Friday, July 22, 2022

गिरह दिल की

 


36 चक (नागमणि)



दिल की गिरह 


सुबह की पहली किरण सी 

मैं न जाने ,कितनी उमंगें 

और सपनों के रंग ले कर 

तुमसे बतियाने आई थी ...


लम्हे .पल सब बीत गए 

मिले बैठे मुस्कराए हम दोनों ही 

पर चाह कर भी कुछ कह न पाये 


बीते जितने पल वह 

बीते कुछ रीते कुछ अनकहे 

भीतर ही भीतर 

रिसते रहे छलकते रहे 

चुप्पी के बोल   

इस दिल से उस दिल की 

गिरह पड़ी...

 राह को खोजते रहे ..

#ranju

3 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ये खामोशी भी न जाने कितना अनकहा कह जाती है ।लेकिन फिर भी गिरह नहीं खुलती ।

मन की वीणा said...

गिरह पड़ी राह पर चलना मुश्किल ही है।
बहुत सुंदर सृजन।

दीपक कुमार भानरे said...

जी सुंदर सृजन ।