बदल गयी है सभी प्रथाएं
बदली बदली सी सभी निगाहें
उगने लगी है अब अन्याय की खेती
मुट्ठी में बस रह गयी है रेती
पर यह जीवन तब भी चलेगा
लिखा वक़्त का कैसा ट्लेगा
खो गये सब गीत बारहमासी
ख़्यालो में रह गये अब पुनू -ससी
अर्थ खो रही हैं सब बाते
सरगम के स्वर अब ना रिझाते
पर यह जीवन कैसे रुकेगा
लिखा वक़्त का हो के रहेगा
लोकतंत्र बीमार यहाँ है
जनमानस सहमा खड़ा है
मूक चेतना ठिठुर गयी है
चिरपरिचित भी अब अनजान मिलेगा
पर यह जीवन यूँ ही चलेगा
हर रंग में ढल के बहेगा
हरी धरती अब बंजर हुई है
अधरो की प्यास सहरा हुई है
सूखी शाखो पर फूल कैसे खिलेगा
यह पतझर अब कैसे वसंत बनेगा
पर यह जीवन यूँ ही चलेगा
लिखा वक़्त का कैसे ट्लेगा
माया के मोह में बँधा है जीवन
हर श्वास हुई यहाँ बंजारिन
जीना यहाँ बना है एक भ्रम
आँखो का सुख गया ग़ीलापन
पर भावों का गीत यह दिल फिर भी बुनेगा
यह जीवन यूँ ही चला है ,
चलता रहेगा
बदली बदली सी सभी निगाहें
उगने लगी है अब अन्याय की खेती
मुट्ठी में बस रह गयी है रेती
पर यह जीवन तब भी चलेगा
लिखा वक़्त का कैसा ट्लेगा
खो गये सब गीत बारहमासी
ख़्यालो में रह गये अब पुनू -ससी
अर्थ खो रही हैं सब बाते
सरगम के स्वर अब ना रिझाते
पर यह जीवन कैसे रुकेगा
लिखा वक़्त का हो के रहेगा
लोकतंत्र बीमार यहाँ है
जनमानस सहमा खड़ा है
मूक चेतना ठिठुर गयी है
चिरपरिचित भी अब अनजान मिलेगा
पर यह जीवन यूँ ही चलेगा
हर रंग में ढल के बहेगा
हरी धरती अब बंजर हुई है
अधरो की प्यास सहरा हुई है
सूखी शाखो पर फूल कैसे खिलेगा
यह पतझर अब कैसे वसंत बनेगा
पर यह जीवन यूँ ही चलेगा
लिखा वक़्त का कैसे ट्लेगा
माया के मोह में बँधा है जीवन
हर श्वास हुई यहाँ बंजारिन
जीना यहाँ बना है एक भ्रम
आँखो का सुख गया ग़ीलापन
पर भावों का गीत यह दिल फिर भी
यह जीवन यूँ ही चला है ,
चलता रहेगा
6 comments:
जीवन जब तक है चलता ही रहता है.....
चाहे जो हो...
बहुत सुन्दर रचना..
अनु
सही बात है, जीवन यूं ही अनवरत चलता ही रहता है ....
सही लिखा ...जीवन यूँ ही निरंतर चलता रहेगा
बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......
लोकतंत्र बीमार यहाँ है
जनमानस सहमा खड़ा है
मूक चेतना ठिठुर गयी है
चिरपरिचित भी अब अनजान मिलेगा ..
आज के समय को बाँधने की कोशिश है शब्दों में .... सच लिखा है ...
बहते रहना प्रकृति कार्य है
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