सुबह की पहली किरणे सी
मैं न जाने कितनी उमंगें
और सपनों के रंग ले कर
तुमसे बतियाने आई थी ...
लम्हे .पल सब बीत गए
मिले बैठे मुस्कराए हम दोनों ही
पर चाह कर भी कुछ कह न पाये
बीते जितने पल वह
बीते कुछ रीते
कुछ अनकहे
भीतर ही भीतर
रिसते रहे छलकते रहे
चुप्पी के बोल
इस दिल से उस दिल की
गिरह पड़ी राह को खोजते रहे ...
15 comments:
बहुत सुन्दर मनोभाव..
वाह ...बहुत ही अनुपम भाव लिए हुए उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
बिन कहे ही सब कहता रहता है समय।
बहुत बार कुछ अनकहे, चुप्प से लम्हे भी बहित कुछ कह जाते हैं बिनकहे ..
मौन की अपनी एक भाषा है......
कह जाता है वो सब कुछ...बिना लब हिले...
सुन्दर भावाभिव्यक्ति...........
चुप्पी के बोल मुखर हैं -दर्द का हद से गुजरना
सुन्दर भावाभिव्यक्ति...........
सुन्दर भावाभिव्यक्ति........
bahut khoob
सुंदर रचना...
सादर.
कभी-कभी चुप्पी बहुत कुछ समझा जाती है .....
कितनी ही बार मौन कितना मुखर होता है ।
कितनी ही बार मौन शब्दों से ज्यादा मुखर होता है ।
सुन्दर!
घुघूतीबासूती
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