Monday, October 20, 2008

उद्धव ज्ञान


छुआ है अंतर्मन की गहराई से
कभी तुम्हारी गरम हथेली को
और महसूस किया है तब
बर्फ सा जमा मन
धीरे धीरे पिघल कर
एक कविता बनने लगता है
देखा है कई बार तुम्हारी आंखों में
सतरंगी रंगो का मेला
मेरी नज़रों से मिलते ही वह
सपने में ढलने लगता है
तब ......
यह भी महसूस किया है दिल ने मेरे
कि उलझी अलकों सी ,उलझी बातें
कुछ और उलझ सी जाती है
प्रेम के गुंथे धागे में
कुछ और गांठे सी पड़ जाती है
खाली सा बेजान हुआ दिल
और रिक्त हो जाता है
दिल के किसी कोने में
ख़ुद से ही संवाद करता
मन उद्धव ज्ञान पा जाता है !!

24 comments:

Mohinder56 said...

सुन्दर भाव भरी रचना..

शायद यही सुलझाव और उलझन चिरपरिचित ढाई आखर है...

Mohinder56 said...

सुन्दर भाव भरी रचना..

शायद यही सुलझाव और उलझन चिरपरिचित ढाई आखर है...

रश्मि प्रभा... said...

wah,kya likha hai,udho ka prem gyan unke sansarik gyan par bhaari pada tha......

दीपक कुमार भानरे said...

कई बार तुम्हारी आंखों मैं .... सपने मैं ढलने लगता है .
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति . बधाई .

manvinder bhimber said...

यह भी महसूस किया है दिल ने मेरे
कि उलझी अलकों सी ,उलझी बातें
कुछ और उलझ सी जाती है
प्रेम के गुंथे धागे में
कुछ और गांठे सी पड़ जाती है
खाली सा बेजान हुआ दिल
और रिक्त हो जाता है
दिल के किसी कोने में
ख़ुद से ही संवाद करता
मन उद्धव ज्ञान पा जाता है !!
बहुत ही सुंदर

makrand said...

bahut sunder rachana
regards

admin said...

Sundar zyan. Badhayee

फ़िरदौस ख़ान said...

मन को छू लेने वाली कविता है...

Unknown said...

बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती

रंजना said...

सुंदर भावपूर्ण रचना ,हमेशा की तरह.
सत्य कहा प्रेम के धागे को जितना सुलझाओ वह और उलझ जाता है.

seema gupta said...

प्रेम के गुंथे धागे में
कुछ और गांठे सी पड़ जाती है
खाली सा बेजान हुआ दिल
और रिक्त हो जाता है
दिल के किसी कोने में
ख़ुद से ही संवाद करता
मन उद्धव ज्ञान पा जाता है !!
" what a word selection, i am speechless.."

Regards

RADHIKA said...

बहुत ही सुंदर भाव पूर्ण रचना

शोभा said...

छुआ है अंतर्मन की गहराई से
कभी तुम्हारी गरम हथेली को
और महसूस किया है तब
बर्फ सा जमा मन
धीरे धीरे पिघल कर
एक कविता बनने लगता है
देखा है कई बार तुम्हारी आंखों में
सतरंगी रंगो का मेला
मेरी नज़रों से मिलते ही वह
सपने में ढलने लगता है
रंजू जी
क्या बात है। बहुत सुन्दर लिखा है। दिल के भाव शब्दों में उतर आए हैं।

डॉ .अनुराग said...

बर्फ सा जमा मन
धीरे धीरे पिघल कर
एक कविता बनने लगता है
देखा है कई बार तुम्हारी आंखों में
सतरंगी रंगो का मेला
मेरी नज़रों से मिलते ही वह
सपने में ढलने लगता है








कभी कभी कुछ लफ्ज़ सफ्हो से बाहर निकल कर पूछते है मुझसे .......तुमने तरतीब से नही रखा हमें

Abhishek Ojha said...

सुंदर !

जितेन्द़ भगत said...

वैराग का भाव आना उद्धव ज्ञान है, राग के मध्‍य जो वैराग उपज आया,इ‍स भाव को आपने काव्‍य में जो शब्‍द दि‍या है, वह काबि‍ले तारीफ है।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

mujhe shabd nahi mil rahe hai kavita ki sundrta ko vykt karne ko .

Arvind Mishra said...

उद्धव सदेश के लिए शुक्रिया -पर यह मन अभी तक पूरी तरह विमुक्त नही हुआ है !

सुशील छौक्कर said...

देखा है कई बार तुम्हारी आंखों में
सतरंगी रंगो का मेला
मेरी नज़रों से मिलते ही वह
सपने में ढलने लगता है

अच्छा लगा यह सतरंगी रंगो का सपना देखकर।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

कितनी सुँदर
मनको छूनेवाली बात कह दी
आपने रँजू जी
-स्नेह,
- लावण्या

Udan Tashtari said...

बहुत खूब कहा!! अच्छा लगा!!

Smart Indian said...

...उलझी अलकों सी ,उलझी बातें
कुछ और उलझ सी जाती है...

बहुत सुंदर!

Puja Upadhyay said...

uljhan sa pyaar...uljhi alkein, uljhi baatein...bahut khoobsoorat.

Kavi Kulwant said...

Uddhav gyan ! yeh aapne achcha misra lagaya.. bahut khoob....