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Thursday, October 02, 2008
महाप्रयोग से जुड़ी झांसी की रानी अर्चना शर्मा
पिछले दिनों महाप्रयोग की बहुत चर्चा रही ...इस महा प्रयोग में भारतीय योगदान भी है और कई वैज्ञानिक इस से जुड़े हुए हैं ...अपने बीते हुए कल को जानना ,और आने वाले कल को सुरक्षित करना इस महाप्रयोग का अहम् हिस्सा है ...जब यह प्रयोग अपने नतीजे देना शुरू करेगा तो जो वैज्ञानिक इनसे जुड़े हैं ,जिनकी दिन रात की मेहनत रंग लाएगी उनका यह आभार दुनिया नही भूल पाएगी ..
.इसी प्रयोग से जुड़ी आज एक भारतीय महिला से आपको रूबरू करवाते हैं ..जिनका नाम है अर्चना शर्मा ..इनका साक्षात्कार लिया है आशीष खण्डेलवाल ने | जो हिन्दी ब्लॉग जगत को नई नई तकनीक से तो परिचित करवाते ही हैं पर साथ पेशे से यह पत्रकार हैं | जब मैंने यह पढ़ा तो मैं इनके लेखन के साथ साथ उस महिला से भी बहुत प्रभावित हुई ..जो इस महाप्रयोग में जुड़ी हुई हैं| .दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक प्रयोग में हिंदुस्तानी माटी से जुड़ीं अर्चना शर्मा की अहम भूमिका है। वे दुनिया की उत्पत्ति का रहस्य जानने के लिए हो रहे इस महाप्रयोग को अंजाम दे रहे यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन (सर्न) की इकलौती स्थाई भारतीय सदस्य हैं।
छोटे से शहर की अर्चना शर्मा को बड़े सपने देखने से कोई रोक नही पाया ..शादी हुई तो सब ने ससुराल में इन्हे बहुत सहयोग दिया ..यही वजह रही आज वह इस मुकाम पर हैं | यदि आप दिल में कुछ ठान लेते हैं तो आपको आगे बढ़ने से कोई नही रोक सकता है | बेशक अभी भी भारत में स्त्री पुरूष लिंग भेद जारी हो .पर जिसने जैसे आगे जाना है वह अपना रास्ता बना ही लेता है और मंजिल पा जाता है |
झांसी की रानी आशीष ने बिल्कुल सही नाम दिया है इन्हे .महाप्रयोग के तकनीकी कारणों से फिलहाल थोड़े समय के लिए रुकने के बीच उनसे बातचीत का खास अवसर मिला। जानते हैं अर्चना के इस मुकाम तक पहुंचने की कहानी, उन्हीं की जुबानी-.क्या बताया उन्होंने आशीष को ..आईये जानते हैं ...
छोटे शहर के हर हिंदुस्तानी बच्चे की तरह मेरे भी बड़े सपने थे। भौतिक विज्ञान के प्रति मेरी जिज्ञासा उस वक्त जागी, जब सेंट फ्रांसिस कॉन्वेंट स्कूल में सिस्टर एक्वेलिना ने क्लास टेस्ट में अच्छे प्रदर्शन के लिए स्कूल असेंबली में मेरी जमकर तारीफ की। प्रचलित भारतीय प्रथा के मुताबिक मेरे भी तीन प्रण थे- पढ़ाई, पढ़ाई और पढ़ाई। माता-पिता दोनों शिक्षक थे, इसलिए यह प्रण मेरे लिए और भी खास था। भौतिक शास्त्र में सर्वाधिक अंकों के साथ उच्च माध्यमिक परीक्षा पास करने से मेरी इस विषय के प्रति दिलचस्पी और जाग गई।
झांसी को भले ही रानी लक्ष्मी बाई के लिए जाना जाता हो, लेकिन लड़कियों की पढ़ाई के मामले में यह थोड़ा पिछड़ा हुआ था। हो सकता है कि अब स्थिति बदल चुकी हो, लेकिन अस्सी के दशक की शुरुआत से पहले तक वहां विज्ञान विषय के लिए केवल एक कॉलेज था और वहां लड़कियों को लडक़ों के साथ ही पढऩा पड़ता था। परंपरावादी सोच वाले मेरे माता-पिता इसके लिए तैयार नहीं हुए और आर्थिक समस्या के बावजूद उन्होंने मेरा दाखिला वाराणसी के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में करा दिया। यहां महिला महाविद्यालय के प्राचार्य मेरे पिता के दूर के रिश्तेदार थे और उन्होंने मुझे वहां बीएससी और एमएससी की उपाधि लेने में सहयोग किया। नाभिकीय भौतिकी में मेरी दिलचस्पी जगाने के लिए मैं डॉ. शकुंतला, प्रो. माथुर, प्रो. तूली और प्रो. अम्मीनी अम्मा जैसे शिक्षकों का योगदान कभी नहीं भूल सकती।
