Saturday, May 12, 2012

शाहजांह वर्सिस मायावती


बहुत पहले साहिर ने लिखा ...एक बादशाह ने बना के हसीं ताजमहल..
दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है...|| 
और यह ताजमहल वाकई  दुनिया में प्रेम का प्रतीक  बन  गया है आगरा कई बार जाना हुआ है और हर बार ताजमहल  के साथ साथ आगरा शहर को भी देखा है पर वह वही जहाँ जैसे बना था वैसे ही  थमा  हुआ है न कोई  तरक्की ,न कोई नया  हाँ बस ताजमहल के आसपास  कुछ साफ़ नए माल कोफी डे या मेक्डोनाल्ड .पिज्जा  हट दिखाए दिए है ....यानी जो शाहजांह ने किया वही पूर्व मुख्यमंत्री जी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी ...
अब  एक  तुलना मायावती वार्सिज शाहजहाँ  के बनाए महलों की करते है ....

शाहजांह ने अपनी तीसरी बेगम मुमताज़ की आखिरी ख्वाहिश, कि उसकी मौत के बाद कोई ऐसी यादगार निशानी बनवाई जाये जिससे उसे पूरी दुनिया याद रखे..इस को पूरा करने के लिए मुमताज़ की मौत के बाद, एक ऐसा मकबरा बनवाना शुरू किया १६३१ में ... जिसे बनाने में २०००० मजदूरों को 22 साल लगे.. और इसमें उस समय के हिसाब से ३२ करोड़ रूपये का खर्च हुआ..जो कि आज के दौर में लगभग ५० बिलियन रुपये होते है.. (http://wiki.answers.com/Q/How_much_did_the_Taj_Mahal_cost_to_build).  ताजमहल को बनाने में उस समय शाहजहाँ ने अपना सारा खजाना खाली कर दिया..जिसके नतीजे में उसके बाद औरंगजेब को ज्यादा टेक्स लगाने पड़े...इतना पैसा, समय और मजदूरी खर्च करने के बाद शाहजहाँ ने हमें एक बेश-कीमती तोहफा दिया.. जो मुग़ल कला का उत्कृष्ट उदहारण है... और दुनिया के सात अजूबो में शुमार होता है.. इसकी वजह से हमारे देश में हर साल लाखो विदेशी लोग आते है... जिससे हमारी इकोनोमी को भी मदद मिल रही है...और सारी दुनिया में ताजमहल की वजह से नाम भी है देश का...

         अब जो मायावती  ने महल बनवाया उस पर एक नजर .......
पूर्व मुख्यमंत्री ने यू पी में बना कर हर जगह बुत और हाथी 
सारी दुनिया को खुद पर हंसने की वजह दी है ....और यू पी में रहने वालों को रोने की ..

पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अपने कार्यकाल में अपने सरकारी बंगलों पर पानी के तरह पैसे बहाये. दो सौ करोड़ से ऊपर महज मरम्मत और देखरेख में खर्च कर दिये.  उन्होंने  अपने बंगले के नवीनीकरण पर लगभग 86 करोड़ रुपये खर्च किए।मायावती ने खिडकियों में बुलेटप्रूफ शीशे लगवाये हैं। एक शीशे की कीमत 15 लाख रपये तक है। बंगले में पिंक मार्बल, मायावती और काशीराम की मूर्तियां, हाथी की पांच मूर्तियां, दो मंजिला गेस्ट हाउस और वातानुकूलित 14 बेडरूम हैं। इस गलियारे के बाहर एक बरामदा बना है, जिसमें बुलेटप्रूफ शीशे से युक्त दो खिड़कियां लगायी गयी हैं। इनमें से हर खिड़की की कीमत करीब 15 लाख रुपए है। इन खिड़कियों को खासतौर पर चंडीगढ़ में डिजाइन  किया गया था।
बंगले में ही 14 शयनकक्षों से युक्त दो मंजिला आलीशान अतिथि गृह भी बनवाया गया है, जिसमें गुलाबी इतालवी संगमरमर का फर्श है। परिसर में मायावती और बसपा संस्थापक कांशीराम की 20-20 फुट की दो प्रतिमाएं भी लगी हैं।अपनी सुरक्षा के प्रति खासी चिंतित रहने वाली मायावती के इस बंगले में हिफाजत के भी पुख्ता बंदोबस्त हैं। बंगले की चहारदीवारी के चारों तरफ कंटीले तार बांधे गये हैं और हर आने-जाने वाले पर पैनी नजर रखने के लिये क्लोज सर्किट टेलीविजन का पूरा संजाल लगाया गया है।राजकोष से 86 करोड़ रुपए से ज्यादा की धनराशि खर्च की है।
  
