Thursday, August 06, 2009

अक्षर अक्षर जोड़ के बना यूँ शब्द संसार ..



जब इंसान ने अपने विकास की यात्रा आरंभ की तो इस में भाषा का बहुत योगदान रहा | भाषा समझने के लिए वर्णमाला का होना जरुरी था क्यों कि यही वह सीढी है जिस पर चल कर भाषा अपना सफ़र तय करती है | वर्णमाला के इन अक्षरों के बनने का भी अपना एक इतिहास है .| .यह रोचक सफ़र शब्दों का कैसे शुरू हुआ आइये जानते हैं ...जब जब इंसान को किसी भी नयी आवश्यकता की जरूरत हुई ,उसने उसका आविष्कार किया और उसको अधिक से अधिक सुविधा जनक बनाया| २६ अक्षरों कीवर्णमाला को भले ही अंग्रेजी वर्णमाला को रोमन वर्णमाला कहा जाए लेकिन रोमन लोगों ने इसको नहीं ईजाद किया था | उन्होंने सिर्फ लिखित भाषा को सुधार कर और इसको नए नए रूप में संवारा| हजारों वर्षों से कई देशों में यह अपने अपने ढंग से विकसित हुई और अभी भी हो रही है | वर्णमाला के अधिकतर अक्षर जानवरों और आकृतियों के प्राचीन चित्रों के प्रतिरूप ही है ..|

इसका इतिहास जानते हैं कि यह कैसे बनी आखिर | .३००० ईसा पूर्व में मिस्त्रवासियों ने कई चित्र और प्रतीक बनाए थे | हर चित्र एक अक्षर के आकार का है| इसको चित्रलिपि कहा जाता था लेकिन व्यापार करने लिए यह वर्णमाला बहुत धीमी गति की थी | खास तौर पर जो उस वक़्त विश्व के बड़े व्यपारी हुआ करते थे,१२०० इसा पूर्व के फिनिशियिंस के लिए | इस लिए उन्होंने उन अक्षरों को ही विकसित किया जिनमें प्रतीक से काम चल सकता था हर प्रतीक एक ध्वनी का प्रतिनिधितव करता था और कुछ शब्द मिल कर एक शब्द की ध्वनि बनाते थे| ...८०० इसा पूर्व में यूनानियों ने फिनिशिय्न्स की वर्णमाला को अपना लिया ,लेकिन फिर पाया कि इन में व्यंजन की ध्वनियां नहीं है .जबकि उन्हें अपनी भाषा में इसकी जरूरत थी | इसके बाद उन्होएँ १ फ़िनिशियन अक्षर जोड़ लिए इस तरह २४ अक्षरों वाली वर्णमाला तैयार हुई |
११४ ईसवीं में रोम में लोगों ने वर्णमाला को व्यवस्थित किया बाद में इंग्लॅण्ड में नोमर्न लोगों नने इस वर्णमाला में जे ,वी और डबल्यू जैसे अक्षर जोड़े और इस तरह तैयार हुई वह नीवं जिस पर आज की अंग्रेजी वर्णमाला कई नीवं टिकी है

शब्दों का जादू यूँ ही अपने रंग में दिल पर असर कर जाता है ...पर अक्सर पहले चित्र जानवर आदि की आकृतियों से ही बनाए गए थे ...जैसे अंग्रेजी का केपिटल क्यु बन्दर का प्रतीक है पुराने चित्रों में इस क्यु को सिर कान और बाहों के साथ उकेरा गया है
सबसे छोटे शब्द यानी प्रश्नवाचक और विस्मयबोधक चिन्हों के बारे में १८६२ में फ्रांस में एक बड़े लेखक विकटर हयूगो का आभारी होना पड़ेगा हुआ यूँ कि उन्होंने अपना उपन्यास पूरा किया और छुट्टी पर चले गए लेकिन यह जानने को उत्सुक थे कि किताबे बिकती कैसे हैं ? साथ ही वह सबसे चिन्ह भी गढ़ना चाहते थे सो उन्होंने प्रकाशक को एक पत्र लिखा :?प्रकाशक भी कुछ कम कल्पनाजीवी नहीं थे ,वह भी सबसे छोटा अक्सर बनाने का रिकॉर्ड लेखक हयूगो के साथ बनना चाहते थे सो उन्होंने भी जवाब में लिखा :!
और इसी सवाल जवाब के साथ चलते हुए वर्णमाला में सबसे छोटे अक्सर बने जिन्हें चिन्ह कहा गया ...
सबसे मजेदार बात यह है कि सबसे लम्बे वाक्य लिखने का श्री भी हयूगो को ही जाता है वह वाक्य भी उनके उपन्यास का है जिस में ८२३ अक्षर ,९३ अल्प विराम चिन्ह ,५१ अर्ध विराम ,और ४ डेश आये थे .लगभग तीन पन्नो का था यह वाक्य
अंडर ग्राउंड अंगेरजी भाषा का एक मात्र ऐसा शब्द है जिसका आरम्भ और अंत यूएनडी अक्षरों से होता है
टैक्सी शब्द का उच्चारण भारतीय ,अंग्रेज ,फ्रांसीसी ,जर्मन ,स्वीडिश ,पुर्तगाली और डच के लोग समान रूप से करते हैं ..

