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Monday, November 26, 2007
टेलीपेथी और ईश्वर[टेली पेथी भाग २ ]
दुनिया में इतने धर्म है और हर धर्म ने अपने अपने ईश्वर की कल्पना की है !कही ईश्वर कोई प्रतीक के रूप में है कहीं उसके प्रभाव को महसूस किया जाता है ...किसी किसी व्यक्ति विशेष में देवीय गुण पाए जाते हैं तो उसको ईश्वर का रूप मान लेते हैं !अब उसको किसी ने देखा तो है नही ...लेकिन फिर भी उसका होना अपना एहसास करवा देता है ..वह आँखो से नही दिखाई देता ,पर उस से हमारा एक अदृश्य संवाद बना रहता है जब भी हम किसी मुसीबत में होते हैं तो हम उसकी शरण में जाते हैं ,उस वक़्त हमारे दिल में यही होता है की वो है और हमारी पुकार सुन रहा है यही टेलीपेथिक सेन्स है ..जब कोई प्रार्थना सुन ली जाती है तो उसके गुण गाते हम नही थकते और नही होती पूरी मुराद तो उसकी व्याख्या अलग ढंग से करते हैं .अब वो ख़ुद तो आने से रहा सो सब अपनी सोच से अपने विचार से उस बात को कह देते हैं !
कभी कभी ऐसे चमत्कार भी हो जाते हैं जो अचरज में डाल देते हैं विज्ञान भी हैरानी से उनको देखता रह जाता है ...यह संसार अनोखी बातो से रचा है कब कहाँ क्या हो जाए ,कौन जानता है .... इस संसार में दोनो तरह के लोग हैं अच्छे भी और बुरे भी और दोनो ही ईश्वर को मानते हैं अपने अपने ढंग से कई तंत्रिक लोग ईश्वर के नाम पर जो जादू टोना करते हैं अपने स्वार्थ के कारण लोगो में ईश्वर की आस्था का ग़लत फ़ायदा भी उठाते हैं ..किसी को कोई दुख दे के तो कोई ईश्वर ख़ुश हो नही सकता यह यह झूठी टेलीपेथिक विद्या ईश्वर से बात करवाने का यक़ीन दिलवाते हैं ..
यह तो एक सच है की जो कुछ भी हम ईश्वर से कहते हैं वा आमने सामने तो होता नही वो एक टेली पेथिक संवाद ही है यह संदेश ध्यान में डूब कर छठी इन्द्री से दिए लिए जाते हैं ...सभी धर्म यूँ ही चलते हैं हम सभी अपने ईश्वर से संवाद करते हैं और अपने दिल की बात उनसे कहते हैं ..मानव के मस्तिष्क को पथ परर्द्शक की जरुरत होती है जो उसकी हर बात सुन सके पूरी कर सके..इस लिए वो जब भी मुसीबत में होता है उसकी शरण में जाता है ..इस पर एक सकारत्मक सोच हमारी आस्था उस ईश्वर के प्रति जाग जाती है हम उस बुराई से बचने की कोशिश करते हैं जो हमे लगता है कि यह ईश्वर को पसंद नही है !हमने जिस ईश्वर को मान लेते हैं या मानते हैं वा हमे अपने पूर्वजो से सुनने पर ही पता चलता है देखा तो उन्होने भी नही !बस पीढ़ी दर पीढ़ी यह आस्था चलती जाती है और हमे उस ईश्वर से लगाव टेलीपेथिक बात करने की आदत पड़ जाती है यह एक अच्छी आस्था है जिस से हम बुराई से बचे रहते हैं और अच्छे कर्म की और अग्रसर रहते हैं ...इस लिए हर धर्म ने अपने अपने इष्टदेव को माना है और उस से सदा उनसे जुड़े रहते हैं ...!!
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4 comments:
वाहSSS प्रेम-विज्ञान से गूढ़ज्ञान तक…
बहुत सुंदर्…
इस नये प्रकार की विशेष रचना से कफी भ्रम टूटे…
अच्छा लिखा है… इसे आगे भी जारी रखें…।
टेलीपैथी का तो मुझे पता नहीं। लेकिन, ईश्वर के बहाने अच्छे कार्य करने की इच्छा हो तो, सुखद है।
"यह तो एक सच है की जो कुछ भी हम ईश्वर से कहते हैं वा आमने सामने तो होता नही वो एक टेली पेथिक संवाद ही है" रंजू जी आपकी इन लाइनों में ब्रह्माण्ड जगत की वो हकीकत है जिसको आज अमेरिकी सांइटिस्ट भी मानने लगे हैं। कहा जाता है कि यदि कोई सच्चे मन से ब्रह्मांडीय शक्तियों को याद करता है तो उसकी टैलीपैथी बातें सुनी जाती हैं और उन पर अमल भी होता है
बहुत ही ज्ञानदार ग़ूढ विषय पर जानकारी दी अहै आपने। आशा है आगे भी इसी प्रकार मार्गदर्शन करती रहेंगी।
यदि आप का मन सच्चा है और आत्मा शुद्ध एवं सच्चे मन से आप प्रर्थना करते हैं तो अवश्य ही आप ईश्वर से संवाद कर पाते हैं..बहुत से तरीके हैं..ईश्वर आप से संपर्क करता है.. बस उसको समझने की जरूरत पड़ती है...ईश्वरीय शक्ति आपके सम्मुख आ नही खड़ी होगी..किंतु अनेक कार्य ऐसे होने लगते हैं..
कवि कुलवंत
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