Monday, August 26, 2013

किनारे

तुम कहते हो
"यह नहीं होगा "
मैं कहती हूँ 
"वो नहीं होगा "
जिदों की दीवारों से टकराते हैं 
हम दोनों के "अहम् .."
कब तक खुद को 
यूँ ही झुलझाए जलाएं 
चलो एक फैसला कर लें 
अपने अपने वजूद की तलाश में 
इस ज़िन्दगी के 
दो जुदा किनारे ढूंढ़  लें !!

आज का आस पास का माहौल बस कुछ यह है कहता दिखता  है ..और ज़िन्दगी मिल कर फिर नदी के दो किनारों सी बहती चली जाती है ..


7 comments:

yashoda Agrawal said...

आपने लिखा....
हमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 28/08/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in उमड़ते आते हैं शाम के साये........आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी है...बुधवारीय हलचल ....पर लिंक की जाएगी. आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

प्रवीण पाण्डेय said...

सबके अपने विश्व, सबकी अपनी उड़ानें।

ANULATA RAJ NAIR said...

हम बन जाएँ तो अहम् भाग जाए..
एक दम सच बात कही....
टाइपिंग की गलती ठीक कर लीजिये रंजू-"झुलसायें"

सस्नेह
अनु

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर रचना,,

RECENT POST : पाँच( दोहे )

Arvind Mishra said...

किनारों को भी लहरें पास ले आती हैं कभी कभी

Anju (Anu) Chaudhary said...

अहम् कभी अपनों को करीब नहीं आने देता

Madan Mohan Saxena said...

बहुत खूब ,
कभी यहाँ भी पधारें