक है या नहीं ख़ुद तय कर लें पर नामकरण का मामला बड़ा रोचक निकला !

Arvind Mishra said...

यह आपकी आस्कर पोस्ट रही -इनाम लायक है या नहीं ख़ुद तय कर लें पर नामकरण का मामला बड़ा रोचक निकला !

दिनेशराय द्विवेदी said...

हाँ, ऐसा भी होता है। कभी कभी अनायास नामकरण हो जाता है।

अमिताभ श्रीवास्तव said...

जानकारी कोई भी हो ज्ञान देती है, आस्कर पर मिली जानकारी भी बेहतर है, पर क्या एसा नही लगता
ये सारा मामला बाज़ार का है?
खेर.. जो भी हो इतिहास तो उसने बनाया ही है.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

आस्कर अंकल कहाँ से कहाँ पहुच गए . आस्कर के बारे मे बहुत कहा गया है ऊपर, नोबल के बारे मे क्या विचार है

सुशील छौक्कर said...

एक अच्छी और दिलचस्प जानकारी बाँटने के लिए शुक्रिया।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

खोजपूर्ण और तथ्य भरा है, लेख बड़ा ही सुन्दर है।
ऐसा लगता मानों, प्याले में भर गया समन्दर है ।।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

खोजपूर्ण और तथ्य भरा है, लेख बड़ा ही सुन्दर है।
ऐसा लगता मानों, प्याले में भर गया समन्दर है ।।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अच्छी जानकारी दी आपने रँजू जी और अमरीकी मीडीया + प्रचार प्रसार तँत्र इतना शक्तिशाली है कि
यहाँ होनेवाली हर छोटी घटना
पूरे विश्व की "हेड लाइन" बनकर,
सुबह अखबार मेँ छप जाती है --

ये अब भारत के मीडीया व उच्च वर्ग सोच है
जो सब कन्ट्रोल करते हैँ कि,
ओस्कर तथा हर अमरीकी घटना के साये से
बाहर निकले
- अमिताभ जी ने जो भी कहा ,
दूसरे लोग जब सुनेँगेँ तब ना !

स्नेह सहित
- लावण्या

Unknown said...

बढिया आलेख...जानकारी के लिए शुक्रिय

hem pandey said...

आस्कर के नामकरण की दिलचस्प दास्तान बताने के लिए धन्यवाद.यह भी कम दिलचस्प नहीं कि किसी मूर्तिकार द्वारा अपनी कल्पना से बनाई गयी मूर्ति किसी व्यक्ति जैसी हो.

गौतम राजऋषि said...

जानकारी के लिये धन्यवाद
लेकिन एक जगह कहीं और पढ़ा था कि अब तक तीन लोग नवाजे जा चुके हैं इस सम्मान से...
पता नहीं,आप को मालूम हो तो बताइअयेगा

अनुपम अग्रवाल said...

अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद .
आगे भी ऐसी जानकारी देने का अनुरोध .

Tapashwani Kumar Anand said...

rahman ji, gulzar ji,pinki, aur rasul ji ko oscar uncle ka pratirup mil hi gaya..
badhai ho!!!