ढाई आख़र प्रेम के
प्रेम के ढाई आखर हर किसी के दिल में एक मीठी सी गुदगुदी पैदा कर देते हैं। कभी ना कभी हर व्यक्ति इस रास्ते से हो के ज़रूर निकलता है पर कितना कठिन है यह रास्ता। कोई मंज़िल पा जाता है तो कोई उम्र भर इस को जगह-जगह तलाशता रहता है। किसी के एक व्यक्ति के संग बिताए कुछ पल जीवन को एक नया रास्ता दे जाते हैं तब जीवन मनमोहक रंगो से रंग जाता है और ऐसे पलों को जीने की इच्छा बार-बार होती है।
प्रेम की स्थिति सच में बहुत विचित्र होती है। मन की अनन्त गहराई से प्यार करने पर भी यदि निराशा हाथ लगे तो ना जिया जाता है ना मरा। जैसे कोई रेगिस्तान की गरम रेत पर चल रहा हो जहाँ चलते-चलते पैर जल रहें हैं पर चलना पड़ता है। बस एक आशा या मृगतृष्णा सी दिल में कहीं जागी रहती है कि अब कोई सच्चा प्रेम करने वाला मिल जायेगा शायद जीवन के अगले मोड़ पर ही।
परन्तु जीवन चलने का नाम है और यह निरंतर चलता ही रहा है,बह रहा है,समय की धारा में। कुछ समय पहले कही पढ़ा था कि प्रतिक्रिया,संयोजन और चाहत किसी भी सबंध के तीन अहम चरण होते हैं। कोई भी रिश्ता यूँ ही एक दम से नही जुड़ जाता। हर रिश्ता अपना वक़्त लेता है। कोई भी व्यक्ति सभी से सहजता से संबंध नही बना लेता,अपने जीवन में वो अपने दिल के क़रीब बहुत कम लोगो को आने देता है। जब दो व्यक्ति एक दूसरे की तरफ़ आकर्षित होते हैं तो उनके भीतर होने वाली रासायनिक क्रियाएँ ऐसे प्रभाव पैदा करती है जिनसे उनके हाव भाव बदलने लगते हैं,घंटो एक-दूसरे से बाते करना चाहे उनका कोई अर्थ हो ना हो, दोनो के दिल को सुहाता है। पहले-पहल कोई भी रिश्ता दिल से नही जुड़ पाता पर धीरे-धीरे सब कुछ जान कर व्यक्ति आपस में बंधने लगता है। यह बात हर रिश्ते पर लागू होती है। चाहे वह पति-पत्नी का रिश्ता हो या फ़िर सास बहू का। रिश्ता जितना पुराना होता है उतने ही उसके टूटने की संभावना उतनी कम होती है।
एक लेख में यह जानकारी पढ़ने को मिली जो मुझे बहुत रोचक लगी। रूमी वॉल्ट और प्रेमी युगलों के अनुभवों के आधार पर एक विद्वान् व्यक्ति ने प्रेम के सात चरणो का उल्लेख किया है, ये चरण हैं, आकर्षण,प्रेमोन्माद,प्रणय पूर्व के सम्बन्ध,घनिष्ठता,समपर्ण,चाहत और पराकाष्ठा। इसे आकर्षण,रोमांस,घनिष्ठता और समर्पण जैसे पाँच चरणो में बाँट कर आसानी से समझा जा स्कता है।
आकर्षण क्या है,किसी के दिल में कुछ सकरात्मक भाव रखना ही आकर्षण कहलाता है, यह दोस्ती से अलग है पर इसमें शारीरिक होना ज़रूरी नही। यह भावात्मक भी हो सकता है। शारीरिक आकर्षण तभी होता है जब हमारे शरीर में किसी दूसरे को देख कर कोई प्रतिक्रिया हो और इसकी परिणति हृदय गति,शरीर के तापमान और पसीने के बढ़ोतरी के रूप में होती है। जब यह प्रतिक्रिया होती है तो हथेली में पसीना आ जाता है और गला सुखने लगता है। यह लक्षण बहुत आम है, जबकि यही प्रेम के सबसे पहली स्थिति हैं और यही किसी दूसरे के दिल के क़रीब होने का एहसास करवाते हैं।
