तुम कहते हो
"यह नहीं होगा "
मैं कहती हूँ
"वो नहीं होगा "
जिदों की दीवारों से टकराते हैं
हम दोनों के "अहम् .."
कब तक खुद को
यूँ ही झुलझाए जलाएं
चलो एक फैसला कर लें
अपने अपने वजूद की तलाश में
इस ज़िन्दगी के
दो जुदा किनारे ढूंढ़ लें !!
आज का आस पास का माहौल बस कुछ यह है कहता दिखता है ..और ज़िन्दगी मिल कर फिर नदी के दो किनारों सी बहती चली जाती है ..
7 comments:
आपने लिखा....
हमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 28/08/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in उमड़ते आते हैं शाम के साये........आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी है...बुधवारीय हलचल ....पर लिंक की जाएगी. आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
सबके अपने विश्व, सबकी अपनी उड़ानें।
हम बन जाएँ तो अहम् भाग जाए..
एक दम सच बात कही....
टाइपिंग की गलती ठीक कर लीजिये रंजू-"झुलसायें"
सस्नेह
अनु
बहुत सुंदर रचना,,
RECENT POST : पाँच( दोहे )
किनारों को भी लहरें पास ले आती हैं कभी कभी
अहम् कभी अपनों को करीब नहीं आने देता
बहुत खूब ,
कभी यहाँ भी पधारें
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