Thursday, October 17, 2019

करवाचौथ का चांद 🌜🌝

चाँद कुछ कहता है
आज करवाचौथ का  चाँद है। .इन्तजार करवाता ..प्रेम के एहसास में डूबा हुआ .........आसमान पर निकला चाँद ,हर लिखने वाली की प्रेरणा है ,बचपन में वह बच्चो का मामा है ,और एक कल्पना जिस में बैठी बूढी नानी चरखा कात रही है और वही चाँद जवानी में एक प्रेमी /प्रेमिका कि हर बात को कहने का जरिया ...


चाँद कुछ कहता है
कहा था उसने
चाँदनी रात के साए में
तनिक रुको,
अभी मुड कर आता हूँ मैं ..
तब से
भोर के तारे को
मैंने उसके इन्तजार में
रोक कर रखा है ....

वह इन्तजार कभी खत्म होने पर नहीं आता ...और एक अजब सी उदासी का एहसास शिद्दत से दिल को यह कहने पर मजबूर कर देता है

सितारों के बीच में
तन्हा चाँद
और भी उदास कर जाता है
तब शिद्दत से होता है
एहसास ..
कि
विरह का यह रंग
सिर्फ़ मेरे लिए नही है ....


चाँद हर रोज़ अपने नए रंग रूप में आ कर लुभाता है और हर तरह से किसी भी दिल को कुछ न कुछ कहने पर मजबूर कर जाता है ..हर चाँद का रोमांस अलग है रोमांच अलग है ...

भीगा चाँद
टप टप टपकते मेह सा
सिला सा -अधजगा सा
तन्हाई में लिपटा
धीरे धीरे दस्तक देता रहा
नज़रो से बरसता रहा

अमावस का चाँद
तेरे मेरे मिलन के
बीच ढला
एक न ख़त्म
होने वाला अँधेरा


पूर्णिमा का चाँद
यूँ निकला
तमस के
अंधेरों को चीर कर
जैसे कोई
ख़त तेरे आने की
ख़बर दे जाए ....


और कभी यह लगता है गोल फ़ुटबाल सा ....
चाँद 
यह गोल फुटबाल
को  किसने टांगा
अम्बर पर
कल तो यह
मैदान में
खेलते हुए देखा था


कभी यह एहसास देता है बाहों में बंदी होने का और फिर उस से दूर होने का 

चाँद 
बंदी था कल यही
शाखाओं की बाहों में
फरार हुए कैदी  सा
अब बादलों में छिपता है

कभी कभी दिल करता है कि अपनी बंद मुट्ठी में इस चाँद को बंद कर लूँ और दुनिया को भी बता दूँ
चाँद  की  फितरत 


मुट्ठी
 में भर
छिपा लूँ सारी चाँदनी
बैरी जग को बता दूँ
कि जिसे वो  

दाग़दार समझता है
वो ही चाँद  

उसकी जिंदगी में
शीतल छाँव भरता है..

कभी कभी चाँद जब आपकी खिड़की से झाँकने लगता है तो यूँ लगता है जैसे वह अपन पास बुला कर कुछ कह रहा हो ...तब अनायास ही यह पंक्तियाँ दिल से निकल जाती है

कल रात हुई
इक हौली सी  आहट
झांकी खिड़की से
चाँद की मुस्कराहट
अपनी फैली बाँहों से 
जैसे किया उसने
कुछ अनकहा सा इशारा
मैंने भी न जाने,
क्या सोच कर
बंद किया हर झरोखा
और कहा ,
रुक जाओ....
बहुत सर्द है यहाँ
 ठहरा सहमा है हुआ
हर जज्बात....
शायद तुम्हारे यहाँ होने से
कुछ पिघलने का एहसास
इस उदास दिल को हो जाए
और दे जाए
कुछ धड़कने जीने की
कुछ वजह तो 
अब जीने की बन जाए !!

पर चाँद कहाँ सुनता है वह आता है ,जाता है और अंत में दिल चाँद  की इस शरारत से चाँद को कह उठता है 

कुछ दिन
नभ पर
हमें भी तो
चमकाने दो
जाओ चाँद
तुम छुट्टी पर....

यह करवाचौथ सबके लिए शुभ हो 

5 comments:

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 17 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-10-2019) को   "सबका अटल सुहाग"  (चर्चा अंक- 3492)     पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  
--
अटल सुहाग के पर्व करवा चौथ की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Sweta sinha said...

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

अश्विनी ढुंढाड़ा said...

चाँद जो अपने हर किरदार में खूबसूरत ही है हमेशा से

चाँद जिसके शायद कोई विरोधी नहीं है इस जहान में

चाँद जो प्रेम बरसाता है हर रूप में


खूबसूरत रचना आपकी. शुभकामनाएं

मेरी रचना दुआ  पर स्वागत है आपका

anita _sudhir said...

चाँद के विभिन्न रूप की कल्पना और वार्तालाप दिल को छू गये ,बधाई आ0