Tuesday, August 05, 2008

होता है कुछ ऐसा भी ......

कवि निराला जी के बारे में एक घटना पढ़ रही थी कि ,वह एक दिन लीडर प्रेस से रोयल्टी के पैसे ले कर लौट रहे थे | उसी राह में महादेवी जी का घर भी पड़ता था |उन्होंने सोचा की चलो मिलते चलते हैं उनसे .|ठण्ड के दिन थे अभी कुछ दूर ही गए होंगे कि सड़क के किनारे एक बुढिया उन्हें दिखायी दी जो ठण्ड से कांप रही थी और याचक भाव से उनकी तरफ़ देख रही थी | उस पर दया आ गई उन्होंने उसको न सिर्फ़ अपनी रोयल्टी के मिले पैसे दे दिए बलिक अपना कोट भी उतार कर दे दिया ..., और महदेवी के घर चल दिए किंतु चार दिन बाद वह यही भूल गए कि कोट क्या हुआ | उस को ढूढते हुए वह महादेवी जी के घर पहुँच गए ,जहाँ जा कर उन्हें याद आया कि वह कोट तो उन्होंने दान कर दिया था |

पढ़ कर लगा कि इस तरह जो डूब कर लिखते हैं या प्रतिभाशाली लोग होते हैं ,वह इस तरह से चीजो को भूल क्यों जाते हैं ? क्या किसी सनक के अंतर्गत यह ऐसा करते हैं ? या इस कद्र डूबे हुए होते हैं अपने विचारों में कि आस पास का कुछ ध्यान ही नही रहता इन को ।विद्वान मन शास्त्री का यह कहना है कि जब व्यक्ति की अपनी सारी मानसिक चेतना एक ही जगह पर केंद्रित होती है वह उस सोच को तो जिस में डूबे होते हैं कामयाब कर लेते हैं पर अपने आस पास की सामान्य कामो में जीवन को अस्तव्यस्त कर लेते हैं जो की दूसरों की नज़र में किसी सुयोग्य व्यक्ति में होना चाहिए |

इसके उदाहरण जब मैंने देखे तो बहुत रोचक नतीजे सामने आए .,.जैसे की वाल्टर स्काट यूरोप के एक प्रसिद्ध कवि हुए हैं ,वह अक्सर अपनी ही लिखी कविताओं को महाकवि बायरन की मान लेते थे और बहुत ही प्यार से भावना से उनको सुनाते थे |उन्हें अपनी भूल का तब पता चलता था ,जब वह किताब में उनके नाम से प्रकशित हुई दिखायी जाती थी |

इसी तरह दार्शनिक कांट अपने ही विचारों में इस तरह से गुम हो जाते थे कि , सामने बैठे अपने मित्रों से और परिचितों से उनका नाम पूछना पड़ता था और जब वह अपने विचारों की लहर से बाहर आते तो उन्हें अपनी भूल का पता चलता और तब वह माफ़ी मांगते |

फ्रांस के साहित्यकार ड्यूमा ने बहुत लिखा है पर उनकी सनक बहुत अजीब थी वह उपन्यास हरे कागज पर ,कविताएं पीले कागज पर ,और नाटक लाल कागज पर लिखते थे | उन्हें नीली स्याही से चिढ थी अत जब भी लिखते किसी दूसरी स्याही से लिखते थे |

कवि शैली को विश्वयुद्ध की योजनायें बनाने और उनको लागू करने वालों से बहुत चिढ थी | वह लोगो को समझाने के लिए लंबे लंबे पत्र लिखते |पर उन्हें डाक में नही डालते, बलिक बोतल में बंद कर के टेम्स नदी में बहा देते और सोचते की जिन लोगो को उन्होंने यह लिखा है उन तक यह पहुँच जायेगा | इस तरह उन्होंने कई पत्र लिखे थे |

