-क्या मरने के बाद भी जीवन है ? क्या कोई मरने के बाद भी यूं सेवा कर सकता है ? अभी कुछ दिन पहले यह लेख पढ़ा तो सोच में डूब गई क्या सच में आत्माओं का अस्तित्व होता है ? कहते हैं कि मरने के बाद भी जीवन है ,इसको अब झुठलाया नही जा सकता है ..इस के बारे में कई प्रमाण भी मिले हैं .उस के आधार पर यह कह सकते हैं कि मरने के बाद सब कुछ समाप्त नही हो जाता ,जीव चेतना का अस्तित्व बना रहता है और समय आने पर वह सहायता भी करते हैं और सीमा की रक्षा भी .ऐसी ही दो आत्माओं की गाथा पिछले दिनों पढने में आई ...इस में से एक केप्टन हरभजन सिंह की आत्मा थी और दूसरी जसवंत सिहं रावत की ..दोनों ही अशरीरी होते हुए भी सीमाओं की रक्षा में जुटे रहे !
केप्टन हरभजन सिंह पंजाब रेजिमेंट की २३ वी बटालियन के सिपाही थे .उनकी मृत्यु सिक्किम सिथ्त नाथुला में भारत -चीन सीमा पर तब हो गई थी ,जब वे अपने साथियों के साथ ड्यूटी पर थे और सीमा पर गश्त लगा रहे थे !उनकी मृत्यु ऐसे समय पर हुई जब वह अपने साथियों से कुछ पीछे रह गए और उन पर बर्फ की चट्टान गिर पड़ी ,वे उसी के नीचे दब गए उनके साथियों का कहना है कि जब कई दिन तक उनका कोई पता नहीं चला तो उनकी आत्मा ने सपने में आ कर अपने साथियों को बताया उसका शव अमुक स्थान पर बर्फ के नीचे चट्टान में दबा हुआ है उसके बाद ही उनकी खोज ख़बर ली गई और उनके बताये स्थान पर जब देखा गया तो उनका शव वहीं से मिला बाद में उसना अन्तिम संस्कार कर दिया गया ! जब उनकी मृत्यु हुई तब उनकी उम्र २६ साल की थी इसके बाद से लगातार उनकी आत्मा अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थी ...बताते हैं कि सर्दी के दिनों में जब सिक्किम की चोटियां बर्फ से ढक जाती थी तब भी उनकी आत्मा वहाँ पर ड्यूटी देती देखी गई ! इसको चीनी गश्ती दलों ने भी देखा था और वह हैरान थे की मज्जा तक को ठिठुरा देने वाली इस ठंड में बिना गर्म कपडों के गश्त लगाने वाला यह भारतीय सिपाही कौन है ?बताया जाता है कि हरभजन की आत्मा ने अपने अधिकारियों को यह विश्वास दिला रखा था कि वह सीमा कि रक्षा कि चिंता छोड़ दे उस पर भरोसा रखे वह सीमा पर कोई भी गड़बड़ होने से ७० घंटे पहले सूचना दे देगा ,अधिकारियों ने अन्य सैनिकों की भांति हरभजन कि आत्मा को भी सारी सुविधा दे रखी थी सिपाहियों को वर्ष में २ महीने कि छुट्टी मिलती है तो हरभजन की आत्मा को भी इस से वंचित नही रखा जाता था !! छुट्टियों के दौरान सिलीगुड़ी एक्सप्रेस में उनके नाम की सीट बुक करवाई जाती .यात्रा वाले दिन उनका साथी उनका समान बर्थ के नीचे रख कर बर्थ पर उनका बिस्तर लगा देते उनकी वर्दी भी वही बर्थ के ऊपर टांग दी जाती ,यह सब करने के लिए एक सिपाही उनके साथ जाता था .....जालंधर स्टेशन आने पर उनका समान उतारा जाता और उन्हें उनके घर पहुँचाया जाता था... उनके परिवार को पूरा वेतन भी दिया जाता था और फ़िर बाद में पदोन्नति भी दी गई ,तभी वह एक सैनिक से केप्टन बने सके !
यह सिलसिला पिछले ३० सालों से चलता रहा ,बाद में उनकी आत्मा ने सेवानिरवती की इच्छा जाहिर की उनकी इस इच्छा को मान दिया गया बाद में ससम्मान उनकी विदाई भी की गई !!
इस से मिलती जुलती एक कहानी एक और भारतीय सैनिक जसवंत सिंह रावत की भी है ! वह सेना की चौथी गढ़वाल राईफल्समें सेवारत थे ! उनकी नियुक्ति अरुणाचल प्रदेश की नुरानांग चौकी पर हुई थी ! सन् १९६२ के चीन युद्ध के समय उन्होंने अकेले दम पर चीनियों को तीन दिन तक रोके रखा था ,बाद में जब उनको पता चला की एक अकेले भारतीय ने उन्हें तीन दिन तक रोके रखा तो वह गुस्से में उनका सिर काट के ले गए ! लड़ाई के बाद जब एक चीनी अधिकारी तो इस बात का पता चला तो उसने उनका कटा हुआ सिर लौटा दिया और साथ में एक पीतल की आवक्ष परितमा भी दी .वहाँ बाद में उसी जगह जहाँ उन्होंने प्राण त्यागे थे वहाँ उनकी समाधि बना दी गई आज वह स्थान बहादुर सैनिक के नाम पर जसवंत गढ़ कहलाता है .आज भी उनकी आत्मा वहाँ पर रात के सन्नाटे में गश्त लगाते देखी जाती है और जो अपनी ड्यूटी पर कोई आलस्य करते हैं उनको वह चांटा भी लगा देती है उनसे प्रेरित हो कर वहाँ हर सैनिक चुस्त दुरस्त रहता है उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया है !!
