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Friday, January 02, 2009
नया साल उन बच्चो के नाम
नया साल.....
उन बच्चो के नाम
जिनके पास
न ही है रोटी
न ही है ,
कोई खेल खिलोने
न ही कोई बुलाए
उन्हें प्यार से
न कोई सुनाये कहानी
पर बसे हैं ,
उनकी आंखों में कई सपने
माना कि अभी है
अभावों का बिछोना
और सिर्फ़ बातो का ओढ़ना
आसमन की छ्त है
और घर है धरती का एक कोना
पर ....
उनके नाम से बनेगी
अभी कागज पर
कुछ योजनायें
और साल के अंत में
वही कहेंगी
जल्द ही पूरी होंगी यह आशाएं ...
इसलिए ,उम्मीद की एक किरण पर .
नया साल उन बच्चो के नाम ...........
रंजू भाटिया [रंजना ]
२ जनवरी २००९
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22 comments:
"उम्मीद की एक किरण" इस साल जरूर आए.. आमीन!!!!!!!!!!
बहुत बहुत सही कहा ......ऐसे ही साल दर साल बीतते जायेंगे.......केवल कैलेंडर के पन्ने भर बदलेंगे ,नसीब और हालत नहीं ..
बहुत ही मार्मिक। उम्मीद है कि
नया साल आऐगा
खुशियों के मोती लाऐगा
हम सबकी झोली में डाल जाऐगा।
बहुत बढ़िया
bahut bhav puran kavita hai aapki aashaayen pooran ho naya sal mubaarak ho
उनकी आंखों में कई सपने
माना कि अभी है
अभावों का बिछोना
और सिर्फ़ बातो का ओढ़ना
आसमन की छ्त है
और घर है धरती का एक कोना
एक और अच्छी कविता! बहुत सही कहा है आपने. सच यह है की जब तक हम न बदलें इन बच्चों का भविष्य बदलना असंभव न सही काफी कठिन तो है ही.
unki kismat badalne ke liye ham jaise common man ko hi sarthak kadam uthane honge..
भूख फिर जागी है उन अंधेरों में
एक रोता अलाप लिए वो तुमसे
कहना चाहती है मुझे उस आँचल
का एहसास करा दो जो कभी मुझपर
नही गिरा मुझे ये बतादो की मैं कौन हूं?
आज मैं ख़ुद को ढूढ़ रहा हूं कभी किसी माँ
के आँचल में कभी इन चलती राहों में तो कभी मुझे
मिली फटकार से तो कभी मुझे मिली गालियों से....
मैं ख़ुद को एक अनजानी सी पहचान देता हूं ....
बचपन से अब तक ख़ुद को ही तो देखता आया हूं
कभी किसी ने मुझे नही देखा मैं कोई ग्रहण तो नही
जो मुझे देखने से भी तुम अंधे हो जाओगे ....
मैं कोई आग तो नही जो मुझे छुने से तुम जल जाओगे
मुझे मालूम है तुममे से ही कोई एक है मेरा बाप,मेरी मां
लेकिन अब तो वो भी नही पहचानेगे
क्यूंकि इस अश्लीलता के बाज़ार में मुझे लोग अनाथ बुलाते हैं....
aap kuch khna chahaingi..?
http://akshay-mann-muktak.blogspot.com/
बहुत ही प्यारा लिखा है आपने.....
ऐसा ही स्वागत होना चाहिए इनका बहुत अच्छा लगा.....
अक्षय-मन
नये वर्ष का उत्साह काश इस उम्मीद की किरण के सच होकर सज जाने से और बढ़ जाता !
इस प्रासंगिक कविता के लिये धन्यवाद.
यह एक दर्दनाक पहलू है जो हमारे नववर्ष के उत्सवों का मुंह चिढाता है !
रंजना जी
सर्वप्रथम
नूतनवर्षाभिनंदन
रंजू जी , वाकई हमारे देश में यही चल रहा है
नेताओं के आगे प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों की
नहीं चलती , या फ़िर दबाव में वे निष्पक्ष कुछ भी नहीं कर पाते,
मैंने भी अपनी रचना में कुछ ऐसा ही सोचा है
(सामान विषय होने के कारण क्षमा सहित 3 अंतरे दे रहा हूँ
):
पिछले वर्षों के सभी, मुद्दे और विकल्प
पूरा करने के लिए , लेंगे फ़िर संकल्प
स्वयं और परिजनों का, करने को उत्कर्ष
----------------------------------फ़िर आया नव वर्ष
लिप्त रहे निज स्वार्थ में, किया न कोई विकास
परहित की बातें सभी, लगती थीं बकवास
विवश क्या पदमोह ने, कारने जन संघर्ष
------------------------------------फ़िर आया नव वर्ष
जन नायक कुछ आज के, बनकर भ्रष्ट - दलाल
सौदे का मुर्गा समझ, करते हमें हलाल
बेशर्मी को ओढ़कर , प्रकट करें ये हर्ष
-------------------------------------फ़िर आया नव वर्ष
आपका
-विजय
साथॆक रचना। नए साल पर लिखी गई कविताओं में अलग नजर आने वाली। धन्यवाद।
इस कामना के साथ कि इस बार घोषणाएं अमल भी आएं। योजनाएं कागज से उतरकर जमीन पर उग आएं।
रंजना जी,
उम्मीद है कि नव वर्ष अच्छी खबरें ही लायेगा.
नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं..
रंजना जी,
उम्मीद है कि नव वर्ष अच्छी खबरें ही लायेगा.
नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं..
उनके नाम से बनेगी
अभी कागज पर
कुछ योजनायें
और साल के अंत में
वही कहेंगी
जल्द ही पूरी होंगी यह आशाएं ...
इसलिए ,उम्मीद की एक किरण पर .
नया साल उन बच्चो के नाम ...........
नया साल..mubaarak ho is sundar post ke saath
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाऍं।
नया साल उनकी आँखों की रोटियों को
हकीकत की मुस्कान से भर दे ........
अब नये साल पर इससे अच्छा संकल्प और क्या होगा भला....
नव-वर्षाभिनंदन मैम...नये साल की समस्त शुभकामनायें आपको
KUCH hai jo ham nahi badal sakte...par shayad kuch aisa hai jo ham badal sakte hai.vo hai apne aap ko..apne aas pas vaalo ko.aor apne bachho ko....unhe aise sanskaar dekar ke ve jyaaada manviy bane.....aor kam se kam ek bachhe ko.kisi na kisi roop me ..madad kare..vaise bhi kisi ne kaha hai..jab tak is dharti par ek bhi bachha bhookha soyega ,manviya sabhyta purn nahi kahi jaayegi.
रंजना जी सार्थक एवं प्रासंगिक रचना के लिये साधुवाद स्वीकारें
बहुत यथार्थ वादी रचना है आपकी...एक तल्ख़ सच्चाई जिसे हम नकार नहीं सकते...आप की शशक्त कलम से ये बहुत शिद्दत से बयां हुई है...
नीरज
अफ़सोस है कि इतनी सुंदर रचना पहले नहीं पढ़ पाया और अपनी पिछली पोस्ट में इसका उल्लेख करने से वंचित रहा.
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