Thursday, October 10, 2019

सागर और गहराई प्रेम की ( भाग 2 )


प्रेम के रंग भाग 1 से आगे 

जब भी इमरोज़ से मिली अमृता के लिए उनकी नजरों में बेपनाह मोहब्बत देखी ...सच कहूँ तो एक जलन सी हुई ...कि कोई इंसान इस समय में भी किसी से इतना प्यार कैसे कर सकता है ...
प्रेम के सागर को ,
प्रेम की गहराई को ,
प्रेम के लम्हों को ,
कब कोई बाँध पाया है ..
पर इक मीठा सा एहसास ,
दिल के कोने में ..
दस्तक देने लगता है
जब मैं तुम्हारे करीब होती हूँ
कि काश ..
प्यार की हर मुद्रा में
हम खुजराहो की मूरत जैसे
बस वही थम जाए
लम्हे साल ,युग बस
यूँ ही प्यार करते जाए
मूरत दिखे ,अमूर्त सी हर कोण से
और कभी जुदा  होने पाये
काश ..........
बरसो से खड़े इन प्रेम युगल से
हम एक प्रेम चिन्ह बन जाए!!!!

अमृता ही थी जिसने मुझे यह एहसास दिया कि चाँद में   अपने राजन से बाते करना और वही थी जिसने बताया कि पानी का परसना क्या होता है .. ...जिसने मुझे भी प्रेम के इस सुन्दर एहसास से परिचित करवाया ....आधी रोटी पूरे चाँद का सही अर्थो में अर्थ समझाया ....
तेरी हर छुअन के बाद ..
दिल हो जाता है ..
यूँ हरा भरा ..
सुनहरा ...
तेरी ही सुंगंध ..
में डूबा ..
जैसे ....
बरसात के बाद ..
हरी पत्तियां ....
सोनल धूप की छुअन से ,
दिप -दिप सी खिल उठती हैं
और फ़िर सब तरफ़
हरा भरा सा ....
मन हो झूमने लगता है...

शेष अगले भाग में 


1 comment:

Onkar said...

सुंदर प्रस्तुति