Wednesday, October 12, 2022

करवाचौथ और अमृता प्रीतम


 



मैं पल भर भी नही सोयी ,घड़ी भर भी नही सोयी 

और रात मेरी आँख से गुजरती रही 

मेरे इश्क के बदन में ,जाने कितनी सुइयां उतर गई हैं ..


कहीं उनका पार नही पड़ता 

आज धरती की छाया आई थी 

कुछ मुहं जुठाने को लायी थी 

और व्रत के रहस्य कहती रही 


तूने चरखे को नही छूना 

चक्की को नही छूना 

कहीं सुइयां निकालने की बारी न खो जाए .


पूरी नज़्म और रोचक करवाचौथ की बातें यहां इस चैनल पर सुनिए ,लाइक और सब्सक्राइब जरूर कीजिए।



करवाचौथ और अमृता प्रीतम

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-10-2022) को   "प्रीतम को तू भा जाना"   (चर्चा अंक-4582)   पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

Anita said...

बहुत सुंदर कहानी और वाचन

Abhilasha said...

बहुत ही सुन्दर

अनीता सैनी said...

पढ़वाने हेतु हार्दिक आभार। सराहनीय सृजन।