Saturday, October 26, 2019

तुम ही तो हो ( प्रेम के रंग 3)

रंग प्रेम के भाग 3 


एक बार किसी ने मुझसे पूछा आखिर आपको किन किताबों ने बिगाड़ा और मैंने बहुत गर्व से कहा अमृता के लिखे ने ...असलियत में कोई इमरोज़ नहीं मिलता क्यों कि इमरोज़ तो एक ही था ,जिसने न उम्र को देखा न ही अमृता के अतीत को ..बस अमृता के साथ रहा एक लोकगीत की तरह जिसका मीठा स्वर आज भी रूह को मीठा सा एहसास देता है अपने रंगों से प्रेम का सही उजाला दिखा देता है |एक ऐसा प्रेम जिसमे आई लव यु कहने की जरूरत नहीं होती शब्द सिर्फ ख़ामोशी से अपनी बात कहते हैं और एक दूसरे को सम्पूर्ण कर जातें हैं 

यूँ जब अपनी पलकें उठा के
तुम देखती हो मेरी तरफ़
मैं जानता हूँ
कि तुम्हारी आँखें
पढ़ रही होती हैं
मेरे उस अंतर्मन को
जो मेरा ही अनदेखा
मेरा ही अनकहा है

अपनी मुस्कराहट से
जो देती हो मेरे सन्नाटे को
हर पल नया अर्थ
और मन की गहरी वादियों में
चुपके से खिला देती हो
आशा से चमकते
सितारों की रौशनी को
मैं जानता हूँ कि
यह सपना मेरा ही बुना हुआ है

पूर्ण करती हो मेरे अस्तित्व को
छाई सर्दी की पहली धूप की तरह
भर देती हो मेरे सूनेपन को
अपने साये से फैले वट वृक्ष की तरह
सम्हो लेती हो अपने सम्मोहन से
मैं जानता हूँ कि
यही सब मेरे साँस लेने की वजह है

तुम जो हो ....
एक अदा.....
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग-संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तेरे हर अक्स में रचा बसा है !!

शेष अगले भाग में 

2 comments:

JP Hans said...

अपनी मुस्कराहट से
जो देती हो मेरे सन्नाटे को
हर पल नया अर्थ
और मन की गहरी वादियों में
चुपके से खिला देती हो
आशा से चमकते
सितारों की रौशनी को
मैं जानता हूँ कि
यह सपना मेरा ही बुना हुआ है
प्रेम की खुबसुरत अभिव्यक्ति ।

JP Hans said...

अपनी मुस्कराहट से
जो देती हो मेरे सन्नाटे को
हर पल नया अर्थ
और मन की गहरी वादियों में
चुपके से खिला देती हो
आशा से चमकते
सितारों की रौशनी को
मैं जानता हूँ कि
यह सपना मेरा ही बुना हुआ है
प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति ।