Monday, January 21, 2008

अमृता प्रीतम जो नाम है ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जीने का


पिछले कुछ दिनों से मैं अमृता जी की लिखी हुई कई नज्म और कहानी लेख पढ़ रही थी ..यूं तो इनको मैं अपना गुरु मानती हूँ .पर हर बार इनके लिखे को पढ़ना एक नया अनुभव दे जाता है ..और एक नई सोच ..वह एक ऐसी शख्सियत थी जिन्होंने ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जी ..एक किताब में उनके बारे में लिखा है की हीर के समय से या उस से पहले भी वेदों उपनिषदों के समय से गार्गी से लेकर अब तक कई औरतों ने अपनी मरजी से जीने और ढंग से जीने की जरुरत तो की पर कभी उनकी जरुरत को परवान नही चढ़ने दिया गया और अंत दुखदायी ही हुआ ! आज की औरत का सपना जो अपने ढंग से जीने का है वह उसको अमृता इमरोज़ के सपने सा देखती है ..ऐसा नही है की अमृता अपनी परम्पराओं से जुड़ी नही थी ..वह भी कभी कभी विद्रोह से घबरा कर हाथो की लकीरों और जन्म के लेखो जोखों में रिश्ते तलाशने लगती थी ,और जिस समय उनका इमरोज़ से मिलना हुआ उस वक्त समाज ऐसी बातों को बहुत सख्ती से भी लेता था ..पर अमृता ने उसको जी के दिखाया ..

वह ख़ुद में ही एक बहुत बड़ी लीजेंड हैं और बंटवारे के बाद आधी सदी की नुमाइन्दा शायरा और इमरोज़ जो पहले इन्द्रजीत के नाम से जाने जाते थे, उनका और अमृता का रिश्ता नज्म और इमेज का रिश्ता था अमृता की नज़मे पेंटिंग्स की तरह खुशनुमा हैं फ़िर चाहे वह दर्द में लिखी हों या खुशी और प्रेम में वह और इमरोज़ की पेंटिंग्स मिल ही जाती है एक दूजे से !!


मुझे उनकी लिखी इस पर एक कविता याद आई ..

तुम्हे ख़ुद से जब लिया लपेट
बदन हो गए ख्यालों की भेंट
लिपट गए थे अंग वह ऐसे
माला के वो फूल हों जैसे
रूह की वेदी पर थे अर्पित
तुम और मैं अग्नि को समर्पित
यूं होंठो पर फिसले नाम
घटा एक फ़िर धर्मानुषठान
बन गए हम पवित्र स्रोत
था वह तेरा मेरा नाम
धर्म विधि तो आई बाद !!

अमृता जी ने समाज और दुनिया की परवाह किए बिना अपनी ज़िंदगी जी उनमें इतनी शक्ति थी की वह अकेली अपनी राह चल सकें .उन्होंने अपनी धार दार लेखनी से अपन समय की सामजिक धाराओं को एक नई दिशा दी थी !!बहुत कुछ है उनके बारे में लिखने को .पर बाकी अगले लेख में ...

अभी उन्ही की लिखी एक सुंदर कविता से इस लेख को विराम देती हूँ ..

मेरे शहर ने जब तेरे कदम छुए
सितारों की मुठियाँ भरकर
आसमान ने निछावर कर दीं

दिल के घाट पर मेला जुड़ा ,
ज्यूँ रातें रेशम की परियां
पाँत बाँध कर आई......

जब मैं तेरा गीत लिखने लगी
काग़ज़ के उपर उभर आयीं
केसर की लकीरें

सूरज ने आज मेहंदी घोली
हथेलियों पर रंग गयी,
हमारी दोनो की तकदीरें



अमृता जी पर लिखी एक जानकरी के आधार पर लेख

6 comments:

Prabhakar Pandey said...

सुंदर और जानकारी पूर्ण लेख। मैं भी अमृता जी को खूब पढ़ा हूँ।

कंचन सिंह चौहान said...

उत्तम लेख, मैं स्वयं अमृता जी को बहुत पसाद करती हूँ और बहुत पढ़ा है उन्हे

शोभा said...

रंजू जी
अमृता जी को मैने भी खूभ पढ़ा है । इतनी सुन्दर जानकारी और इतने रोचक ढ़ंग से देने के लिए धन्यवाद ।

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही उम्दा लेख,इतनी सुन्दर जानकारी के लिये आप का धन्यवाद , मेने अभी अमृता प्रीतम जी का कोई भी लेख नही पडा,हां इन के नावल पर बनी फ़िल्म *पिजंर * देखी जो मेरी आत्मा तक को झजकोर गई,

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया लेख!!
शुक्रिया है जी!!

Anonymous said...

अमृता जी की कुछ कविताएँ भी दें, तो मज़ा आ जाए|