जेम्स बेकर एक जर्मन कवि थे वह ठण्ड के दिनों में खिड़की खोल कर लिखते थे कि , इस से उनके दिमाग की खिड़की भी खुली रहेगी और वह अच्छा लिख पायेंगे |

चार्ल्स डिकन्स को लिखते समय मुंह चलाने की और चबाने की आदत थी | पूछने पर कि आप यह अजीब अजीब मुहं क्यों बनाते लिखते वक्त ..,तो उसका जवाब था कि यह अचानक से हो जाता है वह जान बूझ कर ऐसा नही करते हैं |

बर्नाड शा को एक ही अक्षर से कविताएं लिखने की सनक थी |उन्होंने अनेकों कविताएं जो एल अक्षर से शुरू होती है उस से लिखी थी ..,पूछने पर वह बताते कि यह उनका शौक है |

तो आप सब भी प्रतिभशाली हैं ,खूब अच्छे अच्छे लेख कविताएं अपने ब्लॉग पर लिखते हैं .| सोचिये- सोचिये आप किसी आजीबो गरीब सनक के तो शिकार नही :) कुछ तो होगा न जो सब में अजीब होता है .. | जब मिल जुल कर हम एक दूसरे के अनुभव, कविता, लेख पढ़ते हैं तो यह क्यूँ नही ।:).जल्दी जल्दी लिखे आप सब में क्या अजीब बात है मुझे इन्तजार रहेगा आप सब की सनक को जानने का ॥:)

19 comments:

Nitish Raj said...

काफी रोचक जानकारियां आपने दीं। कहां से जुटाई? वैसे अधिकतर वाक्ये वो हैं जो कि कोई और गौर करता है और बताता है कि आप की सनक कुछ ऐसी है। वैसे मेरे में क्या है मैं किसी से पूछूंगा वरना आप हीं मेरे लेखन से अंदाजा लगाईए कि मैं किस के लिए और कितना सनकी हूं।

रंजन गोरखपुरी said...

आपने अपने लेख में सृजनात्मकता के बड़े ही विचित्र परन्तु प्रत्यक्ष पहलू से आवगत कराया है! अक्सर लेखक, कवि, वैज्ञानिक, दार्शनिक आदि अपने क्षेत्र में ऐसा डूब जाते हैं कि उनमे कुछ अनोखी 'सनक' अनायास ही देखी जाती है! कहते हैं न कि सृजन कि अति में परमात्मा है.. उस दिव्य पल में व्यक्ति का मन इस धरती के स्वाभाविक कार्यों से अलग हो जाता है... शायद इसी को सनक कहते हों!

डॉ .अनुराग said...

जी हाँ निराला के बारे में तो ढेरो किस्से है ,इतने की पुरी निराला कथा लिखी जा सकती है ,जेब से फक्कड़ ओर दिल के बादशाह थे वो....ऐसे ढेरो लोग थे लेकिन दुःख की बात है अन्तिम वक़्त में बदहाली में मरे .....हिन्दी के ऐसे कई आवारा मसीहा है.....

पारुल "पुखराज" said...

alag si post likhi hai aapney ranju di. badhaayi. nirala ji ek waqt unnao me hamarey ghar ke pass rahaa kartey the..dadi batati hain ki sudbudh khoye rehtey the...kab se bhuukhey hain iska bhi hosh nahi rehtaa thaa...hum to unkey adbhut qissey suntey aaye hain sadaa se

कुश said...

वाह जी वाह बहुत बढ़िया जानकारी उपलब्ध कराई आपने.. कोटि कोटि धन्यवाद

seema gupta said...

"Very interesting and informative article about Nirala jee, enjoyed reading it"
REgards

सुशील छौक्कर said...

अच्छे लोगो की अच्छी जानकारी देने के लिए शुक्रिया। ढेरो किस्से कहानियाँ है इन लोगो की, जो हमें अचम्भित कर जाती हैं।

राज भाटिय़ा said...

