Sunday, April 29, 2012

रिश्ते

रिश्ते
रोड पर लगे नियोन साइन से
कभी जलते कभी बुझते
कभी रंग बदलते
पर हमेशा लुभाते
फरिश्ते से
रिश्ते
दर्द में रिसते
पल पल को तरसते
मिल के भी नही मिलते
जाने कैसे हैं इस के रस्ते.


गहराई में डूबे हुए
सम्पूर्ण रिश्ते
अक्सर बेनाम ही होते हैं
न जाने फ़िर क्यों जरुरी होता है
इनको कोई नाम देना ..

7 comments:

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर रचना.....

ANULATA RAJ NAIR said...

परम्पराओं की बेडियाँ अब तक नहीं तोड़ पाए हैं रिश्ते......
बिना नाम का रिश्ता कहाँ......
जब नाम दिया तभी ना रिश्ता कहलाता है....
उलझी स्थिति है...


सादर.

प्रवीण पाण्डेय said...

हर चीज को एक नाम देना चाहते हैं हम।

सदा said...

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

रंजना said...

रास्ते जब मिल ही जायेंगे, मंजिल पर आदमी पहुँच ही जायेगा, तो निर्वाण की स्थिति बन जायेगी...जबकि सृजन के लिए तो आवश्यक है कि अधूरापन हमेशा बना रहे..तलाश कहीं भी कभी भी रुकने न दे...

विभूति" said...

मार्मिक भावाभिवय्क्ति.....

दिगम्बर नासवा said...

रिश्तों का चक्र भी ऐसा ही है ... मिलतें भी हैं पर नहीं मिलते ... गहरी बात ...