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Thursday, November 13, 2008
लगता है पतझड़ बीत गया...
रुत निखरी ,हवा बहकी हुई
लगता है पतझड़ बीत गया
आओ न......
बुने फ़िर एक ख्वाब नया
और चल कर उनके होंठो पर
खिलते हुए टेसू देखे .....
यादों के झरोखों से
छंट रहा है
कुहासा कोई ...
माथे से हटा दे
सलवटों की लकीरें
पलकों पर गिरते हुए
गेसुओं के बादल देखे
बहके नहीं है
कब से इस
दिल के पैमाने
खुशबु के घेरे में ...
लिपटी हो रुत बसंती
अधरों पर मचलते हुए
लफ्जों के जाम देखे
गीली सीली
लकड़ी सा ...
सुलगने न दे अब मन
क्यों देखे आँख में आंसू
जुगनू सी चमक ले कर
अब नई ज़िन्दगी हम देखे
मचल रहे हैं आँखों में
अनकहे से अरमान
मन की झील में
क्यों उठ रही है हिलोरें
इसके कांपते स्वर में
नए खिलते गुलाब हम देखे
मुबारक कहने आई है
आज यह भीगी हुई शब भी
उतर जाए
रूह की गहराइयों में
जिस्म के पार से
आज मोहब्बत का नगर देखे....
[रंजू भाटिया ]
१२-११-०८
[चित्र गूगल से ]
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21 comments:
wah bahot khub likha hai aapne ,bahot hi umda lekhan ka parichay mila... aapko bahot bahot badhai..
पूरी रचना का निचोड़ आख़िर की पंक्तियों में है.......
जिस्म के पार से आज मोहब्बत का नगर देखें ! वाह !
Ranju Ji bahut hi sunder kavita ke liye dhanywad achchi bahut achchi lagi
मुबारक कहने आई है
आज यह भीगी हुई शब भी
उतर जाए
रूह की गहराइयों में
जिस्म के पार से
आज मोहब्बत का नगर देखे....
hmmm bahut sundarye aakhari lines lajawab
डाक्टर साहब से सहमत हूँ...... आखिरी पंक्तियाँ पूर्ण जीवन्तता समेटे हुए है.
बहुत बहुत सुंदर मनमोहक भावपूर्ण इस कविता को पढ़वाने के लिए आभार.
क्या बात है... अच्छी रचना के लिये बधाई...
बहुत सुंदर रचना। बधाई आपको इसके लिए।
बहुत ही सुंदर है आप की कविता, धन्यवाद
वाह! बहुत सुन्दर...कोमल अभिव्यक्ति!! बधाई.
ruuh ki gharayiyon mein jism ke paar...wah wah bahut khuub likha hai ranjana ji!
क्या बात है जी।
Bahut Sunder likha hai Ranju jee aapne ..padhker dil ko sukun mila
kuchh samajh me NAHI aataa hai - koi kaise itana Sundar KAVITA likh sakata hai
मुबारक कहने आई है
आज यह भीगी हुई शब भी
उतर जाए
रूह की गहराइयों में
जिस्म के पार से
आज मोहब्बत का नगर देखे....
क्या बात है... अच्छी रचना के लिये बधाई...
एक बार फ़िर एक खूबसूरत कविता के लिए धन्यवाद...
मुबारक कहने आई है
आज यह भीगी हुई शब भी
उतर जाए
रूह की गहराइयों में
जिस्म के पार से
आज मोहब्बत का नगर देखे....
काफी प्रभावित किया इन पंक्तियों ने. बधाई. 'मेरे अंचल की कहावतें' में टिप्पणी का शुक्रिया.
bahut. achchha.
सुन्दर कविता।
wah!!! kaya baat hai ji ..lajabaab
komal bhav....sunder abhivyakti.......behad hi sunder.........badhai...
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