इस तरह की घटने वाली घटनाएं कई बार बहुत हैरानी में डाल देती है और हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं की क्या सच में मरने के बाद भी जीवन है और वह भी ऐसा की स्थूल शरीर की तरह देश की सेवा करता और बाकी लोगों की सहायता करता रहे ...अजब रंग है इस संसार के जो आज भी अपनी ऐसी बातों से हमको सोचने पर मजबूर कर देतें हैं !!
अखंड ज्योति में पढे गए एक लेख के आधार पर आधारित है यह लेख
केप्टन हरभजन सिंह पंजाब रेजिमेंट की २३ वी बटालियन के सिपाही थे .उनकी मृत्यु सिक्किम सिथ्त नाथुला में भारत -चीन सीमा पर तब हो गई थी ,जब वे अपने साथियों के साथ ड्यूटी पर थे और सीमा पर गश्त लगा रहे थे !उनकी मृत्यु ऐसे समय पर हुई जब वह अपने साथियों से कुछ पीछे रह गए और उन पर बर्फ की चट्टान गिर पड़ी ,वे उसी के नीचे दब गए उनके साथियों का कहना है कि जब कई दिन तक उनका कोई पता नहीं चला तो उनकी आत्मा ने सपने में आ कर अपने साथियों को बताया उसका शव अमुक स्थान पर बर्फ के नीचे चट्टान में दबा हुआ है उसके बाद ही उनकी खोज ख़बर ली गई और उनके बताये स्थान पर जब देखा गया तो उनका शव वहीं से मिला बाद में उसना अन्तिम संस्कार कर दिया गया ! जब उनकी मृत्यु हुई तब उनकी उम्र २६ साल की थी इसके बाद से लगातार उनकी आत्मा अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थी ...बताते हैं कि सर्दी के दिनों में जब सिक्किम की चोटियां बर्फ से ढक जाती थी तब भी उनकी आत्मा वहाँ पर ड्यूटी देती देखी गई ! इसको चीनी गश्ती दलों ने भी देखा था और वह हैरान थे की मज्जा तक को ठिठुरा देने वाली इस ठंड में बिना गर्म कपडों के गश्त लगाने वाला यह भारतीय सिपाही कौन है ?बताया जाता है कि हरभजन की आत्मा ने अपने अधिकारियों को यह विश्वास दिला रखा था कि वह सीमा कि रक्षा कि चिंता छोड़ दे उस पर भरोसा रखे वह सीमा पर कोई भी गड़बड़ होने से ७० घंटे पहले सूचना दे देगा ,अधिकारियों ने अन्य सैनिकों की भांति हरभजन कि आत्मा को भी सारी सुविधा दे रखी थी सिपाहियों को वर्ष में २ महीने कि छुट्टी मिलती है तो हरभजन की आत्मा को भी इस से वंचित नही रखा जाता था !! छुट्टियों के दौरान सिलीगुड़ी एक्सप्रेस में उनके नाम की सीट बुक करवाई जाती .यात्रा वाले दिन उनका साथी उनका समान बर्थ के नीचे रख कर बर्थ पर उनका बिस्तर लगा देते उनकी वर्दी भी वही बर्थ के ऊपर टांग दी जाती ,यह सब करने के लिए एक सिपाही उनके साथ जाता था .....जालंधर स्टेशन आने पर उनका समान उतारा जाता और उन्हें उनके घर पहुँचाया जाता था... उनके परिवार को पूरा वेतन भी दिया जाता था और फ़िर बाद में पदोन्नति भी दी गई ,तभी वह एक सैनिक से केप्टन बने सके !
यह सिलसिला पिछले ३० सालों से चलता रहा ,बाद में उनकी आत्मा ने सेवानिरवती की इच्छा जाहिर की उनकी इस इच्छा को मान दिया गया बाद में ससम्मान उनकी विदाई भी की गई !!
