दिख रहा है ......
जल्द ही दिल्ली का नक्शा बदल जायेगा
खेल कूद के लिए ख़ुद रहा है
दिल्ली की सड़कों का सीना
हर तरफ़ मिटटी खोदते
संवारते यह हाथ
न जाने कहाँ खो जायंगे
सजाती दिल्ली को
यह प्रेत से साए
गुमनामी में गुम हो जायेंगे
घने ठंड के कुहरे में
दूर गावं से आए यह मजदूर
फटे पुराने कपडों से ढकते तन को
ख़ुद को दे सके न चाहे एक छत
पर आने वाले वक्त को मेट्रो और सुंदर घरों का
एक तोहफा सजा संवार के दे जायेंगे !!
रंजना
6 comments:
हर एतिहासिक धरोहर के साथ ऐसी ही ज्यादतियां चस्पा है.
वाह! सही विडम्बना है लेखिका साहिब, ताज महल के साथ भी ऐसा ही हुआ पता नहीं कौन थे वो लोग
जो प्यार का तोहफा सजा पाने
के बाद हकदार बने सजा पाने के
वाह! बहुत खूब रंजना जी,बहुत ही बढ़िया विषय को बड़े संजीदगी से उभर है,बधाई.
आलोक सिंह "साहिल"
बढ़िया है.
बहोत खूब रंजू जी ।
इसे विडंबना कहे या विकास?
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