Thursday, July 26, 2007

प्यासी है नदिया ख़ुद ही प्यासा ही पानी है


सुख -दुख के दो किनारों से सजी यह जिदंगानी है
हर मोड़ पर मिल रही यहाँ एक नयी कहानी है
कैसी है यह बहती नदिया इस जीवन की
प्यासी है ख़ुद ही और प्यासा ही पानी है

हर पल कुछ पा लेने की आस है
टूट रहा यहाँ हर पल विश्वास है
आँखो में सजे हैं कई ख्वाब अनूठे
चाँद की ज़मीन भी अब अपनी बनानी है
कैसी यह यह प्यास जो बढ़ती ही जवानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद और प्यासा ही पानी है

जीवन की आपा- धापी में अपने हैं छूटे
दो पल प्यार के अब क्यूं लगते हैं झूठे
हर चेहरे पर है झूठी हँसी, झूठी कहानी है
कैसी यह यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद प्यासा ही पानी है

हर तरफ़ बढ़ रहा है यहाँ लालच का अँधियारा
ख़ून के रिश्तो ने ख़ुद अपनो को नकारा
डरा हुआ सा बचपन और भटकी हुई सी जवानी है
कैसी है यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद ही प्यासा ही पानी है

17 comments:

Anil Arya said...

मौजूदा दौर की यही तो जिंदगानी है,
नदिया में रहकर भी प्यासा ही पानी है......

Unknown said...

Zindagi yahi hai ranjana ji sach likhi hai apne...
Thankx...

Mohinder56 said...

रंजना जी,

जिन्दगी एक प्यास है..किसी के लिये शोहरत की, किसी के लिये दौलत की, किसे के लिये इज्जत की........सब हकीकत जानते हैं फ़िर भी आंख चुराते हैं... जाने क्यों

Soul Rising said...

हर एक प्यासा तड़प रहा है,
वन उपवन वो भटक रहा है,
उन श्रोतों के अथक खोज में,
पगडंडी पर वो सरक रहा है,

चहुँ ओरे खोज मैं वापस आया,
प्यासा तो पल पल प्यासा है,
बुझाने को ही प्यास वो अपनी,
जैसे इस दुनिया में आया है,

प्यास मगर बड़ी वो सबसे,
प्रेम में आत्मा भिगोने की,
तृप्त करे वो आत्मा कैसे,
रोटी ने तो बुझा दी पेट की,

एक दिन हो गया जो अंत प्यास का दुनिया से,
रह जाएगा प्यासा इन्सान फिर भी,
प्यास तो फिर भी एक रह जायेगी यहीं,
प्यासे शब्द को फिर से पाने की ॥

Sanjeet Tripathi said...

वाह!!
बहुत खूब रंजना जी!
प्यास के रंगों को खूब उकेरा है आपने!!

Udan Tashtari said...

बढ़िया गीत और उम्दा भाव, बधाई.

Batangad said...

कविता तो मुझे आती नहीं। लेकिन, आज के संदर्भ में आपकी लिखी एक लाइन एकदम सटीक है कि डरा हुआ बचपन है भटकी हुई जवानी है

ख्वाब है अफसाने हक़ीक़त के said...

bahut khoob,ranju ji...Pyaas ko bahut hi khoobsurat shabdo mei bayaan kiya hai...very nice.

Ramesh Kumar Rai said...

Bahut hi acchi kavita aapki lekhani se nikalti hai. Aasha hai aisi kavita bhavisya mai bhi aap se milti rahegi.

loke said...

kaafi achi kavita hai likhi hai aap ne Mera SALAM is kavita ko

kaafi sachai hai is mein

Anonymous said...

Shaharon mein hamaari roj-meraan ki kya uljhi jindagi bun geyi hai…osse aapki yea kavita bulkul saache bhaav se dikhati hai…… Har line mai ek dard bheraa matlab chupaa hai………. And where from these lines came into ur mind : “pyaasi hai nadiyaa khud aur pyaasa hi paani hai”…….. perfect….kya baat hai…
Great poerty……… one of your best poetry…….

डाॅ रामजी गिरि said...

आँखो में सजे हैं कई ख्वाब अनूठे
चाँद की ज़मीन भी अब अपनी बनानी है
-यही जज्बा तो प्यास को जीने की आरज़ू देता है.

Mukesh Garg said...

bahut khooub

Mukesh Garg said...

bahut khooub

Mukesh Garg said...

bhaut khub or bhaw to bahut hi acche lage

good

Divine India said...

इस रचना में आपके कलम की रवानगी अपनी पराकाष्ठा पर जा पहुंची है…।प्रत्येक शब्द एक-2 क्षण बनकर बूंदों में टप-2 कर संगीत पैदा करता झील में रहस्य बनकर खोता चला जारहा है…। अज्ञात से ज्ञात का यह सफर भी आनंदमय रहा…। आपका हार्दिक धन्यवाद करना चाहता हूँ।

Rakesh K Srivastava said...

इसे कह्ते है शब्दो की बाज़ीगरी, बहुत ही उतम. धन्यवाद इस भाव भरी रचना के लिये.