आज फिर से मेरी जान पर बन आई है
बाँसुरी किसने फिर यमुना के तीर पर बजाई है
बाँसुरी किसने फिर यमुना के तीर पर बजाई है
खिलने लगा है फिर से मेरे चेहरे
फिर से कोई तस्वीर दिल के आईने
पिघलने लगा है फिर से दिल का
कोई याद फिर मोहब्बत का लिबास पहन आई है
महकने लगा है फिर से कोई टेसू
यह ख़ुश्बू शायद किसी ख़्याल से
लिखते लिखते लफ्ज़ बन गये हैं
उनकी आँखो ने कुछ राज़ की बात
मत देख अब यूँ निगाहे बचा के मु
इश्क़ की महक कब छिपाने से छिप
41 comments:
लिखते लिखते लफ्ज़ बन गये हैं अफ़साना
उनकी आँखो ने कुछ राज़ की बात यूँ बताई है
" बहुत सुंदर पढ़ कर कुछ खिला खिला सा एहसास छु गया..."
Regards
हमेशा की तरह ही बहुत सुंदर लिखा है.....बधाई।
दिल किसी काम में नही लगता,
याद जब से तुम्हारी आयी है।
घाव रिसने लगें हैं सीने के,
पीर चेहरे पे उभर आयी है।
साँस आती है, धडकनें गुम है,
क्यों मेरी जान पे बन आयी है।
गीत-संगीत बेसुरा सा है,
मन में बंशी की धुन समायी है।
मेरी सज-धज है,बेनतीजा सी,
प्रीत पोशाक नयी लायी है।
होठ हैं बन्द, लब्ज गायब हैं,
राज की बात है, छिपायी है।
चाहे कितनी बचा नजर मुझसे,
इश्क की गन्ध छुप न पायी है।
पिघलने लगा है फिर से दिल का कोई सर्द कोना
कोई याद फिर मोहब्बत का लिबास पहन आई है
achha hai.....
'इश्क़ की महक कब छिपाने से छिप पाई है' जब से ब्लॉग्गिंग चालु हुई है तब से तो और मुश्किल हो गया है :-) [ये बस मजाक था]
बहुत मन भाई ये रचना.
bahut hi sundar nazm.............kya bhaav hain..................seedhe dil se nikle
बहुत खूबसूरत लिखा है रंजना जी.
'पिघलने लगा है फिर से दिल का कोई सर्द कोना
कोई याद फिर मोहब्बत का लिबास पहन आई है'
लगता है ...' फिर छिड़ गए तार मोहब्बत के...फिजा में ऐसी बहार आई है..
[ये पंक्तियाँ आप की कविता की देन हैं]
-बधाई!
बात तो सचमुच खुश होने वाली है
आपको बधाई है बधाई है बधाई है
रोमांटिक!!
मत देख अब यूँ निगाहे बचा के मुझको तू
इश्क़ की महक कब छिपाने से छिप पाई है
वाह..रंजना जी मीठे एहसास की ये रचना सिर्फ़ और सिर्फ़ आप ही लिख सकती हैं....लाजवाब.
नीरज
सुंदर बहुत सुंदर। अपना ब्लॉग शुरू करने से पहले मुझे लगत था की आज-कल साहित्य के रखवाले कम हो गए है, सब एकता कपूर के मतवाले हो गए है पर अब मुझे यकीं है की अभी हमारा हिंदुस्तान अभी विचारो से गरीब नही हुआ।
बहुत अच्छी कविता बन पड़ी है, बधाई
गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
ग़ज़लों के खिलते गुलाब
खिलने लगा है फिर से मेरे चेहरे का नूर
फिर से कोई तस्वीर दिल के आईने में उतर आई है
महकने लगा है फिर से कोई टेसू का फूल
यह ख़ुश्बू शायद किसी ख़्याल से आई है
लिखते लिखते लफ्ज़ बन गये हैं अफ़साना
उनकी आँखो ने कुछ राज़ की बात यूँ बताई है
बहुत ही प्यारे शेर हैं, बधाई।
खिलने लगा है फिर से मेरे चेहरे का नूर
फिर से कोई तस्वीर दिल के आईने में उतर आई है
बहुत ही सुंदर नज़्म, मान को छू गया,
बधाई
http://avinash-theparaiah.blogspot.com/
खिलने लगा है फिर से मेरे चेहरे का नूर
फिर से कोई तस्वीर दिल के आईने में उतर आई है
Nice part ji
बहुत ही उम्दा !!बधाई स्वीकारें।
aapke kalam ka ishq ka jadu dil ko meheka hi jata hai,bhala uski mehek kahi chupi hai,just lovely romantic poem,dil garden garden khil gaya:),pyar ka bukhar chad gaya hame to:)bahut khubsurat
लिखते लिखते लफ्ज़ बन गये हैं अफ़साना
उनकी आँखो ने कुछ राज़ की बात यूँ बताई है
-वाह! क्या बात कही है-बहुत ही उम्दा!! बधाई हो जी इस रचना के लिए.