इस तरह यूँ शुरू हुआ अक्षरो का सफ़र और अपनी बात हर तक पहुंचाने का माध्यम बन गया ..आज इन्हों अक्षर की बदौलत हम न जाने कितनी नयी बाते सीख पाते हैं ,बोल पाते हैं दुनिया को जाना पाते हैं ..

33 comments:

हेमन्त कुमार said...

अच्छी जानकारी..।

रंजन said...

रोचक तथ्य.. मजेदार..

Science Bloggers Association said...

रोचक जानकारी है. आभार.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

सदा said...

बहुत ही अच्‍छी और विस्‍तारपूर्वक जानकारी देने के लिये आभार्

अजित गुप्ता का कोना said...

बेहद ज्ञानवर्द्धक जानकारी, आभार।

Mithilesh dubey said...

बहुत ही अच्‍छी और रोचक जानकारी है. आभार.

विवेक सिंह said...

बहुत मज़ेदार और रोचक जानकारी !

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

bahut he achhi information ranjana ji....
thanks a lot...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया जानकारी दी है।
आभार।

रश्मि प्रभा... said...

mahatvpurn jaankari

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी दी आपने. धन्यवाद.

रामराम.

L.Goswami said...

बढ़िया जानकारी.

M VERMA said...

रोचक जानकारी और सुन्दर लेख.

Udan Tashtari said...

बहुत रोचक और बेहतरीन जानकारी दी. आभार इस आलेख के लिए.

Vinay said...

ज्ञानवर्धक
---
'विज्ञान' पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!

दिनेशराय द्विवेदी said...

ज्ञानवर्धक जानकारी!

mehek said...

bahut h iachhi jankari rahi.rochak

Manvinder said...

रोचक तथ्य.. मजेदार..

Ashish Khandelwal said...

बहुत अच्छी जानकारी
हैपी ब्लॉगिंग

Mishra Pankaj said...

बहुत ही अच्‍छी और विस्‍तारपूर्वक जानकारी !!

Ram Shiv Murti Yadav said...

Badi dilchasp jankari di apne..abhar.

निर्मला कपिला said...

बहुत रोचक जानकारी है आभार्

jamos jhalla said...

jaankaari bhari research hai.badhaai.
jhalli-kalam-se

डॉ .अनुराग said...

दिलचस्प .जरूरते सब करवा देती है .मनुष्य भाषा के कारण ही दूसरो से श्रेष्ट प्रजाति है

गौतम राजऋषि said...

बड़े दिनों बाद आ पाया हूँ...और इस दिलचस्प जानकारी के लिये शुक्रिया मैम!

vijay kumar sappatti said...

ranjana ji , gazab ki jaankaari hai , padhkar bahut khushi hui , maine beti liye iska printout bhi liya hai .. badhai..

vijay

pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com

दिगम्बर नासवा said...

ROCHAK, LAJAWAAB AUR ACHHE JAANKAARI...AKCHARON KA SUNDAR SAFAR

Alpana Verma said...

bahut hi achchee janakri mili...

3 pages ka ek sentences!!!!andaaza bhi lagana mushkil sa hai...

मुकेश कुमार तिवारी said...

रंजना जी,

आपके इस ज्ञान के समक्ष नतमस्तक! मेरी नज़र में वर्णमाला का विकास इतिहास के गलियारों से होता हुआ अपने वर्तमान स्वरूप तक कैसे पहुँचा, बहुत अच्छी तरह समझा आज पहली बार।

मैं तो इसका प्रिंट अपने बच्चों को देने वाला हूँ।

सारगर्भित जानकारी के लिये आपका आभार।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

रंजना said...

अंग्रेजी वर्णमाला के विकाश के सम्बन्ध में बड़ी ही रोचक जानकारी दी आपने....आभार...

alka mishra said...

यह जानकारी पसंद आई रंजना जी ,उलझने सुलझ जाने का बेहद रोचक तरीका आपने ऊपर वाली कविता में बताया है ,और साया की समीक्षा न० ४ में लेखक की बेबाकी पसंद आयी ,उन्हें मेरी तरफ से साधुवाद दीजियेगा

उन्मुक्त said...

कुछ नया जानने को मिला।

Asha Joglekar said...

वाह रंजना जी, बढिया लेख।