निराला जी सच मे ही इस दुनिया मे निराले ही थे, दिल के राजा, बहुत धन्यवाद अच्छी जान कारी के लिये

Shiv said...

ढेर सारी रोचक जानकारी लिए हुए अद्भुत और अलग सी पोस्ट है.

हाँ एक बात कहूँगा कि स्कॉट अपनी कविताओं को बायरन की कविता समझ कर सुनाते थे. लेकिन हमारे ब्लॉग जगत में घटी कुछ घटनाओं को देखा जाय तो कह सकते हैं कि यहाँ ठीक उल्टा है. यहाँ तो लोग स्कॉट, बायरन को तो छोड़ दीजिये, रोज पढ़े जाने वाले ब्लॉगर बन्धुवों की रचनाओं को भी अपना बता डालते हैं...:-)

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया जानकारी. वाह! आनन्द आ गया. पढ़वाने का आप को बहुत शुक्रिया.

रश्मि प्रभा... said...

bahut sahi tasweer,meri maa haath me saman rakhkar sare ghar me dhoondha karti hain aur pareshan ho jati hain,raat me uthkar koi chij dhoondhti hain,waise ab hum bhi dheere dheere isi marg par ja rahe hain,
bahut sundar yaadon ke saath aapne ek sahi jaankari di......

Manish Kumar said...

behad rochak jaankari..inhein yahan share karne ka shukriya.

Abhishek Ojha said...

Aise Incidents likhte samay aapne kisi Mathematician ka naam nahin liya te thik baat nahin hai :-)

Ek aur Example:
Archimedes maar diye gaye the jab we ganit mein tallin the.

Kahte hain ek baar Einstien apni wife ko nahin pahchaan paaye :-)

Smart Indian said...

जानकारी का शुक्रिया। फ़िर तो अपनी सनक से घबराने की ज़रूरत नहीं है मुझे।

रंजना said...

कहते हैं कि ''पागल ही कवि हो सकता है'' मुझे यह बात सच लगती है. जो व्यक्ति जितना अधिक संवेदनशील होता है और पर पीड़ा को उतनी ही तीव्रता से अनुभूत कर पाने और उतनी ही सक्षमता से अभिव्यक्त कर पाने में समर्थ होता है वही कालजयी कृति छोड़ जाता है.
इसे सनक कहें या पागलपन,पर दिन की दुनिया में रमने और मस्त रहने वाले लोग कुशलता से दुनियादारी नही निभा पाते.वे इस दुनिया में रहते हुए भी इस दुनिया के नही होते.
बहुत अच्छा लिखा आपने.महादेवी और निराला दोनों की मैं भक्त हूँ.

रंजना said...

कहते हैं कि ''पागल ही कवि हो सकता है'' मुझे यह बात सच लगती है. जो व्यक्ति जितना अधिक संवेदनशील होता है और पर पीड़ा को उतनी ही तीव्रता से अनुभूत कर पाने और उतनी ही सक्षमता से अभिव्यक्त कर पाने में समर्थ होता है वही कालजयी कृति छोड़ जाता है.
इसे सनक कहें या पागलपन,पर दिन की दुनिया में रमने और मस्त रहने वाले लोग कुशलता से दुनियादारी नही निभा पाते.वे इस दुनिया में रहते हुए भी इस दुनिया के नही होते.
बहुत अच्छा लिखा आपने.महादेवी और निराला दोनों की मैं भक्त हूँ.

vipinkizindagi said...

bahut achchi....
bahut sundar....
behatarin

शोभा said...

रंजू जी
निराला जी के बारे में मैने भी यह पढ़ा था। कुछ लोग ऐसे ही होते हैं। मन के इतने साफ और भावुक। इतना सुन्दर मानसिक भोजन परोसने के लिए बधाई।

Asha Joglekar said...

Ekdam alag lekh hai yah aapka. Aur behad rochak aur mahitipoorn bhi.