Tuesday, April 15, 2008

विडंबना



दिख रहा है ......
जल्द ही दिल्ली का नक्शा बदल जायेगा
खेल कूद के लिए ख़ुद रहा है
दिल्ली की सड़कों का सीना
हर तरफ़ मिटटी खोदते
संवारते यह हाथ
जाने कहाँ खो जायंगे

सजाती दिल्ली को
यह प्रेत से साए
गुमनामी में गुम हो जायेंगे

घने ठंड के कुहरे में
दूर गावं से आए यह मजदूर
फटे पुराने कपडों से ढकते तन को
ख़ुद को दे सके चाहे एक छत
पर आने वाले वक्त को मेट्रो और सुंदर घरों का
एक तोहफा सजा संवार के दे जायेंगे !!

रंजना





6 comments:

Manas Path said...

हर एतिहासिक धरोहर के साथ ऐसी ही ज्यादतियां चस्पा है.

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav said...

वाह! सही विडम्बना है लेखिका साहिब, ताज महल के साथ भी ऐसा ही हुआ पता नहीं कौन थे वो लोग

जो प्यार का तोहफा सजा पाने
के बाद हकदार बने सजा पाने के

Anonymous said...

वाह! बहुत खूब रंजना जी,बहुत ही बढ़िया विषय को बड़े संजीदगी से उभर है,बधाई.
आलोक सिंह "साहिल"

Udan Tashtari said...

बढ़िया है.

Asha Joglekar said...

बहोत खूब रंजू जी ।

डॉ .अनुराग said...

इसे विडंबना कहे या विकास?