गहने बहुत प्राचीन समय से मनुष्य को आकर्षित करते रहे हैं | आदि काल से जब उसने खाना पहना ,घर बनाना सीखा तब ही साथ गहने भी बनाए पत्थर के और ख़ुद को उनसे सजाया | वक्त के साथ साथ गहनों का सफर भी चलता रहा और यह अपने नए प्रकार के घातु में ढल कर स्त्री पुरूष दोनों के व्यक्तित्व की शोभा बढाते रहे | इनको पहनना सिर्फ़ शिंगार की दृष्टि से ही नही था बलिक शरीर के उन महत्वपूर्ण जगह पर दबाब देने से भी भी था जो मनुष्य को स्वस्थ रखते हैं | यह बात विज्ञान ने भी सिद्ध की है |
इसी सिलसले में आज आपसे कश्मीरी गहनों के बारे में बात करते हैं |जम्मू कश्मीर में बहुत समय तक रहने के कारण कश्मीरी लड़कियों के पहने हुए गहनों से बहुत प्रभावित रही हूँ मैं | हर प्रांत हर जगह की अपनी एक ख़ास पहचान होती है | और कोई न कोई बात उसके पहनावे ,गहनों और रीति रिवाजो से जुड़ी होती है |उनके बारे में जानना बहुत ही दिलचस्प लगता है | कानों से लटकती लाल डोरी ..गुलाबी चेहरों का नूर और उस पर डाला हुआ फेरन जैसे एक जादू सा करता है | कई कश्मीरी सहेलियां थी जिनसे उनके पहने जाने वाले गहनों के बारे में जाना |
.कश्मीर में हर लड़की की शादी से पहले लौगाक्ष गृह सूत्र " की रस्म अदा की जाती है जिस में लड़की के सामने सारे रहस्य खोले जाते हैं | लौगाक्ष एक ऋषि हुआ था जिस ने तन ,मन और आत्मा की चेतना के कुछ सूत्र लिखे थे ,वही सूत्र पढ़े जाते हैं और उनकी व्याख्या की जाती है |
गुणस..मटमैले रंग के एक जहरीले पहाडी सांप को गुणस कहते हैं और जो सर्प मुखी सोने का कंगन बनाया जाता है उसको भी गुणस कहते हैं | इस आभूषण को जब मंत्रित कर के लड़की की दोनों कलाई यों में पहनाया जाता है तो मान लिया जाता है की इस की शक्ति उसकी रगों में उतर जायेगी और वह अपनी रक्षा कर सकेगी |
कन वाजि- कर्ण फूल वाजि गोल कुंडल को कहते हैं और कान का कुंडल यह फूल के आकार में बना सोने का आभूषण है जिसको पहनाने से यह माना जाता है की दोनों कानो में पहनाने से इडा और पिंगला दोनों नाडीयों को जगा देंगे इडा नाडी खुलने से चन्द्र शक्ति और दायें तरफ़ पहनाने से पिंगला नाडी खुलेगी जिस से सूरज शक्ति जग जायेगी |
ड्याजी -होर काया विज्ञान की बुनियाद पर सोने का एक आभूषण पहनाया जाता है जो योनी मुद्रा आकार का होता है यह प्रतीक हैं दो शक्तियों ने अब एक होना है | ड्याजी शब्द मूल द्विज से आया है जिसका अर्थ है दो और होर का मतलब जुड़ना | इस में तीन पतियाँ बनायी जाती है जो तीन बुनयादी गुण है .इच्छा ,ज्ञान ,और क्रिया | यह सोने का तिल्ले के तीन फूलों के रूप में होती है |
तल राज तल रज इस आभूषण के दोनों सिरों पर जो लाल डोरियाँ बाँधी जाती है ,उनको तल रज कहते हैं |रज का अर्थ है --धागा और ताल से मतलब है सिर के तालू की वह जगह ,जहाँ पूरी काया में बसे हुए चक्रों का आखरी चक्र होता है सहस्त्रार | आर का अर्थ है धुरी और वह धुरी जिसके इर्द गिर्द कई चक्र बनते हैं | काया विज्ञान को जानने वाले रोगियों के अनुसार इस सहस्त्रार में कुंडलिनी जागृत होती है ,परम चेतना जागृत होती है | यह आभूषण दोनों कानों के मध्य में पहना जाता है .उस नाडी को छेद कर के जिसका संबंध सिर के तालू के साथ जुडा होता है ,और माना जाता है की इस आभूषण के पहनने से सहस्त्रार के साथ जुड़ी हुई नाडियाँ तरंगित हो जायेंगी |
कल वल्युन कलपोश---कल खोपडी को कहते हैं और पोश पहनने को | यह सिर पर ढकने वाली एक टोपी सी होती है -जो सुनहरी रंग के कपड़े को आठ टुकडों में काट कर बनायी जाती है | यह उन का सुनहरी रंग का कपड़ा सा होता है और जिस पर यदि तिल्ले की कढाई की जाए तो उसको जरबाफ कहते हैं | यह आठ टुकड़े आठ सिद्धियों के प्रतीक हैं इस एक लाल रंग की पट्टी राजस गुन की प्रतीक है और सफ़ेद रंग के जो फेर दिए जाते हैं वह सात्विक रूचि को दर्शाते हैं | इस आठ डोरियों को दोनों और से एक एक सुई के साथ जोड़ दिया जाता है जिस पर काले रंग का बटन लगा होता है | यह बटन तामसिक शक्तियों से रक्षा करेगा इस बात को बताता है |