आकर्षण के बाद रोमांस का स्थान आता है। यह दूसरों को ख़ुद से प्रभावित करने की स्थिति है। हम उपहारों और किसी अन्य प्रकार की विधि द्वारा दूसरे के दिल को लुभाने की कोशिश करते हैं तो इसमें प्यार की संभावना पैदा हो जाती है। इसकी भी दो स्थिति है एक तो जो सिर्फ़ अपने स्वार्थ के लिए किया जाता है और दूसरा वह जो स्वार्थ से परे हो यहाँ स्वार्थी होने से मतलब उस स्थिति से है जब हम साथी को ख़ुश देखने और सुख देने की जगह इस चीज़ो की चाह सिर्फ़ ख़ुद अपने लिए करते हैं लेकिन निस्वार्थ रोमांस की स्थिति वह है जब हम इन चीज़ो की कल्पना अपने लिए नही बल्कि अपने साथी के लिए करते हैं। उसकी ख़ुशी को ही अपनी ख़ुशी समझते हैं तभी रोमांस पैदा होता है और हम प्रेम की तीसरी स्थिति तक जा पहुँचते हैं। रोमांस करते व्यक्ति की चाह अपने साथी के लिए इतनी बढती चली जाती है और भावात्मक संबंध की परिणति के रूप में दिल में काम संबधी विचार पैदा होने लगते हैं। यह प्रेम की सबसे महत्त्वपूर्ण स्थिति है। प्रेम अब एक ऐसे दोराहे पर आ जाता है जिसमें से एक ऐसा मोड़ है जहाँ कोई संबंध या तो उच्च अवस्था को प्राप्त कर लेता है या फिर गर्त में चला जाता है। इस मोड़ पर आ कर एक बार सोच ज़रूर लेना चाहिए कि उन्हे कौन सा मार्ग चुनना है। अगर संबंध आगे बढ़ता है तो घनिष्ठता भी बदती है। दो प्रेम करने वाल के बीच बहुत सहजता और सरलता पैदा हो जाती है। आपस की बातचीत में कोई औपचारिकता नही रहती। वो एक-दूसरे के विचारों के साथ-साथ भावनाओं और सपनो का भी हिस्सेदार बनने लगते हैं और यही घनिष्ठता एक-दूसरे के प्रति समर्पण का भाव पैदा करती है। एक ऐसा समपर्ण जिस में कोई अगर-मगर नही होता। यह स्थिति हर माहौल में एक-दूसरे को साथ निभाने का वचन देती है और फिर अलग-अलग जीवन बिताने का सोचा भी नही जा सकता। जिस्म से जरूरी रूह तक पहुंचना होता है,तभी पूर्ण समर्पण सम्भव है।
पर अब वह समय कहाँ रहा है, अब तो प्रेम के नाम पर सिर्फ़ स्वार्थ है। सब कुछ स्वार्थवश और समय की सुविधा के अनुसार होता है। आज कल सिर्फ़ सब अपने विषय में सोचते हैं सब। स्वार्थवश दोस्ती करेंगे और स्वार्थवश ही प्रेम और अपने स्वार्थों की पूर्ति होते ही वो संबंध कसमे और दोस्ती तोड़ देंगे,गिरगिट की तरह रंग बदल लेंगे। यह संबंध बनाने बहुत आसान है, पर इनको निभाना उतना ही मुश्किल।
आज के लिए इतना ही, फिर मिलती हूँ आपसे ..प्रेम के ढाई आख़र पर कुछ और बाते ले कर ...:)
इस लेख में कुछ जानकारी [रूमी वॉल्ट और प्रेमी युगलों के अनुभवों के आधार पर एक विद्वान् व्यक्ति ने प्रेम के सात चरणो का उल्लेख किया है ]...एक पूर्व पढ़े लेख पर आधारित है!!