और उसके इस महल को कौन देखने आने वाला है जिस से देश में आने वाले पर्यटक  को दिखा कर पैसा वसूल कर सके .इतने हाथी इतनी मूर्तियाँ उसने जो बनायी है उसकी बजाय यदि उसने एक  हिस्सा भी इस  पर्यटक नगरी पर खर्च किया होता तो आज आगरा की तस्वीर  ताजमहल सी सुन्दर होती  दुनिया के सात बड़े आश्चर्यों .मैं से एक इस ताजमहल और इस शहर में घूमते  विदेशी पर्यटकों को ताजमहल ,फतेहपुर सीकरी के साथ साथ आगरा की सड़कों पर उसके किनारों पर फैली हुई गंदगी को भी निहारते हुए देखा ...दुनिया के सात अजूबों में शामिल इस शहर की हालत इस कदर गंदगी से भरी हुई है ..कि देख कर ऐसा लगता है कि   ताजमहल की सुन्दरता को कहीं नजर न लगे इस लिए यहाँ पर इस तरह बदहाली और गन्दगी को फैला रखा है 
पढ़ा है कि  जिस समय शाहजहाँ ताजमहल बनवा रहा था.. उस समय यूरोप में ऑक्सफोर्ड, केम्ब्रिज और इम्पेरिअल कॉलेज की नीवं रखी जा रखी जा रही थी.. या वो काफी हद तक आगे पहुँच चुके थे...क्यूँ शाहजहाँ के दिमाग में ये नहीं आया.. या उसके सलाहकारों ने उसे ये मशवरा नहीं दिया कि मुमताज़ का नाम, उसके लिए एक अच्छा पढाई का केंद्र बना के भी किया जा सकता है...चलो उसने फिर देश में एक नाम करने का मौका तो दिया और जो बना दिया गया वह भी यादगार है दुनिया के लिए ..पर मायवती जो गरीबों की मसीहा कही जाती है उनको उसी बदहाली में छोड़ कर अपना महल सजाने में लगी थी .उसने भी नहीं सोचा कि  गरीब जनता के पास  पीने का पानी और खाने को रोटी नहीं रहने को मकान नहीं है वह पूरी करे खुद को नोटों के हार और खुद के महल सजाने की बजाय ..और बाकी बुनयादी जरूरते तो बाद में आती है ..विज्ञापनों में अपनी तरक्की खूब दिखाई है आपने कार्यकाल में मायावती ने जो असलियत में कहीं नजर नहीं आई ..सुनने में आया है कि  लखनऊ शहर पहले से अधिक खूबसूरत  हुआ है ..देखेंगे वह भी एक दिन जा कर पर इस आगरा शहर को उसके नाम के मुताबिक सजाने की संवारने की जरूरत है पहले ताकि आने वाला पर्यटक जो अपने देश में रह कर इसके बारे में पढता है वह असलियत में भी देखे . 

गरीब जनता के पैसों से महल बनवाने के इन महलों को देख कर यह पंक्तियाँ भी याद आई की ...

ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़
इक शहनशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे!
यह मशहूर पंक्तियाँ है साहिर जी की जो उन्होंने ताजमहल को देख कर कही थी ..
और मुझे आगरा शहर और ताजमहल देख कर यह  पंक्तियाँ सूझी ..
यह गंदगी के ढेर 
यह बिखरे हुए बेतरतीब से कूड़े के निशाँ 
तलाश करती उस  ढेर में 
ज़िन्दगी को गाय और इंसान की आँखे 
उफ्फ्फ यह मंजर बहुत करता है परेशान 
ऐ मेरे देश में आने वाले पर्यटक 
बस मेरी खूबसूरती को देख 
अपने दिल की नजर से .... 

{आकंड़ों की जानकारी गूगल के सोजन्य से } 

15 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मायवती जो गरीबों की मसीहा कही जाती है उनको उसी बदहाली में छोड़ कर अपना महल सजाने में लगी थी .उसने भी नहीं सोचा कि गरीब जनता के पास पीने का पानी और खाने को रोटी नहीं रहने को मकान नहीं है,..काश ये पैसा गरीबों के हित में लगाती,..तो शायद फिर से सी० एम० बन जाती.......

Maheshwari kaneri said...

वाह: बहुत सही.. तुलना मायावती वार्सिज शाहजहाँ..

Kailash Sharma said...

जनता का धन किस तरह बरबाद किया जाता है, मायावती इसका ज्वलंत उदाहरण है. बहुत सार्थक आलेख..

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

महतारी दिवस की बधाई

प्रवीण पाण्डेय said...

सबके अपने अपने ताजमहल..

udaya veer singh said...

एक शेर आपकी नजर ,गुस्ताखी मुआफ़---

ताज के लिए रोया नहीं कौन,शाह भी आवाम भी ,
एक मजदूरी के लिए ,एक आशिकी के लिए -

वन्दना अवस्थी दुबे said...

माया की माया अपरम्पार है :)

वन्दना अवस्थी दुबे said...

टिप्पणी तो गायब हो गयी रंजना जी :(

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बहुत सही तुलना ..:)

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

निर्झर'नीर said...

बेहतरीन प्रस्तुति....

सदा said...

बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ... आभार ।

दिगम्बर नासवा said...

कलम की तीखी धार का रुख कौन है ... माया या शाहजहां ... खेल तो दोनों ने खेला .. जनता के पैसे और नाम पे खेला ...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

.

धिक्कार है ऐसे नेता-नेतियों पर !

मुश्किल बंदोबस्त कफ़न का !
मुश्किल में हर गुल गुलशन का !
नेताओं ने आज किया है
मिल कर बंटाधार वतन का !


इन मुफ़्तख़ोरों की सारी संपत्ति जब्त करके इन्हें भीख मांगने पर मजबूर कर देना चाहिए …