Tuesday, August 07, 2007

नारी और प्रेम..........एक विचार



प्रेम के विषय में बहुत कुछ पढ़ा और समझा गया है ... प्रेम का नाम सोचते ही ...नारी का ध्यान ख़ुद ही जाता है ...क्यूँ की नारी और प्रेम को अलग करके देखा ही नही जाता|
मैने जितनी बार अमृता ज़ी को पढ़ा प्रेम का एक नया रूप दिखा नारी में और उनकी कुछ पंक्तियां
दिल को छू गयी|उनके लिखे एक नॉवल ""दीवारो के साए'' में शतरूपा .. की पंक्तियां नारी ओर प्रेम को सही ढंग से बताती हैं ...
औरत के लिए मर्द की मोहब्बत और मर्द के लिए औरत की मोहब्बत एक दरवाज़ा होती है और इसे दरवाज़े से गुज़र कर सारी दुनिया की लीला दिखाई देती | लेकिन मोहब्बत का यह दरवाज़ा जाने खुदा किस किस गर्दो_गुबार मैं खोया रहता है की बरसो नही मिलता, पूरी पूरी जवानी रोते हुए निकल जाती है तड़पते हुए यह दरवाज़ा अपनी ओर बुलाता भी है ओर मिलता भी नही...
प्यार का बीज जहाँ पनपता है मीलों तक विरह की ख़ुश्बू आती रहती है,............ यह भी एक हक़ीकत है की मोहब्बत का दरवाज़ा जब दिखाई देता है तो उस को हम किसी एक के नाम से बाँध देते हैं| पर उस नाम में कितने नाम मिले हुए होते हैं यह कोई नही जानता. शायद कुदरत भी भूल चुकी होती है की जिन धागो से उस एक नाम को बुनती है वो धागे कितने रंगो के हैं, कितने जन्मो के होते हैं.......
शिव का आधार तत्व हैं और शक्ति होने का आधार तत्व :..वो संकल्पहीन हो जाए तो एक रूप होते हैं . संकल्पशील हो जाए तो दो रूप होते हैं ,इस लिए वो दोनो तत्व हर रचना में होते हैं इंसानी काया में भी . कुदरत की और से उनकी एक सी अहमियत होती है इस लिए पूरे ब्रह्म में छह राशियाँ पुरुष की होती है और छह राशियाँ स्त्री|
शतरूपा धरती की पहली स्त्री थी ठीक वैसे ही जैसे मनु पहला पुरुष था|ब्रह्मा ने आधे शरीर से मनु को जन्म दिया और आधे शरीर से शतरूपा को | मनु इंसानी नस्ल का पिता था,
और शतरूपा इंसानी नस्ल की माँ..|
अंतरमन की यात्रा यह दोनो करते हैं लेकिन रास्ते अलग अलग होते हैं मर्द एक हठ्योग तक जा सकता है और औरत प्रेम की गहराई में उतर सकती है ...साधना एक विधि होती है लेकिन प्रेम की कोई विधि नही होती ,इस लिए मठ और महज़ब ज्यदातर मर्द बनाता है औरत नही चलाती|
लोगो के मन में कई बार यह सवाल उठा की बुद्ध और महावीर जैसे आत्मिक पुरुषों अपनी अपनी साधना विधि में औरत को लेने से इनकार क्यूं किया ? इस प्रश्न की गहराई में उतर कर रजनीश ज़ी ने कहा ..
बुद्ध का सन्यास पुरुष का सन्यास है , घर छोड़ कर जंगल को जाने वाला सन्यास ,जो स्त्री के सहज मन को जानते थे कि उसका होना जंगल को भी घर बना देगा ! इसी तरह महवीर जानते थे कि स्त्री होना एक बहुत बड़ी घटना है..उसने प्रेम की राह से मुक्त होना है साधना की राह से नही , उसका होना उनका ध्यान का रास्ता बदल देगा |
वह तो महावीर की मूर्ति से भी प्रेम करने लगेगी ... उसकी आरती करेगी हाथो में फूल ले ले कर उसके दिल में जगह बना लेगी ,उसके मन का कमल प्रेम में खिलता है ....ध्यान साधना में बहुत कम खिल पाता है|
उन्ही की लिखी कविता एक कविता है जो प्रेम के रूप को उँचाई तक पहुँचा देती है

आसमान जब भी रात का
रोशनी का रिश्ता जोड़ते हैं,
सितारे मुबारकबाद देते हैं
मैं सोचती हूँ, अगर कही ...........
मैं , जो तेरी कुछ नही लगती

जिस रात के होंठो ने कभी
सपने का माथा चूमा था
सोच के पैंरों में उस रात से
एक पायल बज रही है,

तेरे दिल की एक खिड़की ,
जब कही बज उठती है,
सोचती हूँ , मेरे सवाल की
यह कैसी ज़रूरत है !

हथेलियों पर इश्क़ की
मेहंदी का कोई दावा नही
हिज़रे का एक रंग है ,
और
तेरे ज़िक्र की एक ख़ुश्बू


मैं जो तेरी कुछ नही लगती !!!!!!

21 comments:

ghughutibasuti said...

