Tuesday, February 17, 2009

इश्क़ की महक


आज फिर से मेरी जान पर बन आई है
बाँसुरी किसने फिर यमुना के तीर पर बजाई है


खिलने लगा है फिर से मेरे चेहरे का नूर
फिर से कोई तस्वीर दिल के आईने में उतर आई है

पिघलने लगा है फिर से दिल का कोई सर्द कोना
कोई याद फिर मोहब्बत का लिबास पहन आई है

महकने लगा है फिर से कोई टेसू का फूल
यह ख़ुश्बू शायद किसी ख़्याल से आई है

लिखते लिखते लफ्ज़ बन गये हैं अफ़साना
उनकी आँखो ने कुछ राज़ की बात यूँ बताई है

मत देख अब यूँ निगाहे बचा के मुझको तू
इश्क़ की महक कब छिपाने से छिप पाई है

41 comments:

seema gupta said...

लिखते लिखते लफ्ज़ बन गये हैं अफ़साना
उनकी आँखो ने कुछ राज़ की बात यूँ बताई है
" बहुत सुंदर पढ़ कर कुछ खिला खिला सा एहसास छु गया..."

Regards

संगीता पुरी said...

हमेशा की तरह ही बहुत सुंदर लिखा है.....बधाई।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

दिल किसी काम में नही लगता,
याद जब से तुम्हारी आयी है।

घाव रिसने लगें हैं सीने के,
पीर चेहरे पे उभर आयी है।

साँस आती है, धडकनें गुम है,
क्यों मेरी जान पे बन आयी है।

गीत-संगीत बेसुरा सा है,
मन में बंशी की धुन समायी है।

मेरी सज-धज है,बेनतीजा सी,
प्रीत पोशाक नयी लायी है।

होठ हैं बन्द, लब्ज गायब हैं,
राज की बात है, छिपायी है।

चाहे कितनी बचा नजर मुझसे,
इश्क की गन्ध छुप न पायी है।

डॉ .अनुराग said...

पिघलने लगा है फिर से दिल का कोई सर्द कोना
कोई याद फिर मोहब्बत का लिबास पहन आई है

achha hai.....

Abhishek Ojha said...

'इश्क़ की महक कब छिपाने से छिप पाई है' जब से ब्लॉग्गिंग चालु हुई है तब से तो और मुश्किल हो गया है :-) [ये बस मजाक था]

बहुत मन भाई ये रचना.

vandana gupta said...

bahut hi sundar nazm.............kya bhaav hain..................seedhe dil se nikle

Alpana Verma said...

बहुत खूबसूरत लिखा है रंजना जी.
'पिघलने लगा है फिर से दिल का कोई सर्द कोना
कोई याद फिर मोहब्बत का लिबास पहन आई है'
लगता है ...' फिर छिड़ गए तार मोहब्बत के...फिजा में ऐसी बहार आई है..
[ये पंक्तियाँ आप की कविता की देन हैं]
-बधाई!

Mohinder56 said...

बात तो सचमुच खुश होने वाली है
आपको बधाई है बधाई है बधाई है

कुश said...

रोमांटिक!!

नीरज गोस्वामी said...

मत देख अब यूँ निगाहे बचा के मुझको तू
इश्क़ की महक कब छिपाने से छिप पाई है

वाह..रंजना जी मीठे एहसास की ये रचना सिर्फ़ और सिर्फ़ आप ही लिख सकती हैं....लाजवाब.

नीरज

Rahul kundra said...

सुंदर बहुत सुंदर। अपना ब्लॉग शुरू करने से पहले मुझे लगत था की आज-कल साहित्य के रखवाले कम हो गए है, सब एकता कपूर के मतवाले हो गए है पर अब मुझे यकीं है की अभी हमारा हिंदुस्तान अभी विचारो से गरीब नही हुआ।

Vinay said...

बहुत अच्छी कविता बन पड़ी है, बधाई

गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
ग़ज़लों के खिलते गुलाब

admin said...

खिलने लगा है फिर से मेरे चेहरे का नूर
फिर से कोई तस्वीर दिल के आईने में उतर आई है


महकने लगा है फिर से कोई टेसू का फूल
यह ख़ुश्बू शायद किसी ख़्याल से आई है


लिखते लिखते लफ्ज़ बन गये हैं अफ़साना
उनकी आँखो ने कुछ राज़ की बात यूँ बताई है

बहुत ही प्यारे शेर हैं, बधाई।

अविनाश said...

खिलने लगा है फिर से मेरे चेहरे का नूर
फिर से कोई तस्वीर दिल के आईने में उतर आई है

बहुत ही सुंदर नज़्म, मान को छू गया,

बधाई

http://avinash-theparaiah.blogspot.com/

Mishra Pankaj said...

खिलने लगा है फिर से मेरे चेहरे का नूर
फिर से कोई तस्वीर दिल के आईने में उतर आई है

Nice part ji

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ही उम्दा !!बधाई स्वीकारें।

Anonymous said...

aapke kalam ka ishq ka jadu dil ko meheka hi jata hai,bhala uski mehek kahi chupi hai,just lovely romantic poem,dil garden garden khil gaya:),pyar ka bukhar chad gaya hame to:)bahut khubsurat

Udan Tashtari said...

