https://youtube.com/shorts/P9s48yUZ20U?feature=share
मै नही लिखती...
अब ,इन दिनों कोई कविता
क्योंकि मेरे लिखे लफ्ज़
आज के साहित्य का
आईना "नही बन पाते है.....
मेरे लिखे" शब्द "चलते है
सिर्फ ताल के कदमो पर
गद्य में यह अनगढ़ से नजर आते हैं
न इन लिखे लफ्ज़ो में
कह पाती हूँ ,मै
सेक्स और स्त्री अंगों की बात
न ही इनमे
आज कल के
कहे जाने वाले लफ्ज़ लिखे जाते हैं
ब्रेकअप,लिखने से मिलते है पुरस्कार
"विरह गीत" लिखने पर
शब्द उपहास से नजर आते हैं
सेन्टरी नेपकिन से जो मूल्य भर जाता है
लिखी हुई कविता में
"स्त्री तकलीफ "में वो दर्द कम कर जाते हैं
मेरी लिखी कविता के शब्द
कहलाये जाते है "फूल,पत्ती"
आसान शब्दो के यह भाव
सिर्फ "आम समझ "की ही तो बात बताते है
हाँ ,मेरे लिखे लफ्ज़ नही उलझ पाते
गहरी गूढ़ बातों में
तभी तो वो "सर से पार हो जाने वाली "
रचना गढ़ नहीं पाते हैं
हाँ ,अब इन दिनों
मै ,लिखती नहीं कोई कविता
और सोचती हूँ
सच ही कहते है, प्रकाशक
कि मेरे लिखे यह "संग्रह "
वही पुराने घिसे पीटे भावों में
अब कहाँ बिकते और कहाँ पढ़े जाते है
और साथ ही यह जाना कि यह मेरे लिखे संग्रह ........
,क्यों "काव्यसंग्रह" नहीं कहलाते है !!
#रंजू भाटिया 😊😊
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