रंजना © ©
13 comments:
"कोई मंज़िल पा जाता है तो कोई उम्र भर इस को जगह-जगह तलाशता रहता है।"
सही लिखा है। लेख पढ़कर अच्छा लगा ।
Aaj rishte banana to bahut aasan hai...raah chalte bhi kitne ristey roz bante hain....aur bigadte bhi hain.....sahi likha hai aapne...ki...rishtey banane se jyada mahatwpurn hai...rishton ko nibhane ki samjh hona....jo sayad aaj bahut kam hin dekhne ko milta hai... :)
Its not imporatant how much we care in the beginning...wat important is that how much we care till the end....n dat is where most of people lagg here...Jism se jyada jaruri hai....rooh tak panhuchna...wat a thought... :)kool job Ranju ji...!! :)
ह्म्म, सो चिंतन में डूबी हैं आजकल आप!!
अच्छा लगा यह लेख पढ़ना!!
apka ye lekh padkar achha laga . kitni gahrai se aapne pyar shabd ko elaborate kiya hai . aur kitni sachai hai isme. wakai sahi kaha hai apne ki aajkal log rishte to bana lete hai par unhe nibhana nahi jaante. shayad yahi wajah hai ki aaj rishto ke dhaage itne kamjor hote jaa rahe hai ek hawa ka tej jhoka usse tod deta hai . har koi apne swarth ke liye rishte nibha raha hai .logo ne rishto ka arth hi badal daala hai . phir aise log pyar ko kaise samjhenge.
aur ab to ye haal hai ki sachha pyar dekhne ko hi nahi milta matlabi logo ki bheed me kahi kho gaye hai pyar ke dhaai aakhar.
प्रेम प्रवचन, प्रेम चिंतन, प्रेम दर्शन, जो भी इसे कहें-अच्छा लगा!! जारी रहें, आगे की कड़ी का इन्तजार है इस विषय पर.
आप तो प्रेम-शिक्षिका है ही इसमें दो राय नहीं है आज के इस व्यापक चिंतन को पढ़कर कितने ही शिष्य हो गये होंगे यह तो आपको मेल चेक करके ही पता चला होगा…।
तो प्रेम गुरू के रूप में स्थापित हो गयी हैं यह मान ले
मैं आज के हिंद का युवा हूँ,
मुझे आज के हिंद पर नाज़ है,
हिन्दी है मेरे हिंद की धड़कन,
सुनो हिन्दी मेरी आवाज़ है.
www.sajeevsarathie.blogspot.com
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9871123997
सस्नेह -
सजीव सारथी
sajeevsarathie@gmail.com
bahut accha likha hai aapne pyar ke upar.bahut hi sunder or pyar bhari linee likhi hai.
realy to good
bahut sarthak. aapke nirnyon se puri sahmati hai meri.
kitni gahrai se aapne pyar shabd ko darshaya hai . aur kitni sachai hai isme. Thik hi lika hai apne ki aajkal log rishte to bana lete hai par unhe nibhana nahi jaante.
aur pyar kya hai....?
mai jise pyar kahata hu duniya use badnam kar chuki hai wasana ke nam se....
sab swarthi ban gaye hai...
मजिलें अपनी जगह हैं,रास्ते अपनी जगह,जब कदम ही साथ न दे तो मुसाफिर क्या करे। यूं तो है हमदर्द भी और हमसफर भी है मेरा,बढ के कोईहाथ न दे तो मुसाफिर क्या करे?
वाह!रंजना जी प्यार कब-कब,पल-पल,हर पल दिल कि धडकनों में भौतिक-रासायनिक परिवर्तनों के साथ प्रवेशाधिकार पा लेता है,आपका लेख इसे बखूबी बयां कर रहा है।
nice post :) all the best :) here have a look at these one too whenever you get time :)
http://saurabhchawla2345.blogspot.com/2012/08/love-is-arranged-by-god-4.html
http://saurabhchawla2345.blogspot.com/2012/08/its-all-written-up-there.html
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