Monday, January 21, 2013

वो किसका नाम था

कुछ गीत  लिखने की कोशिश में
जो भी शब्द हमसे लिखा  गया
वो किसका नाम   था
जो बार बार  यूं लिखा  गया
मांगता  रहा मेरा अक्स
उनसे एक पनाह प्यार की
वो सिर्फ दे कर तस्सली
पास से यूँ ही गुजर गया
बहुत चाह थी कि
छु ले चाँद की पलकों को
पर था वो ख्वाब
जो सुबह होते हो बिखर गया
चाहते थे उसकी गहरी नजरों में डूबना
वो सिर्फ एक लहर बन कर बिखर गया
अपनी हाथो की लक्रीरो में
हमने ना पाया था नाम उनका
फिर भी क्या था उस वजूद में
जो साथ न हो कर भी राह साथ चलता गया ###


9 comments:

Unknown said...

Bahut badhiya...

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह बहुत खूब..नाम रह जायेगा।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

अपनी हाथो की लक्रीरो में
हमने ना पाया था नाम उनका
फिर भी क्या था उस वजूद में
जो साथ न हो कर भी राह साथ चलता गया,,,,

recent post : बस्तर-बाला,,,

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

अपनी हाथो की लक्रीरो में
हमने ना पाया था नाम उनका
फिर भी क्या था उस वजूद में
जो साथ न हो कर भी राह साथ चलता गया,,,

सुंदर भाव अभिव्यक्ति,,,,
recent post : बस्तर-बाला,,,

sourabh sharma said...

छू ले चाँद की पलकों वाला बिंब तो सबसे सुंदर

mridula pradhan said...

behad khoobsurat.....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मन की बेचैनी ..... अनाम के प्रति मन के भाव ।

दिगम्बर नासवा said...

प्रेम का वजूद ऐसा ही होता है ... सपना बिखरने पे भी साथ रहता है ...
खूबसूरत पल ...

Darshan Darvesh said...

बहुत खूबसूरत .. !