Tuesday, July 19, 2022

काला गुलाब ( रसीदी टिकट से एक पन्ना)

 काला गुलाब 


https://youtu.be/erHmkYW3m9A


यह बरस मेरी जिंदगी का सबसे उदास बरस था,जिंदगी के कैलेंडर में फटे हुए पृष्ठ की तरह। मन ने घर की दहलीजों के बाहर पांव रख लिया था,पर सामने कोई रास्ता नहीं था,इसलिए घबराकर कांपने लगा।

     साहिर को फोन करने के लिए मुंबई फोन के पास गई थी कि अजीब संयोग हुआ , कि उस दिन के बिल्ट्ज में तस्वीर भी थी और खबर भी कि साहिर को जिंदगी की एक नई मोहब्बत मिल गई है। हाथ फोन के डायल से कुछ दूर शून्य में खड़े रह गए...


दुखांत यह नहीं होता कि किस्मत से आपके साजन का नाम पता न पढ़ा जाए और आपकी उम्र की चिट्ठी सदा रुलाती रहे।


दुखांत यह होता है , कि आप अपने प्रिय को अपनी उम्र की सारी चिट्ठी लिख लें और फिर आपके पास से आपके प्रिय का नाम पता खो जाए....


बहुत ही रोचक और दर्द से भरा है अमृता प्रीतम की "रसीदी टिकट" का यह पन्ना... 


इसको आप पूरा इस लिंक पर सुन सकते हैं और जान सकते हैं कि 1960 के उस वक्त में अमृता किस तरह के हालात से गुजर रही थी। लाइक और सब्सक्राइब करना ना भूलें ,धन्यवाद 

https://youtu.be/erHmkYW3m9A


6 comments:

Madhulika Patel said...

बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट, आदरणीया शुभकामनाएँ ।

Meena Bhardwaj said...

हृदयस्पर्शी पोस्ट ।

जितेन्द्र माथुर said...

ज़रूर सुनूंगा रंजू जी। अमृता प्रीतम का जीवन, नज़रिया एवं साहित्य सामाजिक परिवर्तनकारी रहा है। आपने जो साझा किया है, वह भी दिलोदिमाग़ को झकझोर देने वाला है। हृदय से आभार आपका।

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद🙏😊

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद जी😊🙏

रंजू भाटिया said...

आपका बहुत बहुत आभार जितेंद्र जी🙏😊