वोजिज डूर-लाल डोरी --वोजिज लफ्ज़ उज्जवल लफ्ज़ से आया है और डूर का अर्थ है डोरी | इसको दोनों कानो में ड्याजी -- होर जो आभूषण है वह दोनी कानो में इसके साथ बाँधा जाता है | उनका लाल रंग शक्ति का प्रतीक है और बाएँ कान में स्त्री अपने लिए पहनती है और दायें कान में अपने पति के लिए पहनती है इसका अर्थ यह है की दोनों ने आपने अपने तीन गुन इच्छा ज्ञान और क्रिया अब एक कर लिए हैं |
तरंग कालपोश को सफ़ेद सूती कपड़े में लपेटा जाता है -जो सिर से ले कर पीठ की और से होता हुआ कमर तक लटका होता है |मूलाधार चक्र तक और इस तरह सब छः चक्र उस कपड़े की लपेट में आ जाते हैं इसका सफ़ेद रंग तन मन और आत्मा की पाकीजगी का चिन्ह है |
स्त्री शक्ति कश्मीर में शक्तिवाद सबसे अधिक सम्मानित हुआ है |इस लिए स्त्री की पहचान एक शक्ति के रूप में होती है और इस लिए उसके पहरन में दो रंग जरुर होते हैं सफ़ेद सत्व गुण का प्रतीक और लाल राजस गुन का प्रतीक | काले रंग का उस के पहरन में कोई स्थान नही क्यूंकि वह तामस गुण का प्रतीक होता है |
फेरन --यह सर्दियों में पश्मीने का होता है और गर्मियों में सूती कपड़े का | यह भी काले रंग का कभी नही होता है | इसकी कटाई योनी मुद्रा में की जाती है जिस पर लाल रंग की पट्टी जरुर लगाई जाती है | इसको दोनों तरफ़ से चाक नही किया जाता इसका अर्थ यह होता है की शक्ति बिखरेगी नही |इसके बायीं तरफ़ जेब होती है जो स्त्री की अपनी तरफ़ है | उस तरफ़ की जेब लक्ष्मी का प्रतीक है और इस में भी लाल पट्टी जरुर लगाई जाती है | इसका अर्थ यह है की लक्ष्मी स्त्री के पास रहेगी और वह इसकी रक्षा अपने तमस गुण से करेगी |
पौंछ---यह फेरन के अन्दर पहने जाने वाला कपड़ा होता है और यह अक्सर सफ़ेद रंग का ही होता है -यानी सात्विक शक्ति स्त्री के शरीर के साथ रहेगी जिस के ऊपर लाल रंग का फेरन होगा रजस शक्ति का प्रतीक |
इसकी बाहों की लम्बाई कभी भी अधिक लम्बी कलाई तक नही होती है और इस के आख़िर में में भी लाल पट्टी लगा दी जाती है |
लुंगी --यह कई रंगों का एक पटका सा होता है जिसको फेरन के साथ कमर पर बाँध लिया जाता है और इसकी गाँठ को एक ख़ास तरकीब से बाँधा जाता है जो पटके की पहले लगी दो गांठो को लपेट लेती है जो की एक स्त्री शक्ति का प्रतीक है और एक पुरूष शक्ति का प्रतीक है और एक गाँठ में बाँधने का मतलब है की अब वह दोनों एक हैं |
पुलहोर--कुशा ग्रास को सुनहरी धागों में बुन कर स्त्री के पैरों के लिए जो जूती बनायी जाती है उसको पुलहोर कहते हैं | माना जाता है कि कुशा ग्रास की शक्ति के सामने असुरी शक्ति शक्तिहीन हो जाती हैं और ज़िन्दगी की मुश्किल राहों पर स्त्री आसानी से आगे बढ़ सकेंगी और साबुत कदम रख सकेगी |
इस प्रकार यह गहने शक्ति के भी प्रतीक बन जाते हैं और हर लड़की खुशी खुशी इनको धारण करती है | यह कोई बंधन नही एक परम्परा है जिस का सम्मान और उस से प्यार हर लड़की को ख़ुद बा ख़ुद हो जाता है |
26 comments:
इस प्रकार यह गहने शक्ति के भी प्रतीक बन जाते हैं और हर लड़की खुशी खुशी इनको धारण करती है
" oh ya very rightly said, jewellery is weakness of every woman, n myself mad abt it ha ha ha " but great to read about kashmere tradition of jwellery in so detail" great efforts of your"
REgards
कोई लड़की/महिला इन गहनों से बंधन महसूस करे और न पहनना चाहे तो भी उसे क्या स्वतंत्रता है? और क्या उसे सामाजिक रूप से गलत निगाहों से न देखा जाएगा? इन प्रश्नों के उत्तरों पर निर्भर करेगा कि गहने बंधन हैं या नहीं?