बहुत अच्छा लिखा है रंजना जी , किन्तु आज ही मैं कुछ कुछ ऐसे ही स्त्रियों के विषय पर अफलातून जी के आज के चिट्ठे पर टिप्पणी कर चुकी हूँ । किन्तु मानती और जानती हूँ कि प्रेम से सुन्दर और कोमल कोई भी भाव इस संसार में नहीं है ।
घुघूती बासूती

Sanjeet Tripathi said...

ह्म्म्म, बढ़िया!!!

शुक्रिया!!

ख्वाब है अफसाने हक़ीक़त के said...

bahut khoob ranjana ji...iss vishay per aapke vichaar pad kar achha laga...

Udan Tashtari said...

हमने कल टिप्पणी की थी, दिख नहीं रही??

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लिखा है और साथ ही अमृता जी की कविता, सोने पर सुहागा. बधाई.

Unknown said...

rajana ji aap ka lekh pad aap ne jo nari ke baare me likha hai woh baat dil tak jati hai..... shyaad isliye nari, purush ko aur purush nari ki sampurd karte hai....nahi kya....... Agam

Agam said...

rajana ji aap ka lekh pad aap ne jo nari ke baare me likha hai woh baat dil tak jati hai..... shyaad isliye nari, purush ko aur purush nari ki sampurd karte hai....nahi kya....... Agam

Divine India said...

बेहतरीन लिखा है उनके लिए भी जो प्रेम को कविता नहीं मानते और उनके लिए भी जो प्रेम करना तो चाहते हैं पर छुपा जाते हैं…।
प्रेम तो अपने आप में एक साधना है…
पूर्ण अभिव्यक्ति… जो रिक्त है वह भी प्रेम है जो भरा है वह भी प्रेम है… हर जगह हर मोड़ हर श्रृंगार…प्रत्येक अराधना… भटकी तलाश सब प्रेम के ही कारक हैं जगत का कोई भी कारक नहीं जिसका कर्ता प्रेम न हो…
बेहद अच्छा लगा और अमृता जी की कविता तो है ही उत्कृष्ट!!!

Ankit Mathur said...

जो भी लिखा उत्क्रष्ट कोटि का विष्लेशण
है, इस विषय पर मेरा अपना मानना है
कि "सच्चा प्रेम सिर्फ़ और सिर्फ़ बलिदान एवं
त्याग की भावना के जाग्रत होने के बाद
ही दिखाई देता है" और नारी से प्रेम को
अलग कर के देखा ही नही जा सकता है...

सुनीता शानू said...

वाह रन्जू दी मजा आ गया प्रेम की इतनी सुन्दर परिभाषा... नारी और प्रेम कभी अलग नही हो सकता...इसका बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने और अमृता जी की कविता भी बहुत सुन्दर है...

हाँ मै लौट आई हूँ आप लोगो का प्यार मुझे जाने कहाँ दे रहा था...

सुनीता(शानू)

Anonymous said...

बहुत सुंदर विचार प्रेम और नारी..
जब भी आप के ब्लाग पर आता हूँ.. कुछ नया और खूबसूरत मिलता है..बहुत बहुत बधाई..आपके विचार अति सुंदर.. अपनी कविताओं पर आपकी टिप्पणी का इंतजार है..
कवि कुलवंत http://kavikulwant.blogspot.com

रंजू भाटिया said...

घुघूती बासूती ज़ी बहुत बहुत शुक्रिया ज़ी हन मैने पढ़ा था आपका लिखा हुआ

रंजू भाटिया said...

shukriya sanjeet ji [:)]

रंजू भाटिया said...

shukriya deepak ji ..


shukriya sameer ji ..aapki tipini hame mil gayi :)


shukriya jagjeet ji


bahut bahut shukriya agam ji

रंजू भाटिया said...

प्रेम तो अपने आप में एक साधना है…
पूर्ण अभिव्यक्ति… जो रिक्त है वह भी प्रेम है जो भरा है वह भी प्रेम है… हर जगह हर मोड़ हर श्रृंगार…प्रत्येक अराधना… भटकी तलाश सब प्रेम के ही कारक हैं जगत का कोई भी कारक नहीं जिसका कर्ता प्रेम न हो…


बहुत ही सुंदर बात कही है आपने दिव्याभ बहुत बहुत शुक्रिया आपका

रंजू भाटिया said...

सच्चा प्रेम सिर्फ़ और सिर्फ़ बलिदान एवं
त्याग की भावना के जाग्रत होने के बाद
ही दिखाई देता है" और नारी से प्रेम को
अलग कर के देखा ही नही जा सकता है...


shukriya ankit ji ..bahut sahi baat ki apane [:)]

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया सुनीता ज़ी .आप कहाँ रह पाएगी बिन हमारे .[:)] यही रहे और अपनी कविता की रोशनी बिखेरती रहे :)

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया कवि ज़ी .आपका यहाँ आना बहुत सुखद लगता है ..ज़रूर आपकी रचनाए भी हम पढ़ेंगे

Anonymous said...

respected ranjanaji....
apke vichar behad pasand aae....

hyderabad se murarilal...

cell:02920514968

Anonymous said...

respected ranjanaji....
apke vichar behad pasand aae....

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