Tuesday, February 05, 2008

मैं तुझे फ़िर मिलूंगी ...अमृता प्रीतम ...भाग 4

बहुत हैरानी होती है मुझे जब हिन्दी साहित्य को पढने वाले यह कहते हैं कि वह अमृता के बारे में नही जानते .इमरोज़ कौन है? नही पहचानते ...? और कुछ मेरे जैसे अमृता को पढने वाले मुझे अमृता की दीवानी कहते हैं .दिल को छू जाता है उनका यह कहना ..खैर इस बारे में क्या कह सकते हैं . .सबकी अपनी पसंद हैं और अपने पसंद का ही पढ़ते हैं .:) हम अमृता के पढने वाले चलिए आज उनकी ज़िंदगी का एक पन्ना और पढ़ते हैं ...

अमृता के लिए इमरोज़ ने लिखा है ..

ओ कविता ज्युंदी है
ते ज़िंदगी लिखदी है
ते नदी वांग चुपचाप वसदी
सारे पासियां नूं जरखेजी वंडदी
जा रही है सागर वल
सागर होण

[हिन्दी में ]

वह कविता जीती
और ज़िंदगी लिखती
और नदी सी चुपचाप बहती
जारखेजी बाँटती
जा रही है सागर की ओर
सागर बनने !!


अमृता जी अपने आखरी दिनों में बहुत बीमार थी ,जब इमरोज़ जी से पूछा जाता की आपको जुदाई की हुक नही उठती ? वह आपकी ज़िंदगी है ,आप उनके बिना क्या करोगे ? वह मुस्करा के बोले जुदाई की हुक ? कौन सी जुदाई? कहाँ जायेगी अमृता ? इसे यहीं रहना है मेरे पास ,मेरे इर्द गिर्द ..हमेशा !!हम चालीस साल से एक साथ हैं हमे कौन जुदा कर सकता है ? मौत भी नही !मेरे पास पिछले चालीस सालों की यादे हैं .शायद पिछले जन्म की भी ,जो मुझे याद नहीं ,इसे मुझ से कौन छीन सकता है ...

और यह बात सिर्फ़ किताबों पढी नही है जब मैं इमरोज़ जी से मिलने उनके घर गई थी तब भी यह बात शिद्दत से महसूस की थी कि वह अमृता से कहीं जुदा नही है ...वह आज भी उनके साथ हर पल है ..उस घर में वैसे ही रची बसी ..उनके साथ बतयाती और कविता लिखती ...क्यूंकि इमरोज़ जी के लफ्जों में मुझसे बात करते हुए एक बार भी अमृता थी नही आया .अमृता है यहीं अभी भी आया ...एक बार उनसे किसी ने पूछा की मर्द और औरत् के बीच का रिश्ता इतना उलझा हुआ क्यों है ? तब उन्होंने जवाब दिया क्यूंकि मर्द ने औरत के साथ सिर्फ़ सोना सीखा है जागना नही !"" इमरोज़ पंजाब के गांव में पले बढे थे वह कहते हैं कि प्यार महबूबा की जमीन में जड़ पकड़ने का नाम है और वहीं फलने फूलने का नाम है !""जब हम किसी से प्यार करते हैं तो हमारा अहम् मर जाता है ,फ़िर वह हमारे और हमारे प्यार के बीच में नही आ सकता ...उन्होंने कहा कि जिस दिन से मैं अमृता से मिला हूँ हूँ मेरे भीतर का गुस्सा एक दम से शान्त हो गया है मैं नही जानता यह कैसे हुआ .शायद प्यार कि प्रबल भावना इतनी होती है कि वह हमे भीतर तक इतना भर देती है कि हम गुस्सा नफरत आदि सब भूल जाते हैं .हम तब किसी के साथ बुरा व्यवहार नही कर पाते क्यूंकि बुराई ख़ुद हमारे अन्दर बचती ही नही ...


महात्मा बुद्ध के आलेख पढने से कोई बुद्ध नही बन जाता ,और न ही भगवान श्री कृष्ण के आगे सिर झुकाने से कोई कृष्ण नही बन जाता ! केवल झुकने के लिए झुकने से हम और छोटे हो जाते हैं ! हमे अपने अन्दर बुद्ध और कृष्ण को जगाना पड़ेगा और यदि वह जाग जाते हैं तो फ़िर अन्दर हमारे नफरत .शैतानियत कहाँ रह जाती है ?""

यह था प्यार को जीने वाले का एक और अंदाज़ ...जो ख़ुद में लाजवाब है ..

अमृता के लफ्जों में कहे तो

मैं तुझे फ़िर मिलूंगी
कहाँ. किस तरह ,पता नही
शायद तेरे ख्यालों कि चिंगारी बन
तेरे केनवास पर उतरुंगी

या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
खामोश तुझे देखती रहूंगी
या फ़िर सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगों में घुलुंगी
या रंगों की बाहों में बैठकर
तेरे केनवास को वलुंगी
पता नही ,कहाँ किस तरह
पर तुझे जरुर मिलूंगी !!


उमा त्रिलोक की लिखी किताब पर आधारित जानकारी !!



6 comments:

loke said...

hi ranju ji

khani to kaafi achi hai kya ye real mein true story hai amrita or imroz realy mein the mujhe nahi pata agar esa hai to wakai ye ek amzing prem kahani hai

agar ye kalpna hai to ismein dheer saaraa aannant pyar hai

ye romeo or juleut or heera ranjha or laila majhnu or soni mahiwal jese log hi kar paate hai

kyo ki ye pyar mein dena jaante hai

or jo sirf pyar mein le na janta hai ya kuch de kar badle mein kuch magna chahta hai vo kabi pyar nahi kar sakta

nice story

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया इसे पढ़वाने के लिए!

पारुल "पुखराज" said...

ranju di,aap jis pyaari bhaavna ke saath ye shranklaa post kar rahin hain...vo bhi hum tak pahuunchti hai.....thx di....

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब आप आप का बहुत बहुत धन्यवाद

Asha Joglekar said...

अमृता प्रीतम जी के ये संस्मरण बहुत ही रोचक हैं और दिल को छू लेने वाले भी ।

Anonymous said...

hello

ranjana bhatia ji

bahut dhanyabaad aapka ye lekh padhane ke liye

kya aap is kitaab ke kuch aur ansh post kar sakti hain

mehrbani hogi