अब वह वक्त आ गया था, जब हर हिंदुस्तानी लडक़ी के माता-पिता उसकी विदाई को लेकर चिंतित होना शुरू हो जाते हैं। उस वक्त एक तरफ मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी की तैयारी कर रही थी और दूसरी ओर मेरे लिए रिश्ते ढूंढ़े जा रहे थे। मुझे 1985 का वह वक्त आज भी याद है, जब मेरे अनुसंधान को देखते हुए मुझे कुछ महीनों के लिए यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन (सर्न) में बतौर विजिटिंग साइंटिस्ट आमंत्रित किया गया। शादी से पहले विदेश भेजने के लिए माता-पिता बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। अच्छा वर मिलने के मामले में किस्मत ने मेरा साथ दिया और जल्दी ही मैं 'मिस गौड़' से 'मिसेज शर्मा' बन गई। सबसे अच्छी बात यह थी कि मेरे ससुराल वालों ने मेरे कॅरियर को आगे बढ़ाने में मेरा साथ दिया। इसलिए मैं 1987 में सर्न की यात्रा के लिए स्विट्जलैंड चली आई।
सर्न के रोमांचकारी अनुभव के दौरान ही मुझे इटली के हाई एनर्जी फिजिक्स संस्थान में एक वर्कशॉप में जाने का मौका मिला और वहां मेरे अच्छे प्रदर्शन से मुझे सर्न में काम करने के लिए तीन साल की फैलोशिप मिली। झांसी के छोटे से मोहल्ले जोखन बाग की लडक़ी के लिए यह सबसे बड़ा सपना साकार होने जैसा था।
छोटे से परिवार को संभालने के साथ ही मैंने अध्ययन भी जारी रखा और जेनेवा विश्वविद्यालय से डीएससी और एक्जीक्यूटिव एमबीए किया। इस दौरान मैंने सर्न के साथ ही दूसरे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ अस्थाई रूप से काम किया और वर्ष 2001 में सर्न ने मुझे स्थाई सदस्य वैज्ञानिक के रूप में मान्यता दी। इसके स्थाई सदस्यों में शामिल होने वाली मैं पहली गैर-यूरोपीय सदस्य थी। अब मैं जब इस महाप्रयोग का बड़ा हिस्सा बनी हूं, तो मुझे लगता है कि मैंने साबित कर दिखाया है कि यह संसार एक है और विकास के लिए देशों की सीमाएं कोई महत्व नहीं रखती। भले ही महाप्रयोग तकनीकी वजह से फिलहाल स्थगित कर दिया गया हो, लेकिन अगले साल इसके फिर से शुरू होने पर मैं पूरी अंतरराष्ट्रीय टीम के सहयोग से मुस्तैद रहूंगी और हम इस प्रयोग को सफलता दिलाकर रहेंगे।
मेरा हिंदुस्तानी नारियों के लिए संदेश है कि आत्मनिर्भर बनो। कॅरियर का विकास सीधे-सीधे इस बात से जुड़ा है कि आपने उस काम में कितना वक्त और जज्बा लगाया है। प्रतिभा की हमेशा पूछ होती है। मैंने भी परिवार और कॅरियर के बीच के संघर्ष को झेला है। यह बात दुनिया की हर महिला और हर पेशे के लिए लागू है।
यह सब बातें उन्होंने आशीष को अपने साक्षात्कार में बतायी ...मुझे यह पढने का अवसर मिला और इसको अपने ब्लॉग पर पोस्ट करने का सौभाग्य भी ...शुक्रिया आशीष ..इस झांसी की रानी से हमें रूबरू करवाने का |
वर्जनाओं के जंगल में से राह निकालने का अवसर अब भी हर लड़की को नही मिलता .वो जो भी करती है उसके हर कार्य पर समाज की नजर रहती है ...आज जो कामयाबी की खुशी ,आँखों में चमकती चमक ,हंसती मुस्कराती तस्वीर जो अखबार के पन्नो पर दिखायी देती है वह एक बहुत रास्ता संघर्ष का तय कर के आई होती है पर उसकी विजय निश्चित है क्यूंकि जब वह कुछ कर गुजरने की ठान लेती है तो उस मंजिल को पा जाती है |
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23 comments:
यह महा प्रयोग दुनिया को समझने का सत्य की खोज का एक हिस्सा है। हमें गर्व है कि अर्चना जी जैसे अनेक भारतीय इस से जुड़े हैं। वे वाकई झाँसी की रानी हैं।
झांसी की दूसरी रानी से मिलवाने के लिए आभार -इश्वर उन्हें सत्य की खोज में सदैव प्रेरणा दे !
