Thursday, July 07, 2022

आजादी मेरा ब्रांड (पुस्तक समीक्षा)

 आजादी मेरा ब्रांड ( अनुराधा बेनीवाल)

यह किताब जिसने भी पढ़ी वह इस लिखने वाली" अनु" से प्रभावित हुआ और कुछ न कुछ लिखा जरूर इस किताब के बारे में।

 मेरे पास यह किताब पिछले एक साल से पढ़े जाने के इंतजार में रखी थी, अब जब शुरू की तो दो दिन में पढ़ कर ही चैन आया। इस किताब में वो सब कुछ लिखा है जिसके सपने मेरे जैसे कई और भी लेते होंगे ,पर हम सिर्फ सपने  लेते रह गए और "अनुराधा बेनीवाल" ने इसको सोलो ट्रिप में घूम कर सच कर दिखाया। 

   इस किताब में सिर्फ घूमने की ही बात नहीं है, इसमें वो भी सब है जो हम अक्सर अपने अंदर सोचते हैं पर कह नहीं पाते हैं या कर ही नहीं पाते हैं। पूरी किताब में कितनी जगह मैने उन लिखित वाक्यों को अंडरलाइन किया जिसे पढ़ कर लगा कि सच है यह कितना हम लोगों को बस अपने अंदर झांकने की जरूरत है। वाकई हम सब इस तरह से पले बढ़े हैं कि अपनी खुशी की चाबी भी दूसरों को दे देते हैं।अपनी किसी भावना का कोई एहसास ही नहीं रहता है। किसी एक खुशी को बताने के लिए सामने वाले पर इतने निर्भर हो जाते हैं कि उसके मूड के आगे अपनी खुशी गम उधार पर दे देते हैं। जब हम खुद में खुशी ढूंढ लेते हैं दूसरे पर बोझ नहीं उसके साथी होते हैं। यहां बहुत बढ़िया उदहारण के साथ लिखा है कि " आप एक दूसरे के लिए विक्रम और बेताल नहीं होते ।एक दूसरे की खुशी निचोड़ने के लिए नहीं होते । एक दूसरे की खुशी साझा करने बढ़ाने के लिए साथ होते हैं।" 

  मेरे ही जन्मस्थान "रोहतक से निकली यह लड़की जिस तरह से यूरोप की अपनी यात्रा करती है वह वाकई एक बहुत बढ़िया प्रेरणा है। हमारे देश में घूमने पर डर है जो वह बाहर के देशों में नहीं पाती ।सिर्फ घूमने के दम पर अनुराधा खुद लड़कियों और पूरे समाज की सोच को बदलने की बात करती हैं, ‘तुम चलोगे तो तुम्हारी बेटी भी चलेगी और मेरी बेटी भी. जब सब साथ चलेंगी तो सब आजाद, बेफिक्र और बेपरवाह ही चलेंगी. दुनिया को हमारे चलने की आदत हो जाएगी. अगर नहीं होगी तो आदत डलवानी पड़ेगी, डरकर घर में मत रह जाना. तू खुद अपना सहारा है. तुम अपने-आप के साथ घूमना. अपने तक पहुंचने और अपने-आप को पाने के लिए घूमना,तुम घूमना !‘अनुराधा इस समाज की आंख में आंख डालकर बहुत सारे सवाल पूछती हैं, ‘आखिर एक लड़के को एक लड़की के साथ बेहतर जीवन जीने की तैयारी पहले से क्यों नहीं करनी चाहिए?’ यह देखकर कुछ जलन सी होती है कि जितनी सुरक्षा हमें अपने घर और अपने देश के भीतर नहीं मिलती, उससे कहीं ज्यादा सुरक्षित लेखिका खुद को अंजान देश के अंजान लोगों के बीच पाती है. अनुराधा यूरोप के 13 शहरों में अंजान लोंगों के घर रुकीं. अंजान लोगों के साथ कार में लंबी यात्रा की।हम अपने देश की राजधानी में देर रात अकेले टैक्सी लेने की हिम्मत नहीं कर सकते।लेकिन अनु  रात के किसी भी वक्त टैक्सी लेती हैं।

यह किताब टूरिस्ट और घुमक्कड़ के बीच का फर्क बहुत अच्छे से  समझाती है कि शहर टूरिस्टों को लूटता है, जबकि घुमक्कड़ों से दोस्ती करता है, ‘जब आप थोड़े समय के लिए ही किसी नए शहर में होते हैं तो होटल में रहकर सिर्फ पोस्टकार्ड वाला शहर ही देख पाते है. शहर की आत्मा छुपी रह जाती है. आप टूरिस्ट होते हैं तो शहर भी आपको टूरिस्ट जैसे ही ट्रीट करता है. वह आपसे पैसे भी ज्यादा लेता है. लेकिन अगर आप शहर में टूरिस्ट नहीं, दोस्त के जैसे रहते हैं तो शहर भी आपको दोस्त जैसे ही ट्रीट करता है.’

 यदि आप ने अब तक यह किताब नहीं पढ़ी है तो जरूर पढ़े । यह किताब न केवल बाहर जगह की यात्रा करवाती है ,यह आपको अपने अंदर के उन सवाल जवाब की भी यात्रा करवाती है। यह सिखाती है कि घूमने से ही आप दुनिया को आसानी से समझ पाते हैं। और घुमक्कड़ी ही जिंदगी की असली पाठशाला है। अलग अंजान लोगों के घर रुकना और उन्हें समझना ही वाकई सही में वहां से असली परिचय करवाता है। किताब बहुत ही सरल और सहज ढंग से लिखी गई है। रोचक है और घुमक्कड़ी का सपना देखने वालों के लिए एक बढ़िया प्रेरणा।


   आजादी मेरा ब्रांड 

अनुराधा बेनीवाल

राजकमल प्रकाशन

मूल्य 199


   




8 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पुस्तक का सशक्त परिचय लिखा है । सधा हुआ लेखन ।

रंजू भाटिया said...

बढ़िया पुस्तक है यह ,धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2022) को चर्चा मंच     "ग़ज़ल लिखने के सलीके"   (चर्चा-अंक 4485)     पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद

जितेन्द्र माथुर said...

दिए गए विवरण से पुस्तक की जो झलक मिलती है, वह पुस्तक के उत्कृष्ट होने की ही संभावना जगाती है। जो कहा गया है, वह सही है। घुमक्कड़ी ही होनी चाहिए। दुनिया और ज़िंदगी, दोनों को एक सच्चा घुमक्कड़ ही समझ सकता है, टूरिस्ट नहीं। बहुतबहुत आभार एवं अभिनंदन।

Marmagya - know the inner self said...

उत्कृष्ट पुस्तक! पठनीय एवं संग्रहणीय! समीक्षा और परिचय देने के लिए साधुवाद!

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद जी रोचक है यह किताब

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद जी रोचक है यह किताब