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Saturday, November 03, 2007
यूं पहुंचे हम हास्य मंच पर :)
टीवी सीरियल देखते देखते यूं ही कलम चलाई
माँ के बदलते स्वरुप में हमे हास्य कविता नज़र आई
सोचा चलो एक कविता इस पर फरमाते है
बहुत भटक लिए प्रेम गली में
अब कुछ हास्य का रंग चढाते हैं
कविता जब पूरी हुई तो पढ़ के ख़ुद ही इठ्लाई
तभी चकल्लस के अखाड़े में,
हास्य कवि कुश्ती की खबर है आई
सोचा दिल ने कि चलो इस कविता को अजमाते हैं
चुने गए तो ठीक है वरना फ़िर से अपने प्रेम रस में डूब जाते हैं
पर हमारी पहली हास्य कविता ने हमारा साथ निभाया
और हमे पहली बार हास्य कवि के मंच पर पहुँचाया
पूरी तेयारी के साथ हमने ख़ुद को होंसला बंधाया
पर बुखार और गले दर्द ने हमको ४ दिन रुलाया
फ़िर भी बंद गले और सु सु करती नाक से
हमने ख़ुद को अखाडे में पाया
बोले चक्रधर जी जो वचनं दिया है
वह तो अब निभाना होगा
कविता के अखाडे में बंद गले से ही गाना होगा
पुचकार के अपने बंद गले को ,
हमने एक विक्स की गोली खिलाई
बंद मत हो जाना मंच पर बस करते रहे यही दुहाई
पर मंच पर बंद गले ने खूब जोर से गाया
इस तरह हमने हास्य कवि होने का मान भी पाया !!
बाकी इस के बारे में यहाँ जरुर पढे :)
http://merekavimitra.blogspot.com/2007/11/blog-post_03.html
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14 comments:
रंजू दीदी मान गये आपको...
वाह क्या आपने हास्य की गरीमा निभाई
अखाड़े मे आकर गज़ब की फ़ुर्ती दिखाई...
बंद गले को क्या आपने हार्पिक से खोला था,
जो इतने मधुर स्वर में कविता में रस घोला था...:)
सुनीता(शानू)
बढ़िया!!
चलिए कोई बात नही, कुछ बातों पर अपना बस नही चलता!
अगली बार दमखम दिखाईएगा, शुभकामनाएं
अति सुंदर. भरपूर हास्य.
बधाई जी बधाई.
bahut hi sarahniy koshish hai
aur mera manna hai ki hasy ke jariye ham bahut badi se badi aat ashani se wyakt kar sakte hai..
umda rachna hai......... congrats
हम भी बाटा करते थे खुशियाँ
हम भी आँखों में चमक लाते थे |
खिलती थी कलियाँ हमारे छंदों से
दुआए मिलती थी अल्ला के बंदो से
अब तो दर्द दिल का मेरे ,
मेरी कविता में भी दिखता है|
पूरा समंदर अब तो शायद ,
मेरे आँखों se भरता है|
कुछ लोग कहते है कि.
ये अस्क दर्द का सैलाब है
उन्हें क्या पता बगल में बावर्ची खाना है
जहाँ रोज कई किलो प्याज कटता है
बहुत खूब!
बहुत अच्छा रंजू जी ।
बहुत खूब... हम कैसे सुने आपकी मधुर आवाज़...लेकिन आपका अनुभव मज़ेदार लगा.. बधाई स्वीकार कीजिए...
काफ़ी सुना था हमने की कवि बडे मनचले होते है,
खाते है प्यार की बर्फी और जिन्दगी का करेला,
रंजू जी हास्य की टाफी के रस भी चटपटे होते है,
अच्छा किया जो चखने पहुची आप Perfect Health मेला !
Nice poem again Ranjanji...... :)
हमें तो लगता था कि 'दिल का दर्द' बताने वाले हँसा नहीं सकते। लेकिन रंजना जी,आपने तो साबित कर दिया कि आपके पास हास्योत्पादक शैली भी है। "कलम" में इसी तरह का दम होना चाहिये। निजी बातों को आधार बनाकर हँसानेवाला या रूलानेवाला "कलम का सिपाही" होता है। और इसमें आप मेरी नजर में खरी हैं।
रंजना जी
दूसरों पर हंसने वाले बहुत हैं परन्तु स्वयं पर हंसकर दूसरों को हंसी प्रदान करना बड़े जिगर का काम है मेरी बधाई
रंजू जी
आपने तो पहली बारी में सैंचुरी बना ली अब बिचारे दूसरे हास्य कवी कौन सा मंच तलाश करेंगे। आप की बहती हुई नाक और बंद गले की आवाज ने सबको धो डाला। मुबारक हो
hasi nahi aayi
बधाई हो रंजू जी…
मैं भी आपके बढ़ते आकार में डुबता जाता हूँ अगर अखाड़े से मिल जाए कभी फुर्सत उतर कर आस-पास टटोल लीजिएगा…।
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