Friday, January 25, 2013

रंगोली

समय की आंधी में ,
मिट जाती है.....
लम्हों  की रेत पर
लिखी हुई कहानियाँ,
पर मिटने के डर से
कहाँ थम पाती है यादें
जो बिना किसी रंग के
दिल की गहराई में
रंगोली सी  खिलती रहती है !!

10 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

यादों का संसार रंगीला..सुखमय..

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वाकई .... यादें खिली ही रहती हैं ।

गजेन्द्र कुमार पाटीदार said...

खिलाती रहती है आप कितने रंगों को हम सब के साथ साहित्य संसार के रूप में....साधुवाद

Anju (Anu) Chaudhary said...

खिलती धूप सी रंगोली

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

यादों को याद दिलाती बहुत सुंदर रचना,,,,
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,

recent post: गुलामी का असर,,,

Sunil Kumar Singh said...

क्या खिलती हुई यादों का कोई रंग नहीं होता ?

डॉ. जेन्नी शबनम said...

यादें अपनी निशानी छोड़ जाती हैं, भले मिट जाएँ. सुन्दर रचना, शुभकामनाएँ.

Akhil said...

वाह ...शब्द शब्द सार्थक ...क्या कमाल लिखती हैं आप ...बहुत अछा लगा आपको पढ़ कर।

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा है ... यादें बनी र्तःती हैं हमेशा ... कोई आंधी इसे मिटा नहीं पाती ...