इस से मिलती जुलती एक कहानी एक और भारतीय सैनिक जसवंत सिंह रावत की भी है ! वह सेना की चौथी गढ़वाल राईफल्समें सेवारत थे ! उनकी नियुक्ति अरुणाचल प्रदेश की नुरानांग चौकी पर हुई थी ! सन् १९६२ के चीन युद्ध के समय उन्होंने अकेले दम पर चीनियों को तीन दिन तक रोके रखा था ,बाद में जब उनको पता चला की एक अकेले भारतीय ने उन्हें तीन दिन तक रोके रखा तो वह गुस्से में उनका सिर काट के ले गए ! लड़ाई के बाद जब एक चीनी अधिकारी तो इस बात का पता चला तो उसने उनका कटा हुआ सिर लौटा दिया और साथ में एक पीतल की आवक्ष परितमा भी दी .वहाँ बाद में उसी जगह जहाँ उन्होंने प्राण त्यागे थे वहाँ उनकी समाधि बना दी गई आज वह स्थान बहादुर सैनिक के नाम पर जसवंत गढ़ कहलाता है .आज भी उनकी आत्मा वहाँ पर रात के सन्नाटे में गश्त लगाते देखी जाती है और जो अपनी ड्यूटी पर कोई आलस्य करते हैं उनको वह चांटा भी लगा देती है उनसे प्रेरित हो कर वहाँ हर सैनिक चुस्त दुरस्त रहता है उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया है !!
इस तरह की घटने वाली घटनाएं कई बार बहुत हैरानी में डाल देती है और हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं की क्या सच में मरने के बाद भी जीवन है और वह भी ऐसा की स्थूल शरीर की तरह देश की सेवा करता और बाकी लोगों की सहायता करता रहे ...अजब रंग है इस संसार के जो आज भी अपनी ऐसी बातों से हमको सोचने पर मजबूर कर देतें हैं !!
अखंड ज्योति में पढे गए एक लेख के आधार पर आधारित है यह लेख
9 comments:
अद्भुत कथा सुनाई आपने.
पढ़ते-पढ़ते रोंगटे भी खड़े हो गए पर अच्छा लगा.
अब तो बस इन अच्छी आत्माओं से ही कुछ बदलाव की उम्मीद बची है.
आप का लेख पढ कर अदभुत्त लगा,इस दुनिया मे सब कुछ हो सकता हे.बाकी बाल किशन जी की बात भी सही लगी..अब तो बस इन अच्छी आत्माओं से ही कुछ बदलाव की उम्मीद बची है.
आधुनिक दुनियां इसे स्वीकारे या न स्वीकारे हमारी सनातन परम्परा इसे स्वीकारती है, शायद इसी आस्था और विश्वास के कारण ही हमारी संस्कृति विश्व में सर्वश्रेष्ठ है ।
संजीव
त्रिलोचन : किवदन्ती पुरूष
बहुत पहले हमने भी ऐसी घटनाओ के बारे में पढा था.. लन्दन मे तो इस विषय पर शोध हो रहा है.
शायद एक वार्षिक पत्रिका भी है भारत मे.... पराविद्या विशेषाँक...
रंजू
तुम बहुत मेहनती हो। इसीलिए किसी भी पोस्ट से पहले काफी अध्ययन करती हो । यही विशेषता तुम्हे बहुत आगे ले जाएगी । काफी ग्यान वर्धक लेख है । साधुवाद
ranju ji...KAH NAHI SAKTI KI MRITYU KE BAAD JEEVAN HAI YA NAHI MAGAR baabaa haribhajan singh KI YAAD ME BANAA baba mandir ABHI MAI may ME APNI SIKKIM YAATRA KE DAURAAN DEKH KAR AAYI HUUN...VAHAN BAAQAAYDA UNKA OFFICE,UNKEY SONEY KA STHAAN,UNKEY KAPDE AAJ BHI SAVAAREY JAATEY HAIN...VO JAGAH SAMUDR TAL SE LAGBHAG 13000 FT UPER...CHAARON TARAF BARFIILI PAHAADIYON SE GHIRI HUI BAHUT HI KHUUBSURAT LAGTI HAI..PUURA MANDIR DEVSTHAL KI TARAH PUUJA JATAA HAI,,LANGAR LAGTAA HAI,AUR YE SAB HAMAAREY SENA KE JAVAANO DVAARA SANCHALIT HOTA HAI...AAPKI POST NE MERI SMRATIYAAN TAAZI KAR DIN...ABHAAR
ह्म्म, कुछेक पत्रिकाएं इस बारे में विशेषांक निकालती रही हैं।
अरे वाह!! पारुल जी मैं तो पढ़ के ही रोमांचित हो गई हूँ ..आपने तो इसको यूं देखा..:)बहुत ही रोमांचक लगा होगा ..बहुत बहुत शुर्किया आप सब का इस लेख को पढने का !!
आपके आलेख में जो भी लिखा था हूबहू मेरे भाई साहब ने नार्थ-ईस्ट के भ्रमण से लौट कर बताया आपको बता दूँ की पूरी श्रद्धा से इस हनुमान को सादर नमन और आपको भी जो बड़ी लगन से इसे ब्लॉग पर ले आयीं ...!
सच भारत की रक्षा वीर हनुमान, बाबा हरभजन,तथा रावत जी जैसे कर रहें हैं अब रामायण को काल्पनिक कहना ग़लत होगा
पुन: शुभकामनाओं सहित
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
पूरी श्रद्धा से एक पोस्ट जो आप सबकी पोस्ट का समेकन है का लिंक :http://jabalpursamachar.blogspot.com/ dehie
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