मुझे तो भार लगते हैं .इसलिए नही पहनती मैं .
वाह रंजू जी कश्मीरी गहनों के बारे मे बहुत ही दिलचस्प जानकारी दी है आपने।
अच्छी जानकारी
आपके लेख से मुझे भारतीय परंपरा की एक अनोखी जानकारी मिली जिससे मैं सर्वथा अनभिज्ञ था! बहुत बहुत शुक्रिया!
kudi ki photo to achhi lagayi aapne.. khair gahne pahanne ki swatantrta to sabko hai.. jise bhaye wo pahne jiska na man wo na pahne..
अच्छी जानकारी।
अरे बाप रे .....आपने आँखे खोल दी ..हमें अंदाजा नही था इस बात का......विस्तार से समझाया है.....
रंजू जी ...बहुत बहुत धन्यवाद इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए!कश्मीरी लिबास और गहने सचमुच बहुत खूबसूरत होते हैं!
बहुत ही अच्छी जानकारी दी आप ने, इन गहनो के बारे,इन गहनॊ का एक महत्व ओर भी हे जब परिवार पर कभी आर्थिक संकट आता हे तो समझ दार नारिया उस समय अपने इन्ही गहनो से परिवार की इज्जत बनऎ रखती हे,
आप का धन्यवाद
बहुत सुन्दर और उपयोगी जानकारी लेकर आई हैं। आपके अध्ययन को सलाम।
आभार गहनों के बारे मे बहुत ही दिलचस्प जानकारी के लिए.
badi mehnat ki gahnon se judi is jaankari ko hum tak pahuchane ke liye.
gahnon ka chalan shrinhgar ke aalawa swasthwardhan ka bhi hoga ye nahin socha tha.
dhanyawaad
अरे वाह ,ये तो सिर्फ कशमीरी स्त्रियोँके गहने और वस्त्रोँ की जानकारी है तब सोचिये समूचे भारत मेँ अब भी कितनी बातेँ होँगीँ ! विस्तारपूर्वक लिखा है आपने ..अच्छा लगा -
- लावण्या
is jaankari ne bahut kuch bataya,
gahne ki shakti adwitiye hai.......
bahut badhiya post hai...aaur bhi batayiye..
अच्छी ज्ञान की बातें हैं ये तो.. उपयोगी भी.
बहुत अच्छी जानकारी दी आपने। धन्यवाद!
लेकिन चोखेर बाली की इस पोस्ट http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/08/blog-post_20.htmlपर जो कमेंट दिया है उसी को दोहरा रही हूँ।
diamonds are a girls "best" friends.
यह पंक्ति क्या सन्देश दे रही है?हमारे देश मे जहाँ लड़कियों को गहनों से अतिशय प्रेम बचपन से मिलता है उनके लिए यह पंक्ति घातक है।एक हीरा एक लड़की द्वारा खुद खरीदा गया हो तो निश्चित रूप से यह उसकी ताकत है।पर यही सब कुछ नही है।यूँ अब तक सुना था कि मनुष्य का सच्चा दोस्त पुसतकें होती हैं।
हीरे केवल आपकी"पर्चेज़िन्ग पॉवर" के प्रतीक हैं और अगर पर्चेज़िंग पॉवर ही सब कुछ है तो मेरा खयाल है कि मध्यवर्गीय या निम्नमध्यवर्गीय या निमंवर्गीय स्त्री को तो पॉवर कभी नही मिलने वाली ।
और शक्ति का प्रतीक हैं गहने तो जिसके पास नही हैं , जो अफोर्ड नही कर सकतीं वे तो शक्तिहीन हुईं।शक्ति का प्रतीक किसी मैटीरियल चीज़ को कैसे कह सकते हैं मै समझने मे असमर्थ हूँ ।शायद आप इसे समझने मे मेरी मदद कर सकें।
सादर ,
सुजाता
बहुत बहुत धन्यवाद आप सब ने इस लेख को इतने ध्यान और इतने प्यार से पढ़ा .
