खोई खोई उदास सी है
मेरी ज़िंदगी की रात
दर्द की चादर ओढ़ कर
याद करती हूँ तेरी हर बात
तुम बिन
ना जीती हूँ ना मरती हूँ मैं
होंठो पर रहती है
हर पल तुमसे मिलने की फ़रियाद
बहुत उदास सी है मेरी ज़िंदगी की रात
रूठ गए मेरे अपने
टूट गये सब मेरे सपने
तुम्ही से तो थी मेरी ज़िंदगी में बहार
तुम थे तो था मुझे अपनी ज़िंदगी से प्यार
सजते थे तुम्ही से मेरे सोलह सिंगार
अब तो याद आती है बस तेरी हर बात
बहुत उदास सी है मेरी ज़िंदगी की रात
अब तो अपनी छाया से भी डरती हूँ मैं
तुम्ही बताओ अपने तन्हइयो से कैसे लड़ूं मैं
ले गये तुम साथ अपने मेरी हर बात
बहुत उदास तन्हा सी है मेरी ज़िंदगी की रात
मेरी ज़िंदगी की रात
दर्द की चादर ओढ़ कर
याद करती हूँ तेरी हर बात
तुम बिन
ना जीती हूँ ना मरती हूँ मैं
होंठो पर रहती है
हर पल तुमसे मिलने की फ़रियाद
बहुत उदास सी है मेरी ज़िंदगी की रात
रूठ गए मेरे अपने
टूट गये सब मेरे सपने
तुम्ही से तो थी मेरी ज़िंदगी में बहार
तुम थे तो था मुझे अपनी ज़िंदगी से प्यार
सजते थे तुम्ही से मेरे सोलह सिंगार
अब तो याद आती है बस तेरी हर बात
बहुत उदास सी है मेरी ज़िंदगी की रात
अब तो अपनी छाया से भी डरती हूँ मैं
तुम्ही बताओ अपने तन्हइयो से कैसे लड़ूं मैं
ले गये तुम साथ अपने मेरी हर बात
बहुत उदास तन्हा सी है मेरी ज़िंदगी की रात
5 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ब्लॉग बुलेटिन: प्रधानमंत्री जी के नाम एक दुखियारी भैंस का खुला ख़त , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सुन्दर प्रस्तुति , बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://madan-saxena.blogspot.in/
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विरह के पल ऐसे ही होते हैं. मन से निकले उदगार.
बहुत सुंदर.
सुंदर भाव अभिव्यक्ति
सच है पिया बिन सब सूना सूना,
काटन दौडे घर और अंगना।
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