अमृता के लिखे ने हमेशा आम इंसान की भावनाओं ,वहां के माहौल को इस तरह से अपनी कलम से लिखा है कि हर किसी को वह अपने ही घर की .... कहानी लगती है ...वह परिवार मध्यवर्गी हो या चाहे निम्न मध्यवर्गीय हर किसी को उस में अपना ही अक्स नजर आता है ...उनके उपन्यास "एक खाली जगह "से आज की कड़ी के लिए कुछ पंक्तियाँ .जिनको मैंने कई बार पढा और हर बार मुझे उस में एक नया अर्थ मिला ... निम्न मध्य श्रेणी के घरों की एक ख़ास गंध होती है ,चारपाइयों के नीचे रखे हुए ट्रंकों में और तीन के डिब्बे की तरह हर समय घर में छिप कर बैठी रहती है और कीलों पर लटकते हुए मटमैले कपडों में ,राम कृष्ण के और हनुमान के कैलेंडरों कीतरह घर की दीवारों को हथिया कर निशुन्क खड़ी हुई भी ...
एक सुख ,सिर्फ एक तरफा ,विचार की गुलामी का सुख होता है ,जहाँ सब कुछ इकहरा होता है ,रिश्ते का रथ भी इकहरा .और इंसान के अस्तित्व का अर्थ भी इकहरा ..कोई भी रिश्ता जब बाहरी चीजों के सहारे खडा होता है जैसे मजहब के दौलत के या बने बनाये कानून के सहारे उसको कभी मन की पीडा का वरदान नहीं मिलता है .गुलामी का सुख मिलता है पर स्वंत्रता की पीडा नहीं मिलती ..
हर लड़की विवाह की पहली रात जिस कमरे में दाखिल होती है ,कभी उस कमरे का मालिक उसके स्वागत के लिए वहां नहीं होता है .और वह लड़की एक अपरिचित कमरे में एक दखलंदाजी की तरह कदम रखती है ..
शायद जिस समय जिस्म की आग जलती है ,तब सिर्फ आग के जलने की होती है ,और किसी चीज की नहीं और शायद तब सब कुछ उस में भस्म हो जाता है ..
कुछ विचार केवल गंध के समान होते हैं जिन्हें हाथ से पकड़ कर किसी को दिखाया नहीं जा सकता है हर समय होते भी नहीं मेह की बूंद पड़ते ही स्वयं आ जाते हैं ।घरों के कोनों में गुच्छा से हो कर बैठ जाते हैं और फ़िर धूप के समय न जाने कहाँ चले जाते हैं ....
कुछ फूल किसी कब्र पर चढ़ने के लिए उगते हैं ----शायद मैं भी !
हवन की अग्नि हाथ में एक रिश्ता थमा सकती है ,पर उसकी लौ मन के अँधेरे कोनों तक कभी पहुँच नहीं पाती और वे कोने किसी भी रिश्ते की हद से बाहर रह जाते हैं ..
कोई ऐसी खबर भी सच्ची हो सकती है ,जो अखबार के बाहर रह जाए ...इंसान के मन को अखबार की तरह साधारण आँखों से नहीं पढा जा सकता है ..
उपन्यास एक खाली जगह से ली गयीं यह पंक्तियाँ घर ,रिश्ते की नाजुकता का उसी बखूबी से ब्यान करते हैं जितना ज़िन्दगी खुद सच से रूबरू होती है .....
एक सुख ,सिर्फ एक तरफा ,विचार की गुलामी का सुख होता है ,जहाँ सब कुछ इकहरा होता है ,रिश्ते का रथ भी इकहरा .और इंसान के अस्तित्व का अर्थ भी इकहरा ..कोई भी रिश्ता जब बाहरी चीजों के सहारे खडा होता है जैसे मजहब के दौलत के या बने बनाये कानून के सहारे उसको कभी मन की पीडा का वरदान नहीं मिलता है .गुलामी का सुख मिलता है पर स्वंत्रता की पीडा नहीं मिलती ..
हर लड़की विवाह की पहली रात जिस कमरे में दाखिल होती है ,कभी उस कमरे का मालिक उसके स्वागत के लिए वहां नहीं होता है .और वह लड़की एक अपरिचित कमरे में एक दखलंदाजी की तरह कदम रखती है ..
शायद जिस समय जिस्म की आग जलती है ,तब सिर्फ आग के जलने की होती है ,और किसी चीज की नहीं और शायद तब सब कुछ उस में भस्म हो जाता है ..
कुछ विचार केवल गंध के समान होते हैं जिन्हें हाथ से पकड़ कर किसी को दिखाया नहीं जा सकता है हर समय होते भी नहीं मेह की बूंद पड़ते ही स्वयं आ जाते हैं ।घरों के कोनों में गुच्छा से हो कर बैठ जाते हैं और फ़िर धूप के समय न जाने कहाँ चले जाते हैं ....
कुछ फूल किसी कब्र पर चढ़ने के लिए उगते हैं ----शायद मैं भी !
हवन की अग्नि हाथ में एक रिश्ता थमा सकती है ,पर उसकी लौ मन के अँधेरे कोनों तक कभी पहुँच नहीं पाती और वे कोने किसी भी रिश्ते की हद से बाहर रह जाते हैं ..
कोई ऐसी खबर भी सच्ची हो सकती है ,जो अखबार के बाहर रह जाए ...इंसान के मन को अखबार की तरह साधारण आँखों से नहीं पढा जा सकता है ..
उपन्यास एक खाली जगह से ली गयीं यह पंक्तियाँ घर ,रिश्ते की नाजुकता का उसी बखूबी से ब्यान करते हैं जितना ज़िन्दगी खुद सच से रूबरू होती है .....
2 comments:
बढ़िया...
बहुत खूब
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