बहुत खूब..शानदार तरीके से भावों को पिरोया गया है..
किसी ने कहा कि यार मुगल गार्डन में बहुत अच्छे फूल खिले हुए है। अब यहाँ आकर देखा तो यहाँ तो मौहब्बत का फूल खिला हुआ हैं।
पिघलने लगा है फिर से दिल का कोई सर्द कोना
कोई याद फिर मोहब्बत का लिबास पहन आई है
बहुत ही उम्दा।
फिर एक ख्याल,फिर एक सपना........
प्यार की तान बड़ी मधुर है.......
ek khush nasib kawita. bahut bahut badhai.
कलम की जबान होती है,
आपकी गजल पढ कर
यह बात महसूस होती है।
महक महक उठा है तन मन मेरा
कैसी ये मादकता चहुँ और छाई है
देखिये आपकी पक्न्तियों ने मुझे भी यह लिखा दिया !
गुद गुदी उत्पन्न करने वाली रचना. आभार.
मनभावन ....लुभा गया मन को
महकने लगा है फिर से कोई टेसू का फूल
यह ख़ुश्बू शायद किसी ख़्याल से आई है :))
टेसू के फूल की महक!
वाह हम यहीं अटक कर रह गए
बहुत प्यारा लिखा है दीदी.. वैसे हमेशा बहुत प्यारा ही लिखते हो आप... :)
आपकी एक और बेहतरीन कृति पढवाने का शुक्रिया जी !
- लावण्या
खिलने लगा है फिर से मेरे चेहरे का नूर
फिर से कोई तस्वीर दिल के आईने में उतर आई है
महकने लगा है फिर से कोई टेसू का फूल
यह ख़ुश्बू शायद किसी ख़्याल से आई है
लिखते लिखते लफ्ज़ बन गये हैं अफ़साना
उनकी आँखो ने कुछ राज़ की बात यूँ बताई है
मत देख अब यूँ निगाहे बचा के मुझको तू
इश्क़ की महक कब छिपाने से छिप पाई है
बहुत ही प्यारे शेर कहे हैं आपने, बधाई।
ranjana ji
bahut hi behtareen gazal ji .. pyaar ke rang poori tarah se bhikare hue hai ji .. wah
badhai kaboolkaren
लिखते लिखते लफ्ज़ बन गये हैं अफ़साना
उनकी आँखो ने कुछ राज़ की बात यूँ बताई है
बहुत सुंदर ।
बहुत ही मादक है यह महक.
ये डायरी के पुराने पन्ने तो बड़े दिलचस्प हैं मैम.....
अच्छी रचना खास कर ये दो मिस्रे बहुत भाये "मत देख अब यूँ निगाहे बचा के मुझको तू/इश्क़ की महक कब छिपाने से छिप पाई है"
सुंदर एहसास को समेटे हुवे, गहरी भावनाएं लिए लिखा है आपने
ग़ज़ल के अंदाज़ को भी आपने बाखूबी व्यक्त किया है.
पढ़ते पढ़ते मानस पर कई यादें उतर आतीं हैं
bahut khoob
mere blog par ki kavitaye par apaki rai chahta hu
usse mujhe bahut kuch sikhane ko milega
umeed karta hu aap is bare me vichar karegi
Ati sunder rachna....Badhai
नमस्ते. आपकी इतनी सारी blog देखके मैं घबरा गया था. फ़िर मैं एक एक कर के देखने लगा. और आपको जानने लगा. एकं मानिये आपको पड़ना बहोत ही खुस्नावर था. आपने स्वर्ण कलम भी जीती हुई है! बहोत अच्छा लगा आपके blogs पर आके.
मैं कभी कभी हिन्दी में भी लिखता हूँ. वैसे मेरी हिन्दी उतनी अच्छी नही है, लेकिन मेरा कौशिश रहता है के मैं ठीक ठाक लिखूं...
अगर आप मेरे blog पर कभी आ सके और मेरे कवितायेँ देख सके तो मुझे बहोत अच्छा लगेगा... आपकी हर टिपण्णी ध्यान से पडूंगा और कौशिश करूँगा मेरे आने वाले लेखों में इस्तेमाल करूँ...
मेरा blog का link: Thus Wrote Tan! ...
बहुत सुंदर है सलाम आपकी ग़ज़ल को और आपको भी
bahut sundar
,ishq ke behatreen tasweer pesh kiya hai aapne .
badhai ho.
pls read my new poem @ www.poemsofvijay.blogspot.com and give ur valuable comments .
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