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Monday, October 13, 2008
रोज़ उठ कर चाँद टांगा है ,फलक पे रात को
यह हफ्ता चाँद का हफ्ता है ..कितना रूमानी लगता है न आज कल आसमान पर मुस्कराता हुआ सा चाँद ....कभी मचलता हुआ ..कभी लुका छिपी खेलता है यह चाँद ...और जब जिस दिन इसको देखने की बेताबी होगी उस दिन यह खूब नखरे से दिखेगा ....चाँद के सब रूप मन भाते हैं ..है न ..:) तभी तो यह कविता में आसानी से अपनी जगह बना लेता है ... और गुलजार जी ने तो कयामत ही कर दी है इस चाँद लफ्ज़ को ले कर ...
रोज़ उठ कर चाँद टांगा है ,फलक पे रात को
रोज़ दिन की रोशनी में रात तक आया किए
हाथ भर के फासले को उम्र भर चलना पड़ा !!
कुछ रूप ढले हैं मेरे इन लफ्जों में भी ...
भीगा चाँद
टप टप टपकते मेह सा
सिला सा -अधजगा सा
तन्हाई में लिपटा
धीरे धीरे दस्तक देता रहा
नज़रो से बरसता रहा
अमावस का चाँद
तेरे मेरे मिलन के
बीच ढला
एक न ख़त्म
होने वाला अँधेरा
पूर्णिमा का चाँद
यूँ निकला
तमस के
अंधेरों को चीर कर
जैसे कोई
ख़त तेरे आने की
ख़बर दे जाए ....
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30 comments:
इतना पढ़कर यही कहेंगे चाँद तू एक तेरे रूप अनेक
चाँद का अभिसार उत्प्रेरण तो काव्य का स्थायी भाव ही है -अच्छी लगीं चाँद पर ये कवितायें ! कुछ और मन में है पर फिर कभी !!!
वाह चांद भी खुश हो गया होगा आपकी ये नज्म सुनकर
यूं निकल कर आगया बादल से हट कर सामने
जैसे कोई खत तेरे आने की खबर दे जाये ।
बहोत खूब .
क्या बात है ... बहुत सुंदर. सारे रूप अनूप हैं लेकिन "पूर्णिमा का चाँद" तो बेमिसाल है ...
दीदी
सभी लघु कविताऍं बहुत अच्छी लगी।
Ranjanaji, aapne chand ko char chand laga diye.
वाह! वाह!!!!!!!!!!!
क्या बात कही , क्या रूप दिखाया
नित के परिवर्तन से जीवन महकाया
चाँद पर सुंदर रचनायें प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद. हमारी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
चन्द्र मोहन गुप्त
चाँद सा ही स्निग्ध और प्रभा लिए हुए है आपकी प्यारी अभिव्यक्ति......
अच्छी अच्छी क्षणिकाये हैं जी.
अच्छा है लगे रहिये.
alok singh "sahil"
चाँदनी से सराबोर पोस्ट अच्छी लगी !
रंजना जी
आप के सारे चाँद लाजवाब हैं...
नीरज
बहुत सुन्दर शब्द चित्र खीचे है अपनी भावनाओ को पिरो कर।बधाई।
chand se kya gila
ye chanadani se poocho
do nt take otherwise
great composition
and explored nicely
regards
अच्छा लगा चांद के बारे में इतना कुछ पढ कर... मगर अपना अंदाज और बयां कुछ अलग..
तुम नहाये जिस मीठी ठंडी चांदनी से रात भर..
उसके लिये वो चांद रात भर धूप में जलता रहा
(चांदनी और कुछ नहीं सूरज की किरणो का परावर्तन है जो चांद पर पडती हैं)
रंजू जी
चाँद के तीन रूपों के चित्रण के रूप मैं बहुत सुदर अभिव्यक्ति है . बधाई .
are,aapne dher sare khubsurat chaand hamare aage rakh diye,
bahut sundar
पूर्णिमा का चाँद
यूँ निकला
तमस के
अंधेरों को चीर कर
जैसे कोई
ख़त तेरे आने की
ख़बर दे जाए ....wahranju ji kya gazab ki bat kahi bahut sundar
bahut khub ranjana ji
वाह........चाँद के हर रूप को आपने अपने शब्दों में ढाल कर और भी सुंदर बना दिया है..बहुत ही सुंदर.
चाँद के इतने रुप देखकर मन को अच्छा लगा।
पूर्णिमा का चाँद
यूँ निकला
तमस के
अंधेरों को चीर कर
जैसे कोई
ख़त तेरे आने की
ये चाँद कुछ ज्यादा ही सुन्दर लगा।
एक चाँद और रूप अनेक ..या इन्सान की कल्पनाओं की उडान की कोई सीमा नही...कोई भी बात हो दोनों में..बहरहाल शरत पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाये रंजना जी
हर रूप में चाँद तो बस चाँद ही है....आपके सारे चाँद भले लगे!
चांद के तो बल्ले-बल्ले हो गये। वाह,वाह कर रहा होगा।
सुन्दर भावपूर्ण कविताएं। प्रकृति के साथ मनोभावों का तादात्म्य।
you have not covered up all the aspects / roops of chand.
Id ka chand..
chaudahvi ka chand...
etc etc..
and what is this amavasya ka chand?
छोटी छोटी क्षणिकाओं में आपने बडी बडी बातें कह दी हैं, बधाई।
गुलज़ार मेरे इतने पसंददीदा शायर है कि जब कभी लिखने का मूड बनाना हो तो उन्हें सुन लेता हूँ...खास तौर से उनकी एक नज़्म जो हमेशा मेरे मोबाइल में रहती है.....फ़िल्म रैन कोट से ...."पिया तोरा कैसा अभिमान "
....उनकी पहली रचना जिसका जिक्र आपने किया है .त्रिवेणी है.
आपका पूर्णिमा का चाँद खासा पसंद आया
पूर्णिमा का चाँद
यूँ निकला
तमस के
अंधेरों को चीर कर
जैसे कोई
ख़त तेरे आने की
वाह !
,d
एक शेर आपकी नज्र करता हूं
कि
कितनी अच्छी लगतीं हैं भई चांद के मूंह से चांद की बात
थिरक रहे हैं जुगनु नीचे ऊपर तारों भरी परात
एक चाँद के अनेक रंग एक साथ देखने को मिल गए, बहुत सुंदर!
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