बच्चन जी ने कहा " राह पकड़ तू और चलाचल पा जाएगा मधुशाला" और अर्चना जी ने कर दिखाया...देश को अपनी इस बेटी पर गर्व है...
नीरज
रंजना आप का प्रयास बहुत सराहानिये हैं की आप निरंतर नारी आधारित विषयों पर ना केवल नारी ब्लॉग पर अपितु अपनी ब्लॉग पर भी लिख रही हैं .
अर्चना के इस संदेश को हम सब को आगे बढाते रहना है .
मेरा हिंदुस्तानी नारियों के लिए संदेश है कि आत्मनिर्भर बनो। कॅरियर का विकास सीधे-सीधे इस बात से जुड़ा है कि आपने उस काम में कितना वक्त और जज्बा लगाया है।
शुक्रिया।
शुभकामनाएं झांसी की इस रानी को।
जानकारी के लिए बहुत शुक्रिया, रंजना जी.
भारतीय महिलाओं की विश्व व्यापी सफ़लता पर हर एक भारतीय को नाज है..इससे देश का गौरव बढता है... आभार... रंजना जी और आशीष जी
Ranju ,
ham sab ko aapne achcha sadesh diya hai......jaankaari ke liye shuriya
बहुत सुन्दर लेख।
झांसी की रानी अर्चना शर्माजी का नाम ही सुना था अब तक। आज आपने पूरी जानकारी दी, बहुत बढ़िया लगा।
आशीषजी और आप दोनों को धन्यवाद
सुखद आश्चर्य। हमारे बीच ऐसी कितनी ही महिलाएं हैं जिनकी कोशिश-सफलता कइयों के लिए प्रेरणा है।
रंजू जी, आभार अर्चना शर्मा जी के काम को पाठकों तक पहुंचाने के लिए। राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित इस साक्षात्कार को यहां भी देखा जा सकता है।
http://www.scribd.com/doc/6365039/Interview-Archana-Sharma
रंजू जी, आभार अर्चना शर्मा जी के काम को पाठकों तक पहुंचाने के लिए। राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित इस साक्षात्कार को यहां भी देखा जा सकता है।
http://www.scribd.com/doc/6365039/Interview-Archana-Sharma
we wish our best wishes to archan ji as being a person who born in jhansi
i feel proud
and why i
whole nation is having proud
regards
archna ji ko dher sari shubhkamnayen...........
बहुत बहुत आभार प्रेरक व्यक्तित्व से परिचित कराने के लिए..
बहुत शानदार |
इस झांसी की रानी को मेरा सलाम पहुंचे।
झांसी की दूसरी रानी से मिलवाने के लिए आभार -इश्वर उन्हें सत्य की खोज में सदैव प्रेरणा दे !
Truly inspiring Lady Archna Sharma -- BRAVO !!
अर्चना जी जैसी प्रेरणादायी शख्सियत से मिलवाने के लिए आभार।
रंजू जी बहुत अभिमान हुआ पढ कर । यह लेख आपको चोखेर बाली पर भी डालना चाहिये । अर्चना शर्माजी का सफर तो काबिले तारीफ है ही पर उनके परिवार वालों का योगदान भी प्रशंसा का पात्र है ।
अच्छा किया जो आपने अर्चनाजी के बारे में जानकारी दी। उनके जैसे लोग तमाम लोगों की प्रेरणा बनते हैं।
आभार इस जानकारी के लिए... सच में झांसी की रानी हैं अर्चना जी.
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