दिन वीराना था ,रात मेरी सुनसान थी
बोझील सी बह रही कुछ हवा भी आज थी
दिल को यह ज़िद थी की तू आ जाए ख्वाबो में
और आँखो में तेरे बिना नींद न आने की आस थी
देर तक आँखो में चुभती रही तारों की रोशनी
न तुम आए न ही मेरे पास ख़वाबों की बारात थी
सुलगता रहा मेरा तन-मन तेरी यादों से
तरस गया दिल तेरे एक झलक को, बस इतनी सी बात थी
बहुत दूर से एक आवाज़ देती रही सदा मुझको
शायद यह मेरी रूठी हुई नींदों की बरसात थी!!
बोझील सी बह रही कुछ हवा भी आज थी
दिल को यह ज़िद थी की तू आ जाए ख्वाबो में
और आँखो में तेरे बिना नींद न आने की आस थी
देर तक आँखो में चुभती रही तारों की रोशनी
न तुम आए न ही मेरे पास ख़वाबों की बारात थी
सुलगता रहा मेरा तन-मन तेरी यादों से
तरस गया दिल तेरे एक झलक को, बस इतनी सी बात थी
बहुत दूर से एक आवाज़ देती रही सदा मुझको
शायद यह मेरी रूठी हुई नींदों की बरसात थी!!
ranju
6 comments:
सीधे-सादे शब्दों में कहूँ तो यह एक प्यारी सी गज़ल है।
यह श़ेर बेहतरीन है,
दिल को यह ज़िद थी की तू आ जाए ख्वाबो में
और आँखो में तेरे बिना नींद न आने की आस थी
now,i must say that u hv started to become a very good explorer of thought..in evry works of urs there is a clear improvement n that to in leaps n bounds!gr8..
bahut achchi ghazal ban padi hai Ranju ji... har bhaaw khil kar saamne aaya.. sach hai jab naa wo paas ho aur unke khwaab bhi rooth jaaye.. tab naa neend aati hai na ye raat suhaati hai.. keep it up..
मैं जब भी अकेली होती हूं.. तुम चुपके से आ जाते हो..और थाम के मेरी बाहों को...बीते दिन याद दिलाते हो
शुक्रिया
पंकज.....
shukriya aditi...
shukriya manya..
shukriya mohinder..
Aati Sunder, Ranju. Bahut sunder rachna hai tumhari, especially,
सुलगता रहा मेरा तन-मन तेरी यादों से
तरस गया दिल तेरे एक झलक को, बस इतनी सी बात थी
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