लिखते लिखते लफ्ज़ बन गये हैं अफ़साना
उनकी आँखो ने कुछ राज़ की बात यूँ बताई है

-वाह! क्या बात कही है-बहुत ही उम्दा!! बधाई हो जी इस रचना के लिए.

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) said...

बहुत खूब..शानदार तरीके से भावों को पिरोया गया है..

सुशील छौक्कर said...

किसी ने कहा कि यार मुगल गार्डन में बहुत अच्छे फूल खिले हुए है। अब यहाँ आकर देखा तो यहाँ तो मौहब्बत का फूल खिला हुआ हैं।
पिघलने लगा है फिर से दिल का कोई सर्द कोना
कोई याद फिर मोहब्बत का लिबास पहन आई है

बहुत ही उम्दा।

रश्मि प्रभा... said...

फिर एक ख्याल,फिर एक सपना........
प्यार की तान बड़ी मधुर है.......

अर्चना said...

ek khush nasib kawita. bahut bahut badhai.

विष्णु बैरागी said...

कलम की जबान होती है,
आपकी गजल पढ कर
यह बात महसूस होती है।

Arvind Mishra said...

महक महक उठा है तन मन मेरा
कैसी ये मादकता चहुँ और छाई है
देखिये आपकी पक्न्तियों ने मुझे भी यह लिखा दिया !

Anonymous said...

गुद गुदी उत्पन्न करने वाली रचना. आभार.

अनिल कान्त said...

मनभावन ....लुभा गया मन को

पारुल "पुखराज" said...

महकने लगा है फिर से कोई टेसू का फूल
यह ख़ुश्बू शायद किसी ख़्याल से आई है :))

roushan said...

टेसू के फूल की महक!
वाह हम यहीं अटक कर रह गए

Shikha .. ( शिखा... ) said...

बहुत प्यारा लिखा है दीदी.. वैसे हमेशा बहुत प्यारा ही लिखते हो आप... :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आपकी एक और बेहतरीन कृति पढवाने का शुक्रिया जी !
- लावण्या

Science Bloggers Association said...

खिलने लगा है फिर से मेरे चेहरे का नूर
फिर से कोई तस्वीर दिल के आईने में उतर आई है

महकने लगा है फिर से कोई टेसू का फूल
यह ख़ुश्बू शायद किसी ख़्याल से आई है

लिखते लिखते लफ्ज़ बन गये हैं अफ़साना
उनकी आँखो ने कुछ राज़ की बात यूँ बताई है

मत देख अब यूँ निगाहे बचा के मुझको तू
इश्क़ की महक कब छिपाने से छिप पाई है

बहुत ही प्‍यारे शेर कहे हैं आपने, बधाई।

vijay kumar sappatti said...

ranjana ji

bahut hi behtareen gazal ji .. pyaar ke rang poori tarah se bhikare hue hai ji .. wah

badhai kaboolkaren

Asha Joglekar said...

लिखते लिखते लफ्ज़ बन गये हैं अफ़साना
उनकी आँखो ने कुछ राज़ की बात यूँ बताई है
बहुत सुंदर ।

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

बहुत ही मादक है यह महक.

गौतम राजऋषि said...

ये डायरी के पुराने पन्ने तो बड़े दिलचस्प हैं मैम.....
अच्छी रचना खास कर ये दो मिस्रे बहुत भाये "मत देख अब यूँ निगाहे बचा के मुझको तू/इश्क़ की महक कब छिपाने से छिप पाई है"

दिगम्बर नासवा said...

सुंदर एहसास को समेटे हुवे, गहरी भावनाएं लिए लिखा है आपने
ग़ज़ल के अंदाज़ को भी आपने बाखूबी व्यक्त किया है.

पढ़ते पढ़ते मानस पर कई यादें उतर आतीं हैं

Anonymous said...

bahut khoob
mere blog par ki kavitaye par apaki rai chahta hu
usse mujhe bahut kuch sikhane ko milega
umeed karta hu aap is bare me vichar karegi

Poonam Agrawal said...

Ati sunder rachna....Badhai

Tan said...

नमस्ते. आपकी इतनी सारी blog देखके मैं घबरा गया था. फ़िर मैं एक एक कर के देखने लगा. और आपको जानने लगा. एकं मानिये आपको पड़ना बहोत ही खुस्नावर था. आपने स्वर्ण कलम भी जीती हुई है! बहोत अच्छा लगा आपके blogs पर आके.

मैं कभी कभी हिन्दी में भी लिखता हूँ. वैसे मेरी हिन्दी उतनी अच्छी नही है, लेकिन मेरा कौशिश रहता है के मैं ठीक ठाक लिखूं...

अगर आप मेरे blog पर कभी आ सके और मेरे कवितायेँ देख सके तो मुझे बहोत अच्छा लगेगा... आपकी हर टिपण्णी ध्यान से पडूंगा और कौशिश करूँगा मेरे आने वाले लेखों में इस्तेमाल करूँ...

मेरा blog का link: Thus Wrote Tan! ...

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत सुंदर है सलाम आपकी ग़ज़ल को और आपको भी

vijay kumar sappatti said...

bahut sundar
,ishq ke behatreen tasweer pesh kiya hai aapne .

badhai ho.

pls read my new poem @ www.poemsofvijay.blogspot.com and give ur valuable comments .