Thursday, September 12, 2019

आग के अक्षर ( हरकीरत हीर) पुस्तक समीक्षा (क्षणिका संग्रह)

मुझे आज ही हीर जी किताब "आग के अक्षर " मिली । मैंने उनको मेसज किया कि ,किताब तो मुझे मिल गयी है , पर कुछ अस्वस्थ और कुछ निजी व्यवस्ता के कारण मैं इसको बाद में पढूंगी और इस पर  भी आपके भेजे "हर संग्रह "की तरह इस पर लिखूंगी भी जरूर । फिर मैंने यूँ  ही पन्ने पलटते हुए जो सबसे पहले क्षणिका पढ़ी वह थी "उडारी " पढ़ कर मेरी आँखें नम हो गयी । फिर तो पन्ना दर पन्ना पढ़ती गयी और आंखे कभी भीगी कभी कुछ पढ़ कर दिल को सकून मिला ।
       कई सारे अक्षर
    रखे हुए थे धूनी के आगे
    मैंने आग के अक्षर
     चुन लिए ...!!

     जो दिल से किताबें पढ़ते है वो जानते है कि किताबें उनसे उनकी रूह से बातें करती हैं। मेरे लिए "हरकीरत हीर "जी की हर किताब ऐसी ही महसूस होती है । उनमें लिखे हर शब्द में जैसे लगता है कि मैं और उनकी किताब "दो सहेली" की तरह आपस मे दुख सुख बांट रही हैं । मैं ही क्यों जिन लोगों ने भी ज़िन्दगी को हर रंग में करीब से महसूस किया है वह उनकी लिखो नज्मों ,क्षणिकाओं को पढ़ कर जैसे और भी ज़िन्दगी के उन एहसासों को जी लेता है ,जैसे यह उसके मन की बात हो । 
  मुझे उनकी किताब जो इस बार क्षणिकाओं पर है ,"आग की बात " वह एक बेमिसाल किताब लगी । वैसे तो उनके लिखे सभी संग्रह संजों कर रखने लायक हैं । जो कभी भी पढ़ो हर बार नए अर्थ दे जाते हैं। पर आग के यह अक्षर उन तमाम स्त्री जाति की कलम के नाम है जो अपनी कलम से ज़िन्दगी के उन पहलुओं से लड़ने का हौंसला रखती है । इस संग्रह में स्त्री के दिल की सभी भावनाएं लिखीं है उनकी कलम ने ,चाहे वह दर्द हो ,चाहे प्रेम के रूप ,या वो घुटन जो एक औरत के अंदर घुटती हुई दम तोड़ती रहती है । 
  हीर जी के लिखे में अमृता प्रीतम की छवि अक्सर नज़र आ जाती है । जैसे उनके बाद लिखने की कड़ी को वह आगे बढ़ा कर लिख रही हों । इस संग्रह में सभी क्षणिकाएं बेमिसाल है। पर कुछ क्षणिकाओं के पढ़ते ही आंखे नम हो गयी । जैसा कि मैंने लिखा कि किताब पढ़ना वही सार्थक है जिस से आप जुड़ जाओ या आपको लगे कि यह बात तो मैं भी कहना चाहती हूं पर मेरे पास उन भवानाओं को व्यक्त करने के लिए उचित शब्द नहीं है । जैसे कि यह 
गूंगे नहीं है 
शब्द मेरे 
बस इसलिए मौन रहे ताउम्र
क्योंकि विदा करते वक़्त 
माँ ने 
सिल दिए थे होंठ मेरे ....

वक़्त आज भी उसी तरह से कई  औरतों की ज़िंदगी मे खड़ा है जैसे कई सदी पहले था। चाहे आज हम चाँद पर पहुंचने का दावा कर लें । माँ से होंठ सिले जाने की दुहाई है तो दूसरी एक क्षणिका उडारी में बाबुल से कितनी सच्चाई से उन उस दर्द को व्यक्त कर दिया है जहां एक लड़की अक्सर बेबस हो जाती है । 
तेरे घर से 
विदा होते वक़्त 
छोड़े जा रही हूं मैं अपने पंख 
बाबुला.... 
जो कभी बुलाओ तो याद रखना 
अब नहीं होगी मेरे पास 
पंखों की उडारी.....
कैसे इस को पढ़ कर आंखे नम न होंगी। चाहे आज नारी आज़ाद होने के दावे करे पर फिर भी अधिकांश इन्ही दो हालातों से अभी भी गुजर रहीं हैं। एक स्त्री अपना पूरा जीवन घर ,और उनके सदस्यों को संवारने में लगा देती है । और बदले में वह सिर्फ प्रेम और सम्मान चाहती है । पर इस समाज की ईगो इतनी बड़ी होती है कि वह भी उसको देने में कंजूसी कर देता है । 
कुछ न चाहा था 
बस चाही थी ज़रा सी मुहब्बत
इक ज़रा सा सम्मान
जरा सी छत...
बदले में मंजूर था 
ताउम्र तुम्हारी हुकूमत
की कैद ...

पर अफसोस वही सम्मान और प्रेम उसको या तो मिलता ही नहीं या एहसान के साथ मिलता है। 
    हीर जी के लेखन में एक बहुत खास बात है कि उनके लिखे शब्द जब भी अपनी बात कहते हैं वह उस लिखे के प्रयोजन को स्पष्ट कर देते हैं । फिर चाहे वह आक्रोश हो चाहे प्रेम या नारी  के अस्तित्व की बात । बहुत ही गहरे अर्थ में वह चुपके से अपनी बात कहती आपके दिल मे घर कर जाती हैं। 
उसने कहा
चुप रहो तुम
मैंने सी लिए अपने होंठ
अब तुम ही कहो
इन सुलगते अक्षरों को
कागज़ पर न रखूँ
तो कहाँ रखूँ...??

गहरे असर के साथ लिखी इन पक्तियों में आक्रोश भी है और अपने दिल की बात भी । इस संग्रह में जो उन्होंने प्रेम पर लिखा है वह सीधे दिल में उतर जाने वाला है । 
ये कौन
दे गया दस्तक
बरसों से बन्द दरवाज़े पे
कि ज़िन्दगी...
मुहब्बत के पैरहन 
सीने लगी है....
प्रेम ,  नारी अस्तित्व ,  सामाजिक विषय , आज कल के धर्म के हालात , और हमारे आसपास घटने वाली सभी घटनाएं उनके इस संग्रह में बखूबी से लिखी गयी है। छोटी छोटी यह क्षणिकाएं ज़िन्दगी के हर पहलू से रूबरू करवा देती हैं । 
मेरे अपने ख्याल से हर उस इंसान को जो किताबों से खासकर इस क्षणिका विधा से प्रेम करता है इस संग्रह को जरूर पढ़ें । 
अयन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह संग्रह आप जरूर पढ़ें 
क्योंकि 
ये नज्में...
उम्मीद हैं....
दास्तां है....
दर्द हैं....
हंसीं है....
सजदा हैं....
दीन हैं....
मज़हब है....
ईमान हैं...
खुदा....
और 
मोहब्बत का जाम भी हैं!!
 
क्षणिका संग्रह
लेखिका  - हरकीरत हीर
आग के अक्षर 
अयन प्रकाशन
मूल्य 400 rs 

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