छुआ है अंतर्मन की गहराई से
कभी तुम्हारी गरम हथेली को
और महसूस किया है तब
बर्फ सा जमा मन
धीरे धीरे पिघल कर
एक कविता बनने लगता है
देखा है कई बार तुम्हारी आंखों में
सतरंगी रंगो का मेला
मेरी नज़रों से मिलते ही वह
सपने में ढलने लगता है
तब ......
यह भी महसूस किया है दिल ने मेरे
कि उलझी अलकों सी ,उलझी बातें
कुछ और उलझ सी जाती है
प्रेम के गुंथे धागे में
कुछ और गांठे सी पड़ जाती है
खाली सा बेजान हुआ दिल
और रिक्त हो जाता है
दिल के किसी कोने में
ख़ुद से ही संवाद करता
मन उद्धव ज्ञान पा जाता है !!
कभी तुम्हारी गरम हथेली को
और महसूस किया है तब
बर्फ सा जमा मन
धीरे धीरे पिघल कर
एक कविता बनने लगता है
देखा है कई बार तुम्हारी आंखों में
सतरंगी रंगो का मेला
मेरी नज़रों से मिलते ही वह
सपने में ढलने लगता है
तब ......
यह भी महसूस किया है दिल ने मेरे
कि उलझी अलकों सी ,उलझी बातें
कुछ और उलझ सी जाती है
प्रेम के गुंथे धागे में
कुछ और गांठे सी पड़ जाती है
खाली सा बेजान हुआ दिल
और रिक्त हो जाता है
दिल के किसी कोने में
ख़ुद से ही संवाद करता
मन उद्धव ज्ञान पा जाता है !!
24 comments:
सुन्दर भाव भरी रचना..
शायद यही सुलझाव और उलझन चिरपरिचित ढाई आखर है...
सुन्दर भाव भरी रचना..
शायद यही सुलझाव और उलझन चिरपरिचित ढाई आखर है...
wah,kya likha hai,udho ka prem gyan unke sansarik gyan par bhaari pada tha......
कई बार तुम्हारी आंखों मैं .... सपने मैं ढलने लगता है .
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति . बधाई .
यह भी महसूस किया है दिल ने मेरे
कि उलझी अलकों सी ,उलझी बातें
कुछ और उलझ सी जाती है
प्रेम के गुंथे धागे में
कुछ और गांठे सी पड़ जाती है
खाली सा बेजान हुआ दिल
और रिक्त हो जाता है
दिल के किसी कोने में
ख़ुद से ही संवाद करता
मन उद्धव ज्ञान पा जाता है !!
बहुत ही सुंदर
bahut sunder rachana
regards
Sundar zyan. Badhayee
मन को छू लेने वाली कविता है...
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
सुंदर भावपूर्ण रचना ,हमेशा की तरह.
सत्य कहा प्रेम के धागे को जितना सुलझाओ वह और उलझ जाता है.
प्रेम के गुंथे धागे में
कुछ और गांठे सी पड़ जाती है
खाली सा बेजान हुआ दिल
और रिक्त हो जाता है
दिल के किसी कोने में
ख़ुद से ही संवाद करता
मन उद्धव ज्ञान पा जाता है !!
" what a word selection, i am speechless.."
Regards
बहुत ही सुंदर भाव पूर्ण रचना
छुआ है अंतर्मन की गहराई से
कभी तुम्हारी गरम हथेली को
और महसूस किया है तब
बर्फ सा जमा मन
धीरे धीरे पिघल कर
एक कविता बनने लगता है
देखा है कई बार तुम्हारी आंखों में
सतरंगी रंगो का मेला
मेरी नज़रों से मिलते ही वह
सपने में ढलने लगता है
रंजू जी
क्या बात है। बहुत सुन्दर लिखा है। दिल के भाव शब्दों में उतर आए हैं।
बर्फ सा जमा मन
धीरे धीरे पिघल कर
एक कविता बनने लगता है
देखा है कई बार तुम्हारी आंखों में
सतरंगी रंगो का मेला
मेरी नज़रों से मिलते ही वह
सपने में ढलने लगता है
कभी कभी कुछ लफ्ज़ सफ्हो से बाहर निकल कर पूछते है मुझसे .......तुमने तरतीब से नही रखा हमें
सुंदर !
वैराग का भाव आना उद्धव ज्ञान है, राग के मध्य जो वैराग उपज आया,इस भाव को आपने काव्य में जो शब्द दिया है, वह काबिले तारीफ है।
mujhe shabd nahi mil rahe hai kavita ki sundrta ko vykt karne ko .
उद्धव सदेश के लिए शुक्रिया -पर यह मन अभी तक पूरी तरह विमुक्त नही हुआ है !
देखा है कई बार तुम्हारी आंखों में
सतरंगी रंगो का मेला
मेरी नज़रों से मिलते ही वह
सपने में ढलने लगता है
अच्छा लगा यह सतरंगी रंगो का सपना देखकर।
कितनी सुँदर
मनको छूनेवाली बात कह दी
आपने रँजू जी
-स्नेह,
- लावण्या
बहुत खूब कहा!! अच्छा लगा!!
...उलझी अलकों सी ,उलझी बातें
कुछ और उलझ सी जाती है...
बहुत सुंदर!
uljhan sa pyaar...uljhi alkein, uljhi baatein...bahut khoobsoorat.
Uddhav gyan ! yeh aapne achcha misra lagaya.. bahut khoob....
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