@सुजाता जी ...यह लेख गहनों की जानकारी व उनसे जुड़े काया विज्ञान के संदर्भ में था . न की किसी तरह से यह बताना की किसी के पास गहने नही होंगे तो वह शक्ति हीन होगा | किसी भी इंसान का चाहे वह स्त्री हो या पुरूष के असली गहने उनकी शिक्षा ,उनका व्यवहार और उनका चरित्र होता है | कोई भी भौतिक चीज किसी को सर्वगुण सम्पन्न नही बना सकती है | मैंने जैसा पहले भी लिखा है इस लेख में की मैं किसी भी प्रांत की संस्कृति ,परम्परा .रीतिरिवाजों और उन लोगो की वेशभूषा से बहुत प्रभावित होती हूँ क्यूंकि मुझे वह उस जगह से जुड़े कैसे शुरू हुआ होगा क्यूँ पहना होना यह आदि आदि जिज्ञासा से रूबरू करवाते हैं | और मैं कश्मीर में काफ़ी वक्त गुजार चुकी हूँ सो वहां के पहने जाने वाले आभूषण मुझे अपनी तरफ़ हमेशा आकर्षित करते रहे हैं इसलिए मैंने वही लिखा है की वहां इन गहनों को पहनने का मतलब क्या है और यहाँ शक्ति का अर्थ काया विज्ञान से जुडा है | और सबने उसको उसी तरह से पढ़ा भी है यह इस लेख पर आने वाले कॉमेंट्स बताते हैं | अब कोई गहने पहने या न पहने यह उसकी व्यक्तिगत आजादी है सोच है |मेरा यह मानना है कि जो आप नही करना चाहते कोई आपसे जबरदस्ती कम से कम अब के समय में नही करवा सकता है ...शिक्षा का प्रसार अभी बहुत अधिक न सही पर इतना तो हो चुका है की कम से कम पहनने ओढ़ने के बारे में हर व्यक्ति अपनी पसंद को प्रथामिकता देता है | बाकी आपकी यह पंक्ति की हीरा सबसे अच्छा दोस्त है .यह तो बाज़ार के अपने उत्पाद को बेचने की मानसिकता है ..| कुछ चीजे हमें पीढी दर पीढी विरासत में मिलती है जैसे गहनों के प्रति नारी का लगाव .. और उसी चीज को यह बाज़ार केश करता है | और आज कल के लड़कों का रुझान जिस तरह से गहनों की तरफ़ बढ़ रहा है हो सकता है यह पंक्ति आप बिना किसी लिंग के भेद भाव किए बिना पढ़े की हीरा है सबका अच्छा दोस्त :)
रंजू दी, बहुत बहुत आभार इतने सुंदर आलेख के लिए.कश्मीरी वेश भूषा आभूषण आकर्षित तो बहुत करती थी पर उसके पीछे के कारणों से बिल्कुल ही अनभिज्ञ थी.बहुत ही अच्छा लगा सब जानकर.मेरा मानना है कि परम्परा से पीढियों से जो रिवाज़ चले आ रहे हैं,वे गहन खोज के नतीजे हैं और सबकुछ को सिरे से नकार कर हम पाने के बदले बहुत कुछ खोने लगे हैं.
किसी भी प्रदेश का खान पान,पहनावा, रीति रिवाज़ सिर्फ़ संस्कृति का हिस्सा नही बल्कि हमारे स्वस्थ जीवन शैली के लिए भी आवश्यक हैं. उन्हें महज ढकोसला मान लेने से वे महत्वहीन नही हो जायेंगे.
आपसे आग्रह है कि इस तरह के आलेख भविष्य में भी लिखती रहेंगी और हमारी जानकारी बढाती रहेंगी.
विपत्ति के समय ये गहने ही होते हैं बहुत बड़ी पूंजी, कश्मीरी गहनों के बारे में दी जानकारी अच्छी रही।
देख रहा हूं कि मैं पास हुआ या नहीं :)
रंजना जी,
बहुत ही सुंदर लेख है. आपकी मेहनत से हमें भी इस विषय में जानकारी मिली. पुलहोर के बारे में थोड़ी उत्सुकता है, क्या यह सूखी घास का होता था और क्या यह अभी भी कश्मीर में कहीं प्रचलन में है? क्या इसका कोई चित्र मिल सकता है?
धन्यवाद!
पुलहोर
अद्भुतम
अद्भुतम
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